मुगलकालीन होली
शायस्ता खँ के दरबार में होली
प्राचीन काल से अविरल होली मनाने की परंपरा को मुगलों के शासन में भी अवरुद्ध नहीं किया गया बल्कि कुछ मुगल बादशाहों ने तो धूमधाम से होली मनाने में अग्रणी भूमिका का निर्वाह किया। अकबर, हुमायूँ, जहाँगीर, शाहजहाँ और बहादुरशाह ज़फर होली के आगमन से बहुत पहले ही रंगोत्सव की तैयारियाँ प्रारंभ करवा देते थे। अकबर के महल में सोने चाँदी के बड़े-बड़े बर्तनों में केवड़े और केसर से युक्त टेसू का रंग घोला जाता था और राजा अपनी बेगम और हरम की सुंदरियों के साथ होली खेलते थे। शाम को महल में उम्दा ठंडाई, मिठाई और पान इलायची से मेहमानों का स्वागत किया जाता था और मुशायरे, कव्वालियों और नृत्य-गानों की महफ़िलें जमती थीं।
जहाँगीर के समय में महफ़िल-ए-होली का भव्य कार्यक्रम आयोजित होता था। इस अवसर पर राज्य के साधारण नागरिक बादशाह पर रंग डालने के अधिकारी होते थे। शाहजहाँ होली को 'ईद गुलाबी' के रूप में धूमधाम से मनाता था। बहादुरशाह ज़फर होली खेलने के बहुत शौकीन थे और होली को लेकर उनकी सरस काव्य रचनाएँ आज तक सराही जाती हैं। मुगल काल में होली के अवसर पर लाल किले के पिछवाड़े यमुना नदी के किनारे आम के बाग में होली के मेले लगते थे। मुगल शैली के एक चित्र में औरंगजेब के सेनापति शायस्ता खाँ को होली खेलते हुए दिखाया गया है। दाहिनी ओर दिए गए इस चित्र की पृष्ठभूमि में आम के पेड़ हैं महिलाओं के हाथ में पिचकारियाँ हैं और रंग के घड़े हैं।