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भाग 12

 


शाम होने में कुछ भी विलम्ब नहीं है। सूर्य भगवान अस्त हो गये केवल उनकी लालिमा आसमान के पश्चिम तरफ दिखाई दे रही है। दारोगा वाले बंगले में रहने वालों के लिए यह अच्छा समय है परन्तु आज उस बंगले में जितने आदमी दिखाई दे रहे हैं वे सब इस योग्य नहीं हैं कि बेफिक्री के साथ इधर-उधर घूमें और इस अनूठे समय का आनन्द लें। यद्यपि राजा गोपालसिंह, कमलिनी और लाडिली की तरफ से मायारानी निश्चिन्त हो गई बल्कि उनके साथ ही साथ दो ऐयारों को भी उसने गिरफ्तार कर लिया है मगर अभी तक उसका जी ठिकाने नहीं हुआ। वह नहर के किनारे बैठी हुई बाबाजी से बातें कर रही है और इस फिक्र में है कि कोई ऐसी तरकीब निकल आवे कि जमानिया की गद्दी पर बैठकर उसी शान के साथ हुकूमत करे, जैसा कि आज के कुछ दिन पहले कर रही थी। उसके पास केवल नागर बैठी हुई दोनों की बातें सुन रही है।
मायारानी - जिस दिन से आपको वीरेन्द्रसिंह ने गिरफ्तार कर लिया उसी दिन से मेरी किस्मत ने ऐसा पलटा खाया कि जिसका कोई हदहिसाब नहीं, मानो मेरे लिए जमाना ही और हो गया। एक दिन भी सुख के साथ सोना नसीब न हुआ। मुझ पर मुसीबतें आईं और तिलिस्मी बाग के अन्दर जो-जो अनहोनी बातें हुईं उनका खुलासा हाल आज मैं आपसे कह चुकी हूं। इस समय यद्यपि राजा गोपालसिंह, कमलिनी और लाडिली की तरफ से निश्चिन्त हूं मगर फिर भी अपनी अमलदारी में या तिलिस्मी बाग के अन्दर जाकर रहने का हौसला नहीं पड़ता, क्योंकि तिलिस्मी बाग के अन्दर दोनों नकाबपोशों के आने और धनपत का भेद खुल जाने से हमारे सिपाहियों की हालत बिल्कुल ही बदल गई है और मुझे उनके हाथों से दुःख भोगने के सिवाय और किसी तरह की उम्मीद नहीं है। यही भी सुनने में आया है कि दीवान साहब मुझे गिरफ्तर करने की फिक्र में पड़े हुए हैं।
बाबा - दीवान जो कुछ कह रहा है उससे मालूम होता है कि या तो उसे राजा गोपालसिंह का असल-असल हाल मालूम हो गया है और वह उन्हें फिर जमानिया की गद्दी पर बैठाना चाहता है, या वह स्वयं राजा साहब के बारे में धोखा खा रहा है और चाहता है कि तुम्हें गिरफ्तार कर राजा वीरेन्द्रसिंह के हवाले करे और उनकी मेहरबानी के भरोसे पर स्वयं जमानिया का राजा बन बैठे। तुम कह चुकी हो कि राजा वीरेन्द्रसिंह की बीस हजार फौज मुकाबले में आ चुकी है जिसका अफसर नाहरसिंह है। अब सोचना चाहिए कि नाहरसिंह के मुकाबले में आ जाने पर भी चुपचाप बैठे रहना बेसबब नहीं है और...।
मायारानी - शायद इसका सबब यह हो कि दीवान ने मुझको गिरफ्तार करके वीरेन्द्रसिंह के हवाले कर देने की शर्त पर उनसे सुलह कर ली हो!
बाबा - ताज्जुब नहीं, ऐसा ही हो, मगर घबराओ नहीं मैं दीवान के पास जाऊंगा और देखूंगा कि वह किस ढंग पर चलने का इरादा करता है। अगर बदमाशी करने पर उतारू है तो मैं उसे ठीक करूंगा। हां यह तो बताओ कि दीवान को तुम्हारी तिलिस्मी बातों या तिलिस्मी कारखाने का भेद तो किसी ने नहीं दिया।
मायारानी - जहां तक मैं समझती हूं उसे तिलिस्मी कारखाने में कुछ दखल नहीं है, मगर इस बात को मैं जोर देकर नहीं कह सकती क्योंकि वे दोनों नकाबपोश हमारे तिलिस्मी बाग के भेदों से बखूबी वाफिक हैं जिनका हाल मैं आपसे कह चुकी हूं, बल्कि ऐसा कहना चाहिए कि बनिस्बत मेरे वे ज्यादा जानकार हैं क्योंकि अगर ऐसा न होता तो वे मेरी उन तरकीबों को रद्द न कर सकते, जो उनके फंसाने के लिए की गई थीं। ताज्जुब नहीं कि उन दोनों ने दीवान से मिलकर तिलिस्म का कुछ हाल भी उससे कहा हो।
बाबा - खैर कोई हर्ज नहीं, देखा जायेगा। मैं कल जरूर वहां जाऊंगा और दीवान से मिलूंगा।
मायारानी - नहीं, बल्कि आप आज ही जाइये और जहां तक जल्दी हो सके, कुछ बन्दोबस्त कीजिये, अगर दीवान के भेजे हुए सौ-पचास आदमी मुझे ढूंढते हुए यहां आ जायेंगे, तो सख्त मुश्किल होगी। यद्यपि यह तिलिस्मी खंजर मुझे मिल गया है और तिलिस्मी गोली से भी मैं सैकड़ों की जान ले सकती हूं मगर उस समय मेरे किए कुछ भी न होगा जब किसी ऐसे से मुकाबला हो जाये जिसके पास कमलिनी का दिया हुआ इसी प्रकार का खंजर मौजूद होगा।
बाबा - तथापि इस बंगले में आकर तुम्हें कोई सता नहीं सकता।
मायारानी - ठीक है मगर मैं कब तक इसके अन्दर छिपकर बैठी रहूंगी आखिर भूख-प्यास भी तो कोई चीज है!
बाबा - मगर ऐसा होना बहुत मुश्किल है!
मायारानी - तो हर्ज ही क्या है अगर आप इसी समय दीवान के पास जायें मैं खूब जानती हूं कि वह आपकी सूरत देखते ही डर जायेगा।
बाबा - क्या तुम्हारी यही मर्जी है कि मैं इसी समय जाऊं?
मायारानी - हां, जाइए और अवश्य जाइए।
बाबा - अच्छा यही सही, मैं जाता हूं।
बाबाजी उसी समय उठ खड़े हुए और जमानिया की तरफ रवाना हो गए। मायारानी तब तक बराबर देखती रही जब तक कि वे पेड़ों की आड़ में होकर नजरों से गायब न हो गये। इसके बाद हंसकर नागर की तरफ देखा और कहा –
मायारानी - तुम समझती हो कि बाबाजी को मैंने जिद करके इसी समय यहां से क्यों धता बतायी?
नागर - जाहिर में जो कुछ तुमने बाबाजी से कहा है और जिस काम के लिए उन्हें भेजा है यदि उसके सिवाय और कोई मतलब है तो मैं कह सकती हूं कि मेरी समझ में कुछ न आया।
मायारानी - (हंसकर) अच्छा तो अब मैं समझा देती हूं बाबाजी के सामने मैंने अपने को जितना बताया वास्तव में मेरे दिल में उतना दुःख और रंज नहीं है, क्योंकि जिसका डर था, जिसके निकल जाने से मैं परेशान थी, जिसका प्रकट होना मेरे लिए मौत का सबब था और जो मुझसे बदला लिए बिना मानने वाला न था, अर्थात् गोपालसिंह, वह मेरे कब्जे में आ चुका। अब अगर दुःख है तो इतना ही कि कम्बख्त दारोगा ने उसे मारने न दिया। मगर मैं बिना उसकी जान लिए कब मानने वाली हूं, इसलिए मैंने किसी तरह बाबाजी को यहां से धता बतायी।
नागर - तो क्या तुम्हारा मतलब यह था कि बाबाजी यहां से बिदा हो जायें तो अपने कैदियों को मार डालो?
मायारानी - बेशक इसी मतलब से मैंने बाबाजी को यहां से निकाल बाहर किया क्योंकि अगर वह रहता तो कैदियों को मारने न देता और उसमें जो कुछ करामात है सो तुम देख ही चुकी हो। अगर ऐसा न होता तो मैं सुरंग ही में उन सभी को मारकर निश्चिंत हो जाती।
नागर - मगर बाबाजी ने उस कोठरी की ताली तो तुम्हें दी नहीं जिसमें कैदियों को रखा है?
मायारानी - ठीक है बाबाजी इस एक बात में चालाकी कर गए। कैदखाने की कोठरी क्योंकर खुलती है सो मुझे नहीं बताया और न कोई ताली वहां की मुझे दी, मगर यह मैं पहले ही समझे हुई थी कि बाबाजी कैदियों को जरूर किसी ऐसी जगह रखेंगे, जहां मैं जा नहीं सकती, इसलिए तो बाबाजी से मैंने कहा कि कैदियों को मैगजीन के बगल वाली कोठरी में कैद करो। बाबाजी मेरा मतलब नहीं समझ सके और धोखे में आ गये।
नागर - इससे तो यही जाहिर होता है कि उस कोठरी में तुम जा सकती हो।
मायारानी - नहीं, उस कोठरी में मैं नहीं जा सकती, मगर मैगजीन की कोठरी तक जा सकती हूं।
नागर - (जोर से हंसकर) अहा हा, अब मैं समझी! तुम्हारा मतलब यह कि मैगजीन में जहां बारूद रखा है वहां जाओ और उसमें आग लगाकर इस...।
मायारानी - बस-बस यही है, कैदी और कैदखाने की क्या बात इस बंगले का ही सत्यानाश कर दूंगी। कैदियों की हड्डी तक का तो पता लगेगा ही नहीं! अच्छा अब इस काम में विलम्ब न करना चाहिए, उठो और मेरे साथ चलकर उस कोठरी में अर्थात् मैगजीन में कोई ऐसी चीज रखो जो उस वक्त बारूद में आग लगावे, जब हम लोग यहां से निकलकर कुछ दूर चली जायें।
नागर - ऐसा ही होगा, यह कोई मुश्किल बात नहीं है।