किस्सा काले द्वीपों के बादशाह का
उस जवान ने अपना वृत्तांत कहना आरंभ किया। उसने कहा 'मेरे पिता का नाम महमूद शाह था। वह काले द्वीपों का अधिपति था, वे काले द्वीप चार विख्यात पर्वत हैं। उसकी राजधानी उसी स्थान पर थी जहाँ वह रंगीन मछलियों वाला तालाब है। मैं आपको ब्योरेवार सारी कहानी बता रहा हूँ जिससे आपको सारा हाल मालूम हो जाएगा। जब मेरा पिता सत्तर वर्ष का हुआ तो उसका देहांत हो गया और उसकी जगह मैं राजसिंहासन पर बैठा। मैंने अपने चाचा की बेटी के साथ विवाह किया। मैं उसे बहुत चाहता था और वह भी मुझे बहुत चाहती थी।
'पाँच वर्ष तक हम लोग सुखपूर्वक रहे फिर मुझे आभास हुआ कि उसका मेरे प्रति पहले जैसा प्रेम नहीं है। एक दिन दोपहर के भोजन के पश्चात वह स्नानगृह को गई और मैं अपने शयन कक्ष में लेटा रहा। दो दासियाँ जो रानी को पंखा झला करती थीं मेरे सिरहाने-पैंतानें बैठ गईं और मुझे आराम देने के लिए पंखा झलने लगीं। वे मुझे सोता जान कर धीमे-धीमे बातचीत करने लगीं। मैं सोया नहीं था किंतु उनकी बातें सुनने के लिए सोने का बहाना करने लगा। एक दासी बोली कि हमारी रानी बड़ी दुष्ट है कि ऐसे सुंदर और सुशील पति को प्यार नहीं करती। दूसरी बोली तू ठीक कहती है; रात में बादशाह को अकेला सोता छोड़ कर रानी न जाने कहाँ जाती हैं और बेचारे बादशाह को कुछ पता नहीं चलता। पहली ने कहा यह बेचारा जाने भी कैसे, रानी रोज रात को उसके शर्बत में कोई नशा मिलाकर उसे दे देती है, यह नशे से बिल्कुल बेहोश हो जाता है और रानी जहाँ चाहती है चली जाती है और प्रातः काल के कुछ पहले आकर इसे होश में लाने की सुगंधि सुँघा देती है।
'मेरे बुजुर्ग दोस्त, मुझे यह सुनकर इतना दुख हुआ कि उसे वर्णन करना मेरी सामर्थ्य के बाहर है। उस समय मैंने अपने क्रोध को सँभालना उचित समझा और, कुछ देर में इस तरह अँगड़ाइयाँ लेता हुआ उठा जैसे सचमुच सो रहा था। कुछ देर में रानी भी स्नान करके वापस आ गई। उस रात को भोजन के उपरांत में शयन करने के लिए लेटा तो रानी हमेशा की तरह मेरे लिए शर्बत का प्याला लाई। मैंने प्याला ले लिया और उसकी आँख बचा कर खिड़की से बाहर फेंक दिया और खाली प्याला उसके हाथ में ऐसे दे दिया जैसे कि मैंने पूरा शर्बत पी लिया है। फिर हम दोनों पलँग पर लेट गए। रानी ने मुझे सोता समझ कर पलँग से उठकर एक मंत्र जोर से पढ़ा और मेरी तरफ मुँह फेर कर कहा कि तू ऐसा सो कि कभी न जागे।
'फिर वह भड़कीले वस्त्र पहन कर कमरे से निकल गई। मैं भी पलँग से उठा और तलवार लेकर उसका पीछा करने लगा। वह मेरे केवल थोड़ा ही आगे थी और उसकी पग ध्वनि मुझे सुनाई दे रही थी। लेकिन मैं ऐसे धीरे-धीरे पाँव रख कर उसके पीछे-पीछे चल रहा था कि उसे मेरे आने का कोई आभास न मिले। वह कई द्वारों से होकर निकली। उन सभी में ताला लगे थे किंतु उसकी मंत्र-शक्ति से सभी ताले खुलते जा रहे थे। आखिरी दरवाजे से निकलकर जब वह बाग में गई तो मैं दरवाजे के पीछे छुप कर देखने लगा कि क्या करती है। वह बाग से आगे बढ़कर एक छोटे से वन के अंदर चली गई जो चारों ओर झाड़ियों से घिरा हुआ था। मैं भी एक अन्य मार्ग से होकर उस वन के अंदर चला गया और इधर-उधर आँखें घुमाकर उसे ढूँढ़ने लगा।
'कुछ देर में मैंने देखा कि वह एक पुरुष के साथ, जो हब्शी गुलाम लग रहा था, हाथ में हाथ दिए टहल रही है और शिकायत कर रही है कि मैं तो तुम्हें प्राणप्रण से प्रेम करती हूँ और रात-दिन तुम्हारे ही ध्यान में मग्न रहती हूँ और तुम्हारा यह हाल है कि मुझसे सीधे मुँह बात नहीं करते, हमेशा मुझे बुरा-भला कहा करते हो। आखिर तुम क्या चाहते हो? क्या तुम मेरे प्रेम की परीक्षा लेना चाहते हो? तुम मेरी शक्ति जानते हो। मेरे अंदर इतनी शक्ति है कि कहो तो सूर्योदय के पहले ही इन सारे महलों को भूमिगत कर दूँ और यह सारा ठाट-बाट बिल्कुल वीरान कर दूँ और यहाँ भेड़िये और उल्लुओं के अलावा कोई नहीं दिखाई दे और जो पत्थर यहाँ महलों में लगे हैं वह काफ पर्वत पर वापस उड़कर चले जाएँ। इतनी शक्ति रखते हुए भी मैं प्रेम के कारण तुम्हारे पैरों पर गिरी रहती हूँ और तुम्हें मेरी परवा ही नहीं।
'रानी यह बातें करती हुई अपने हब्शी प्रेमी के हाथ में हाथ दिए टहलती आ रही थी। जब वे लोग उस झाड़ी के पास पहुँचे जहाँ मैं छुपा हुआ था तो मैंने बाहर निकल कर हब्शी की गर्दन पर पूरे जोर से तलवार का वार किया। वह लड़खड़ा कर गिर गया। मैंने समझा कि वह मर गया और मैं अँधेरे में वहाँ से खिसक गया। मैंने रानी को छोड़ दिया क्योंकि वह मुझे प्यारी भी थी और मेरे चचा की बेटी भी। रानी अपने प्रेमी को गिरता देख कर विह्वल हो गई। उसने मंत्र बल से अपने प्रेमी को स्वस्थ करना चाहा किंतु वह केवल उसे मरने से बचा सकी। उस हब्शी की हालत ऐसी हो गई थी कि उसे न जीवित कहा जा सकता था न मृत। मैं धीरे-धीरे महल को लौटा। लौटते समय भी मैंने सुना कि रानी अपने प्रेमी के घायल होने पर करुण क्रंदन कर रही है। मैं उसे उसी तरह रोता-पीटता छोड़कर अपने शयन कक्ष में आया और पलँग पर लेट कर सो रहा।
'प्रातःकाल जागने पर मैंने रानी को फिर अपनी बगल में सोता पाया। यह स्पष्ट था कि वह वास्तव में सो नहीं रही थी केवल सोने का बहाना कर रही थी। मैं उसे यूँ ही छोड़ कर उठ खड़ा हुआ मैं अपने नित्य कर्मों को पूरा करके राजसी वस्त्र पहन कर अपने दरबार को चला गया। जब दिन भर राजकाज निबटाने के बाद मैं अपने महल में आया कि रानी ने शोक संताप सूचक काले वस्त्र पहन रखे हैं और बाल बिखराए हुए हैं और उन्हें नोच रही है। मैंने उससे पूछा कि यह तुम कैसा व्यवहार कर रही हो, यह संताप प्रदर्शन किस कारण है। वह बोली बादशाह सलामत, मुझे क्षमा करें मैंने आज तीन शोक समाचार पाए हैं इसीलिए काले कपड़े पहन मातम कर रही हूँ। मैंने पूछा कि वे कौन से समाचार हैं तो उसने बताया कि मेरी माता का देहांत हो गया, मेरे पिताजी एक युद्ध में मारे गए और मेरा भाई ऊँचाई से गिर कर मर गया। मैंने कहा समाचार बुरे हैं लेकिन तुम्हारे इस प्रकार मातम करने के लायक नहीं हैं, फिर भी वे तुम्हारे संबंधी थे और तुम्हें उनकी मृत्यु का शोक होना ही चाहिए।
'इसके बाद वह अपने कमरे में चली गई और मुझसे अलग होकर उसी प्रकार रोती-पीटती रही मैं उसके दुख का कारण जानता था इसलिए मैंने उसे समझाने बुझाने की चेष्ट भी न की। एक वर्ष तक यही हाल रहा। फिर उसने कहा कि मुझसे दुख नहीं सँभलता, मैं एक मकबरा बनवाकर उसमें रात दिन रहना चाहती हूँ। मैंने उसे ऐसा करने की भी अनुमति दे दी। उसने एक बड़ा भारी गुंबद वाली मकबरे जैसी इमारत बनवाई जो यहाँ से दिखाई देती है और उसका नाम शोकागार रखा। जब वह गृह बन चुका तो उसने अपने घायल प्रेमी हब्शी को वहाँ लाकर रखा और स्वयं भी वहाँ रहने लगी। वह दिन में उसे एक बार कोई औषधि खिलाती थी और जादू-मंत्र भी करती थी। फिर भी उसे ऐसा प्राणघातक घाव लगा था कि औषधि और मंत्रों के बल पर उसके केवल प्राण अटके हुए थे। वह न चल पाता था, न बोल पाता था, सिर्फ रानी की ओर टुक-टुक देखा करता था।
'रानी के प्रेम को जीवित रखने के लिए इतना ही यथेष्ट था। वह उससे घंटों प्रेम की बातें करके अपने चित्त को सांत्वना दिया करती थी। दिन में दो बार उसके समीप जाती थी और देर तक उसके पास बैठी रहती थी। मैं जानता था कि वह क्या करती है फिर भी सारे कार्य कलाप ऐसे साधारण रूप से करता रहा जैसे मुझे कोई बात विदित नहीं है। किंतु एक दिन मैं अपनी उत्सुकता नहीं रोक सका और मैंने जानना चाहा कि वह अपने प्रेमी के साथ क्या करती है। मैं उस मकबरे में ऐसी जगह छुप कर बैठ गया जहाँ से रानी और उसके प्रेमी की सारी बातें दिखाई-सुनाई दें लेकिन उनमें से कोई मुझे न देख सके।
'रानी अपने प्रेमी से कहने लगी कि इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या हो सकता है कि मैं तुम्हें ऐसी विवशता की अवस्था में देखती हूँ। तुम सच मानो, तुम्हारी दशा देखकर मुझे इतना कष्ट होता है कि जितना स्वयं तुम्हें भी नहीं होता होगा। मेरे प्राण, मेरे जीवनधार, मैं तुम्हारे सामने घंटों बैठी बातें करती हूँ और तुम मेरी एक बात का भी उत्तर नहीं देते। अगर तुम मुझसे एक बात भी करो तो मेरे चित्त को बड़ा धैर्य मिले बल्कि मुझे बड़ी प्रसन्नता हो। खैर, मैं तो तुम्हें देखकर ही धैर्य धारण किए रहती हूँ।
'रानी इसी प्रकार अपने प्रेमी के सम्मुख बैठ कर प्रलाप करती रही। मुझ मूर्ख से अपने रानी की यह दशा न देखी गई और उसका प्रेम मेरे हृदय में फिर उमड़ आया। मैं चुपचाप अपने महल में आ गया। कुछ देर में वह किसी काम से महल में आई तो मैंने कहा कि अब तुम ने अपने सगे संबंधियों के प्रति बहुत शोक व्यक्त कर लिया, अब साधारण रूप से रानी जैसा जीवन बिताओ। वह रोकर कहने लगी कि बादशाह सलामत मुझसे यह करने के लिए न कहें। मैं उसे जितना समझाता-बुझाता था उतना ही उसका रोना-पीटना बढ़ता जाता था। मैंने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया।
'वह इसी अवस्था में दो वर्ष और रही। मैं एक बार फिर शोकागार में गया कि रानी और हब्शी का हाल देखूँ। मैं फिर छुप कर बैठ गया और सुनने लगा। रानी कह रही थी कि प्यारे, अब तो दो वर्ष बीत गए हैं और तीसरा वर्ष लग गया है तुमने मुझसे एक बात भी नहीं की। मेरे रोने-चिल्लाने और विलाप करने का तुम्हारे हृदय पर कोई प्रभाव नहीं होता। जान पड़ता है कि तुम मुझे बात करने के योग्य नहीं समझते। इसीलिए तुम अब मुझे देखकर आँखें भी बंद कर लेते हो। मेरे प्राणप्रिय, एक बार आँखें खोल कर मुझे देखो तो। मैं तुम्हारे प्रेम में कितनी विह्वल हो रही हूँ।
'रानी की यह बातें सुनकर मेरे तन बदन में आग लग गई। मैं उस मकबरे से बाहर निकल आया और गुंबद की तरफ मुँह करके कहा ओ गुंबद तू इस स्त्री और उसे प्रेमी को जो मनुष्य रूपी राक्षस है निगल क्यों नहीं जाता। मेरी आवाज सुनकर मेरी रानी जो अपने हब्शी प्रेमी के पास बैठी थी क्रोधांध हो कर निकल आई और मेरे समीप आकर बोली अभागे दुष्ट तेरे कारण ही मुझे वर्षों से शोक ने जकड़ रखा है, तेरे ही कारण मेरे प्रिय की ऐसी दयनीय दशा हो गई है और वह इतनी लंबी अवधि से घायल पड़ा है। मैंने कहा हाँ मैंने ही इस कुकर्मी राक्षस को मारा है, यह इसी योग्य था और तू भी इस योग्य नहीं कि जीवित रहे क्योंकि तूने मेरी सारी इज्जत मिट्टी में मिला दी है।
'यह कहकर मैंने तलवार खींच ली और चाहा कि रानी की हत्या कर दूँ किंतु उसने कुछ ऐसा जादू किया कि मेरा हाथ उठ ही न सका। फिर उसने धीरे-धीरे कोई मंत्र पढ़ना आरंभ किया जिसे मैं बिल्कुल न समझ पाया। मंत्र पढ़ने के बाद वह बोली अब मेरे मंत्र की शक्ति देख, मैं आज्ञा देती हूँ कि तू कमर से ऊपर जीवित मनुष्य रह और कमर से नीचे पत्थर बन जा। उसके यह कहते ही मैं वैसा ही बन गया जैसा उसने कहा था अर्थात मैं न जीवित लोगों में रहा न मृतकों में। फिर उसने शोकागार से उठवाकर मुझे इस जगह लाकर रख दिया। उसने मेरे नगर को तालाब बना दिया और वहाँ एक भी मनुष्य नहीं रहने दिया। मेरे सभी दरबारी, प्रजाजन मेरे प्रति निष्ठा रखते थे अतएव उसने उन सबको अपने जादू से मछलियों में बदल दिया। इन में जो सफेद रंग की मछलियाँ हैं वे मुसलमान हैं, लाल रंग वाली अग्निपूजक, काली मछलियाँ ईसाई और पीले रंग वाली यहूदी हैं।
'मैं जिन चार काले द्वीपों का नरेश था उन्हें उस स्त्री ने चार पहाड़ियाँ बनाकर तालाब के चारों ओर स्थापित कर दिया। मेरे देश को उजाड़ और मुझे आधा पत्थर का बनाकर भी उसका क्रोध शांत नहीं हुआ। वह यहाँ रोज आती है और मेरे कंधों और पीठ पर सौ कोड़े इतने जोर से मारती है कि हर चोट पर मेरे खून छलछला आता है। फिर वह बकरी के बालों की बनी एक खुरदरी काली कमली मेरे कंधों की ओर पीठ पर डालती है और उसके ऊपर सोने की तारकशी वाला भारी लबादा डालती है। यह वस्त्र वह मेरे सम्मान के लिए नहीं बल्कि मुझे पीड़ा पहुँचाने के लिए करती है और मेरा मजाक उड़ाकर कहती है कि दुष्ट तू तो चार-चार द्वीपों का बादशाह है फिर अपने को इस अपमान और दुर्दशा से क्यों नहीं बचाता।'
शहरजाद ने कहानी जारी रखते हुए कहा कि इतना वृत्तांत बताने के बाद काले द्वीपों के बादशाह ने दोनों हाथ आकाश की ओर उठाए और बोला, 'हे सर्वशक्तिमान परमात्मा, हे समस्त विश्व के सिरजन हार, यदि तेरी प्रसन्नता इसी में है कि मुझ पर इसी प्रकार अन्याय और अत्याचार हुआ करे तो मैं इस बात को भी प्रसन्नता से सहूँगा। मैं हर हालत में तुझे धन्यवाद दूँगा। मुझे तेरी दयालुता और न्याय प्रियता से पूर्ण आशा है कि तू एक न एक दिन मुझे इस दारुण दुख से अवश्य छुड़ाएगा।
वहाँ आने वाले खोजकर्ता बादशाह ने जब यह सारी कहानी सुनी तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह विचार करने लगा कि इस निर्दोष जवाब बादशाह का दुख कैसे दूर किया जाए और उसकी कुलटा रानी को कैसे दंड दिया जाए। उसने उससे पूछा कि तुम्हारी निर्लज्ज रानी कहाँ रहती है और उसका अभागा प्रेमी जिसके पास वह रोज जाती है किस स्थान पर पड़ा हुआ है। जवान बादशाह ने उससे कहा कि मैंने आपको पहले ही बताया था कि वह उस शोकागार में रखा गया है जिस पर एक गुंबद बना हुआ है। उस शोकागार को एक रास्ता इस कमरे से नीचे होकर भी है जहाँ इस समय हम लोग हैं। वह जादूगरनी कहाँ रहती है यह बात मुझे ज्ञात नहीं है, किंतु प्रति दिवस प्रातः काल वह मेरे पास मुझे दंड देने के लिए आती है और मेरी मारपीट करने के बाद फिर अपने प्रेमी के पास जाकर उसे कोई अरक पिलाती है जिससे वह जीवित बना रहता है।
आगंतुक बादशाह ने कहा कि वास्तव में तुमसे अधिक दया योग्य व्यक्ति नहीं होगा, तुम्हारा जीवन वृत्त तो ऐसा है कि इसे इतिहास में लिख कर अमिट कर दिया जाए। तुम अधिक चिंता न करो। मैं तुम्हारे दुख के निवारण का भरसक प्रयत्न करूँगा। इसके बाद आगंतुक बादशाह उसी कक्ष में सो रहा। क्योंकि रात का समय हो गया था। बेचारा काले द्वीपों का बादशाह उसी प्रकार बैठा रहा और जागता रहा। स्त्री के जादू ने उसे लेटने और सोने के योग्य ही नहीं रखा था।
दूसरे दिन तड़के ही आगंतुक बादशाह गुप्त मार्ग से शोकागार में प्रविष्ट हो गया। शोकागार में सैकड़ों स्वर्ण दीपक जल रहे थे और वह ऐसा सजा हुआ था कि बादशाह को अत्यंत आश्चर्य हुआ। फिर वह उस स्थान पर गया जहाँ घायल अवस्था में रानी का हब्शी प्रेमी पड़ा हुआ था। वहाँ जाकर उसने तलवार का ऐसा हाथ मारा कि वह अधमरा आदमी तुरंत मर गया। बादशाह ने उसका शव घसीट कर पिछवाड़े बने हुए एक कुएँ में डाल दिया और शोकागार में वापस आकर नंगी तलवार अपने पास छुपाकर उस हब्शी की जगह खुद लेटा रहा ताकि रानी के आने पर उसे मार सके।
थोड़ी देर में जादूगरनी उसी भवन में पहुँची जहाँ काले द्वीपों का बादशाह पड़ा हुआ था। उसने उसे इस बेदर्दी से मारना शुरू किया कि सारी इमारतें उसकी चीख पुकार और आर्तनाद से गूँजने लगीं। वह चिल्ला-चिल्ला कर हाथ रोकने और दया करने की प्रार्थना करता रहा किंतु वह दुष्ट उसे बगैर सौ कोड़े मारे न रही। इसके बाद सदा की भाँति उस पर खुरदरी कमली और उसके उपर जरी का भारी लबादा डाल कर शोकागार में आई और बादशाह के सन्मुख, जिसे वह अपना प्रेमी समझी थी, बैठकर विरह व्यथा कहने लगी।
वह बोली, 'प्रियतम मैं कितनी अभागी हूँ कि तुझे प्राणप्रण से चाहती हूँ और तू है मुझ से तनिक भी प्रेम नहीं करता। मेरा दिन रात चैन हराम है। तू अपने कष्टों का कारण मुझे ही समझा करता है।
यद्यपि मैंने तेरे लिए अपने पति पर कैसा अत्याचार और अन्याय किया है। फिर भी मेरा क्रोध शांत नहीं हुआ है और मैं चाहती हूँ कि उसे और कठोर दंड दूँ क्योंकि उसी अभागे ने तेरी ऐसी दशा की है। लेकिन तू तो मुझसे कुछ कहता ही नहीं, हमेशा होठ सिए रहता है। शायद तू चाहता है कि अपनी चुप्पी से ही मुझे इतना व्यथित कर दे कि मैं तड़प कर मर जाऊँ। भगवान के लिए अधिक नहीं तो एक बात तो मुझसे कर ले कि मेरे दुखी मन को सांत्वना मिले।'
बादशाह ने उनींदे स्वर में कहा, 'लाहौल बला कुव्वत इला बिल्ला वहेल वि अली वल अजीम (सर्वोच्च और महान परमात्मा के अलावा कोई न शक्तिमान है न डरने योग्य) बादशाह ने घृणा पूर्वक यह आयत पढ़ी थी क्योंकि इस्लामी विश्वास के अनुसार इस आयत को पढ़ने से शैतान भाग जाता है; किंतु रानी के लिए कुछ भी सुनना सुखद आश्चर्य था। वह बोली कि प्यारे यह सचमुच तू बोला था कि मुझे कुछ धोखा हुआ है। बादशाह ने हब्शियों के से स्वर में घृणा पूर्वक कहा, 'तुम इस योग्य नहीं हो कि तुम से बात करूँ या तुम्हारे किसी प्रश्न का उत्तर दूँ।' रानी बोली 'प्राण प्रिय, मुझसे ऐसा क्या अपराध हुआ है जो तुम ऐसा कह रहे हो।' बादशाह ने कहा, 'तुम बहुत जिद्दी हो, किसी की नहीं सुनती इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा। अब पूछती हो तो कहता हूँ। तुम्हारे पति के रात दिन चिल्लाने से मेरी नींद हराम हो गई है। अगर उसकी चीख पुकार न होती तो मैं कब का अच्छा हो गया होता और खूब बातचीत कर पाता। लेकिन तूने एक तो उसे आधा पत्थर का बना दिया है और फिर उसे रोज इतना मारा भी करती है। वह कभी सो नहीं पाता और रात दिन रोया और कराहा करता है और मेरी नींद भी नहीं लगने देता। अब तू खुद ही बता क्या तुझसे बोलूँ और क्या बात करूँ।
जादूगरनी ने कहा कि तुम क्या यह चाहते हो कि मैं उसे मारना बंद कर दूँ और उसे पहले जैसी स्थिति में ले आऊँ। अगर तुम्हारी खुशी इसी में है तो मैं अभी ऐसा कर सकती हूँ। हब्शी बने हुए बादशाह ने कहा कि मैं सचमुच यही चाहता हूँ कि तू इसी समय जाकर उसे दुख से पूरी तरह छुड़ा दे ताकि उसकी चीख पुकार से मेरे आराम में विघ्न न पड़े। रानी ने शोकागार के एक कक्ष में जाकर एक प्याले में पानी लेकर उस पर कुछ मंत्र फूँका कि वह उबलने लगा। फिर वह उस कक्ष में गई जहाँ उसका पति था और उस पर वह पानी छिड़क कर बोली, 'यदि परमेश्वर तुझसे अत्यंत अप्रसन्न है और उसने तुझे ऐसा ही पैदा किया है तो इसी सूरत में रह किंतु यदि तेरा स्वाभाविक रूप यह नहीं है तो मेरे जादू से अपना पूर्व रूप प्राप्त कर ले।' रानी के यह कहते ही वह बादशाह अपने असली रूप में आ गया और प्रसन्न होकर उठ खड़ा हुआ। रानी ने कहा कि तू खैरियत चाहता है तो फौरन यहाँ से भाग जा, फिर कभी यहाँ आया तो जान से मार दूँगी। वह बेचारा चुपचाप निकल गया और एक और इमारत में छुप कर देखने लगा कि क्या होता है।
रानी वहाँ से फिर शोकागार में आई और हब्शी बने हुए बादशाह से बोली कि जो तुम चाहते थे वह मैंने कर दिया अब तुम उठ बैठो जिससे मुझे चैन मिले। बादशाह हब्शियों जैसे स्वर में बोला, 'तुमने जो कुछ किया है उससे मुझे आराम तो मिला है लेकिन पूरा आराम नहीं। तुम्हारा अत्याचार अभी पूरी तरह से दूर नहीं हुआ है और मेरा चैन अभी पूरा नहीं लौटा है। तुमने सारे नगर को उजाड़ रखा है और उसके निवासियों को मछली बना दिया है। हर रोज आधी रात को सारी मछलियाँ पानी से सिर निकाल निकाल कर हम दोनों को कोसा करती हैं इसी कारण मैं निरोग नहीं हो पाता। तुम पहले शहर और उसके निवासियों को पहले जैसा बना दो फिर मुझसे बात करो। यह करने के बाद तुम अपनी बाँह का सहारा देकर मुझे उठाना।'
रानी इस बात पर भी तुरंत राजी हो गई। वह तालाब के किनारे गई और थोड़ा सा अभिमंत्रित जल उस तालाब पर छिड़क दिया। इससे वे सारी मछलियाँ नर नारी बन गई और तालाब की जगह सड़कों, मकानों और दुकानों से भरा नगर बन गया। बादशाह के साथ आए दरबारी और अंग रक्षक जो उस समय तक वापस अपने नगर नहीं गए थे इस प्रकार अपने को अपने देश से बहुत दूर एक बिल्कुल नए शहर में देखकर अत्यंत आश्चर्यन्वित हुए।
सब कुछ पहले जैसा बना कर वह जादूगरनी फिर शोकागार में गई और हँसी खुशी से चहकते हुए कहने लगी कि प्यारे तुम्हारी इच्छानुसार मैंने सब कुछ पहले जैसा ही कर दिया है ताकि तुम पूर्णतः स्वस्थ और निरोग हो जाओ। अब तुम उठो और मेरे हाथ में हाथ देकर चलो। बादशाह ने हब्शियों के स्वर में कहा कि मेरे पास आओ। वह पास गई। बादशाह बोला और पास आओ। वह उसके बिल्कुल पास आ गई। बादशाह ने उछल कर जादूगरनी की बाँहें जकड़ ली और उसे एक क्षण भी सँभलने के लिए न दिया और उस पर इतने जोर से तलवार चलाई कि उसके दो टुकड़े हो गए। बादशाह ने उसकी लाश भी उसी कुएँ में डाल दी जिसमें हब्शी की लाश फेंकी थी। फिर बाहर निकल कर काले द्वीपों के बादशाह को खोजने लगा। वह भी पास के एक भवन में छुपा हुआ उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। आगंतुक बादशाह ने उससे कहा अब किसी का डर न करो, मैंने रानी को ठिकाने लगा दिया है।
काले द्वीपों के बादशाह ने सविनय उसका आभार प्रकट किया और पूछा अब आप का इरादा क्या अपने नगर को जाने का है। उसने जवाब दिया कि नगर ही जाऊँगा लेकिन तुम अभी हमारे साथ चलो, हमारे महल में कुछ दिन भोजन और आराम करो, फिर अपने काले द्वीपों को चले जाना।
जवान बादशाह ने कहा क्या आप अपने नगर को यहाँ से निकट समझे हुए हैं। उसने कहा इसमें क्या संदेह है? मैं तो चार पाँच घड़ी के अंदर ही तुम्हारे महल में आ गया था। काले द्वीपों के बादशाह ने कहा, 'आपका देश यहाँ से पूरे एक वर्ष की राह पर है, उस जादूगरनी ने अपने मंत्र बल से मेरे देश को आपके देश के निकट पहुँचा दिया था। अब मेरा देश फिर अपनी जगह पर वापस आ गया है।'
आगंतुक बादशाह को कुछ चिंता हुई। काले द्वीपों के बादशाह ने कहा, 'यह दूरी और निकटता कुछ बात नहीं है। मैं आपके उपकार से जीवन भर उॠण नहीं हो सकता। आगंतुक बादशाह अब भी चकराया हुआ था कि अपने देश से इतनी दूर कैसे पहुँच गया। काले द्वीपों के बादशाह ने कहा कि आप को इतना आश्चर्य क्यों हो रहा है, आप तो उस स्त्री की जादू की शक्ति स्वयं ही देख चुके हैं। आगंतुक बादशाह ने कहा कि खैर अगर दोनों देशों में इतनी दूरी है तो तुम मेरे देश न जाना चाहो तो न चलो; लेकिन मेरे कोई पुत्र नहीं है इसलिए मैं चाहता हूँ कि मैं तुम्हें अपने देश का युवराज भी बना दूँ ताकि मेरे मरणोपरांत मेरे राज को भी तुम सँभालो।
काले द्वीपों के बादशाह ने यह स्वीकार कर लिया और तीन सप्ताह की तैय्यारी के बाद सेना और कोष का प्रबंध करके आगंतुक बादशाह के साथ उसकी राजधानी के लिए उसके साथ रवाना हुआ। उसने सौ ऊँटों पर भेंट की बहुमूल्य वस्तुएँ लदवाई और अपने पचास विश्वस्त सामंतों और भेंट का सामान लेकर वह आगंतुक बादशाह के साथ उसकी राजधानी की ओर रवाना हुआ। जब उस बादशाह की राजधानी कुछ दिन की राह पर रह गई तो हरकारे भेज दिए गए कि बादशाह के पुनरागमन का निवास उसके भृत्यों और नगर निवासियों को दे दें।
जब वह अपने नगर के निकट पहुँचा तो उसके सारे सरदार और दरबारी उसके स्वागत को नगर के बाहर आए और बादशाह की वापसी पर भगवान को धन्यवाद देने के बाद बताया कि राज्य में सब कुशल है। नगर में पहुँचने पर बादशाह का नगर निवासियों ने हार्दिक स्वागत किया।
बादशाह ने पूरा हाल कह कर काले द्वीपों के बादशाह को अपना युवराज बनाने की घोषणा की और दो दिन बाद उसे समारोह पूर्वक युवराज बना दिया और सामंतों, दरबारियों ने युवराज को भेंट दी। कुछ दिन बाद बादशाह और युवराज में मछुवारे को बुलाकर उसे अपार धन दिया क्योंकि उसी के कारण युवराज का कष्ट कटा था।