Get it on Google Play
Download on the App Store

राक्षसी ढुंढी की कथा

राजा पृथु के समय के समय में ढुंढी नामक एक कुटिल राक्षसी थी। वह अबोध बालकों को खा जाती थी। अनेक प्रकार के जप-तप से उसने बहुत से देवताओं को प्रसन्न कर के उसने वरदान प्राप्त कर लिया था कि उसे कोई भी देवता, मानव, अस्त्र या शस्त्र नहीं मार सकेगा, ना ही उस पर सर्दी, गर्मी और वर्षा का कोई असर होगा। इस वरदान के बाद उसका अत्याचार बढ़ गया क्यों कि उसको मारना असंभव था। लेकिन शिव के एक शाप के कारण बच्चों की शरारतों से वह मुक्त नहीं थी। राजा पृथु ने ढुंढी के अत्याचारों से तंग आकर राजपुरोहित से उससे छुटकारा पाने का उपाय पूछा। पुरोहित ने कहा कि यदि फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन जब न अधिक सर्दी होगी और न गर्मी सब बच्चे एक एक लकड़ी लेकर अपने घर से निकलें। उसे एक जगह पर रखें और घास-फूस रखकर जला दें। ऊँचे स्वर में तालियाँ बजाते हुए मंत्र पढ़ें और अग्नि की प्रदक्षिणा करें। ज़ोर ज़ोर से हँसें, गाएँ, चिल्लाएँ और शोर करें। तो राक्षसी मर जाएगी। पुरोहित की सलाह का पालन किया गया और जब ढुंढी इतने सारे बच्चों को देखकर अग्नि के समीप आई तो बच्चों ने एक समूह बनाकर नगाड़े बजाते हुए ढुंढी को घेरा, धूल और कीचड़ फेंकते हुए उसको शोरगुल करते हुए नगर के बाहर खदेड़ दिया। कहते हैं कि इसी परंपरा का पालन करते हुए आज भी होली पर बच्चे शोरगुल और गाना बजाना करते हैं।