चेरो राजवंश
बिहार में चेरो राजवंश के उदय का प्रमाण मिलता है, जिसका प्रमुख चेरो राज था। वह शाहाबाद, सारण, चम्पारण एवं मुजफ्फर तक विशाल क्षेत्र पर एक शक्तिशाली राजवंश के रूप में विख्यात है। १२वीं शताब्दी में चेरो राजवंश का विस्तार बनारस के पूरब में पटना तक तथा दक्षिण में बिहार शरीफ एवं गंगा तथा उत्तर में कैमूर तक था। दक्षिण भाग में चेरो सरदारों का एक मुस्लिम धर्म प्रचारक मंसुस्हाल्लाज शहीद था। शाहाबाद जिले में चार चेरो रान्य में विभाजित था, धूधीलिया चेरो, शाहाबाद के मध्य में स्थित प्रथम राज्य था, जिसका मुख्यालय बिहियाँ था। भोजपुर, शाहाबाद का दूसरा राज्य था, जिसका मुख्यालय तिरावन था। यहाँ का राजा सीताराम था। तीसरा राज्य का मुख्यालय चैनपुर था, जबकि देव मार्केण्ड चौथा राज्य का मुख्यालय था। इसमें चकाई तुलसीपुर रामगठवा पीरी आदि क्षेत्र सम्मिलित थे। राजा फूलचन्द यहाँ का राजा था। जिन्होंने जगदीशपुर में मेला शुरु किया। सानेपरी चेरा जो सोन नदी के आस-पास इलाकों में बसे थे जिनका प्रमुख महरटा चेरो था। इसके खिलाफ शेरशाह ने अभियान चलाया था। भोजपुर चेरो का प्रमुख कुकुमचन्द्र कारण था। चेरो का अन्तिम राजा मेदिनीराय था। मेदिनीराय की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र प्रताप राय राजा बना। इसके समय में तीन मुगल आक्रमण हुए अन्ततः १६६० ई. में इन्हें मुगल राज्य में मिला लिया गया।
ऐतिहासिक स्त्रोतों में भोजराज के वृतान्तानुसार जब धार (मालवा) पर १३०५ ई. में अलाउद्दीन खिलजी की सेना का अधिकार हो गया। भोजपुर के धार पुनः अधिकार करने में विफल रहा तब अपने पुत्र देवराज और अन्य राज पुत्र अनुयायियों के साथ अपना पैतृक स्थान छोड़कर कीकट (शाहाबाद एवं पलामू) क्षेत्रों में राजा मुकुन्द के शरण में आये। मूल स्थान उज्जैन के होने के कारण इन्हें उज्जैनी वंशीय राजपूत कहा गया। अतः इन्होने अपना राज्य भोजपुर बनाया। इनका प्रभाव क्षेत्र डुमरॉव, बक्सर एवं जगदीशपुर रहा जो ब्रिटिश शासनकाल तक बना रहा।