जय जय सिद्धिविनायक गणपत स...
जय जय सिद्धिविनायक गणपत सुंदर सुखकारी ।
वारो पंचारती बलि ज्याऊं मोहन दु:खहारी ॥ धृ ॥
चंदसुरजपरकास अनेक छबि लोभानी ।
नित है बाला भैरव गजमुख मूरत सो मानी ॥
कुंडल किरीट कलाससिभाल त्रिलोचन सुखदानी ।
एकदंत लंबोदर विषधर कटसों लपटानीं ॥ जय जय सिद्ध. ॥ १ ॥
भुजचारों अ भुखन लाजत तैसेहि आयुध जोर ।
कर कर हल्ला असुरनपर विजई आद पूजें च्यहूं ओर ।
कोमल अरुनचरन कल्हररवी क्या कहूं महिमाज्योर ।
सूर नर मुनी गुनी ध्यानसो मानत गोपदज्यल ॥ जय ॥ २ ॥
लाडिले जो आपहि तैसे वाहन मूषकसान ।
नृत्य करत तापर तबमोहे हरगौरीबेभान ॥
विद्या सकलकलाके स्वामी लेत बिबिघघनतान ।
छत्तीस बाजे लगरहे गन लेतहे गत परमान ॥ जय ॥ ३ ॥
कहांलों वखानु अपरंपार ज्यो गुण हे निगम अगाद ।
सत कहूं हितभावभगत तव ज्यो किरपालेसाद ॥
पावेंगो सुख भुगत मुगतको और नही लागेगो बाद ।
मंगिशसुत हे दास तुमारो घरकी ज्यानहर आद ॥ जय ॥ ४ ॥