खलीफा हारूँ रशीद और बाबा अब्दुल्ला की कहानी
दुनियाजाद के प्रस्ताव और शहरयार की अनुमति से नई कहानी प्रारंभ करते हुए शहरजाद ने कहा कि कभी-कभी आदमी का चित्त प्रसन्न होता है और उसकी कोई साफ वजह भी नहीं होती। ऐसी स्थिति भी होती है जब आदमी खुश तो होता है लेकिन हजार सोचने पर भी उसकी समझ में नहीं आता कि खुशी क्यों हो रही है। ऐसी ही बात कभी-कभी चिंता और उद्विग्नता के बारे में भी होती है कि समझ में नहीं आता कि किस बात की चिंता है। खलीफा हारूँ रशीद एक दिन अपने महल में यूँ ही उदास बैठा था और उदासी का कोई कारण भी उसकी समझ में नहीं आ रहा था। इतने में उसका विश्वासयोग्य मंत्री जाफर आया। खलीफा ने न उसकी ओर देखा न उससे कोई बात की। मंत्री ने कहा, मालिक, इस दासानुदास की समझ में नहीं आ रहा है कि इस समय कौन सी चिंता सताए हुए है। मुझे मालूम हो तो मैं दूर करने का उपाय करूँ। खलीफा ने कहा, मुझे चिंता तो है किंतु मेरी समझ में खुद नहीं आ रहा है कि मैं क्यों चिंतित हूँ। मेरी चिंता दूर करने के पहले अगर बता सकते हो तो यह बताओ कि मेरी चिंता क्या है?
जाफर ने कहा, सरकार मेरी समझ में तो यह बात आती है कि आज महीने की पहली तारीख है जब आप वेश बदल कर बगदाद के गली-कूचों में प्रजा का हाल देखा करते हैं। आज आप यह बात भूल गए हैं किंतु अचेतन रूप से आप को यही चिंता सता रही है कि आप कर्तव्य का पालन नहीं कर रहे। खलीफा ने कहा, तुम सचमुच बड़े बुद्धिमान हो, अब मैं समझा कि मुझे यही परेशानी थी। मैं अपना वेश बदल रहा हूँ, तुम भी साधारण वेश में आ कर मेरा साथ दो। कुछ ही देर में जाफर अपने घर जा कर और वेश बदल कर आ गया और दोनों व्यक्ति महल के चोर दरवाजे से निकल कर शहर में आ गए। कुछ देर गलियों में घूम कर वे दोनों एक नाव में बैठे और नदी पार करके दूसरी ओर की बस्ती में पहुँचे और वहाँ कुछ देर घूमने के बाद पुल के रास्ते इस ओर वापस आने लगे। पुल पर एक अंधे भिखारी ने उनसे भीख माँगी। खलीफा ने उसे एक अशर्फी दी। अंधे ने खलीफा का हाथ पकड़ कर उसे आर्शीवाद दिया और बोला, हे भद्र पुरुष, तुमने अशर्फी दे कर बड़ी कृपा की है। अब तुम मेरे सिर पर एक धौल भी मारो क्योंकि मैं इसी योग्य हूँ कि भीख के साथ दंड भी पाऊँ। यह कह कर उसने खलीफा का हाथ छोड़ कर उसके वस्त्र का छोर पकड़ लिया ताकि खलीफा चला न जाए।
खलीफा को इससे बड़ा आश्चर्य हुआ और वह बोला, भाई, यह तुम क्या कह रहे हो? क्या तुम चाहते हो कि मैं तुम्हें मार कर अपने दान का फल भी नष्ट करूँ? यह कह कर खलीफा ने चाहा कि उससे दामन छुड़ा कर चला जाए किंतु अंधे ने उसका दामन पूरे जोर से पकड़ लिया और कहने लगा, मेरी गुस्ताखी माफ हो लेकिन तुम्हें मेरे सिर पर एक धौल तो मारनी पड़ेगी। अगर तुम धौल नहीं मारना चाहते तो अपनी अशर्फी वापस ले लो। मैंने ईश्वर के सामने कसम खाई है कि हर दाता से धौल जरूर खाऊँगा। इसका क्या कारण है यह लंबा किस्सा है। खलीफा ने मजबूर हो कर उसके सिर पर हलके से धौल मारी और आगे चल दिया।
किंतु उसे अंधे की अजीब प्रतिज्ञा के प्रति बड़ी उत्सुकता थी। उसने मंत्री से कहा, तुम जा कर अंधे से कहो कि वह कल दरबार में आ कर मुझे बताए कि उसने ऐसी अजीब प्रतिज्ञा क्यों की है। मंत्री उसके पास गया और उसे एक अशर्फी दे कर और एक हलकी-सी धौल लगा कर बोला, जिस आदमी ने तुम्हें अभी अशर्फी दी है वह खलीफा हारूँ रशीद है और उसने आदेश दिया है कि तुम कल दरबार में आओ और सब को बताओ कि तुम धौल लगाने को क्यों कहते हो। भिक्षुक ने कहा, जरूर आऊँगा।
वे दोनों कुछ दूर और चले तो देखा कि एक मैदान में मूल्यवान कपड़े पहने एक आदमी घोड़ी पर सवार है और उसे बेदर्दी से चाबुक से मार-मार कर और एड़ लगा-लगा कर एक मैदान में बेकार और बेदर्दी से दौड़ा रहा है। घोड़ी का दौड़ते-दौड़ते बुरा हाल हो गया था। उसके मुँह से झाग और खून निकल रहा था किंतु सवार को उस पर बिल्कुल तरस नहीं आ रहा था। वह बराबर उसे चाबुक मार-मार कर चक्कर दिए जा रहा था। खलीफा ने वहाँ खड़े एक आदमी से पूछा कि यह आदमी कौन है और घोड़ी को क्यों ऐसे सता रहा है। उसने कहा, मुझे यह नहीं मालूम। किंतु मैं रोज देखता हूँ कि यह आदमी अपनी घोड़ी को इसी तरह दौड़ाता हैं और अकारण ही चाबुक मार-मार कर मैदान के सैकड़ों चक्कर उसे दिलवाता है। यह सुन कर खलीफा ने अलग ले जा कर मंत्री से कहा कि मैं आगे जा रहा हँ। तुम इस जवान घुड़सवार से जा कर कहो कि कल उसी समय, जो भिक्षुक के लिए नियत किया गया है, दरबार में हाजिर हो और इस बात को बताए कि वह अपनी घोड़ी के साथ क्यों ऐसी कठोरता बरतता है। मंत्री ने यही किया और घुड़सवार को खलीफा का आदेश सुनाया।
इसके बाद वे दोनों आगे बढ़े तो देखा कि एक गली में एक भव्य भवन खड़ा है। खलीफा ने पूछा, क्या यह भवन मेरे किसी सरदार का है? मंत्री को स्वयं नहीं मालूम था कि किसका भवन है। अतएव उसने वहाँ के रहनेवालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि यह महल एक हव्वाल यानी रस्सी बट कर बेचनेवाले का है। जिसका नाम ख्वाजा हसन है। खलीफा को आश्चर्य हुआ कि कल दरबार में इस हव्वाल को भी आने को कहो ताकि मैं उससे इतना धनवान होने का रहस्य पूछूँ। मंत्री ने ऐसा ही किया।
दूसरे दिन सुबह की नमाज पढ़ने के बाद खलीफा दरबार में अपने सिंहासन पर बैठा। मंत्री ने उपर्युक्त तीनों व्यक्तियों को जो पहले ही वहाँ आ गए थे, खलीफा के सामने पेश किया। खलीफा ने अंधे भिखारी बाबा अब्दुला से पूछा, मैं जानना चाहता हूँ कि तुम दाता से धौल मारने को क्यों कहते हो। भिखारी ने उसकी आवाज पहचान कर अपना सिर जमीन से लगाया और बोला, पहले तो मैं कल की अभद्रता के लिए आपसे क्षमा माँगता हूँ, मैं नहीं जानता था कि आप कौन हैं। अब मैं अपना पूरा वृत्तांत आपके सम्मुख रखता हूँ।