तीसरा अध्याय / बयान 15
चुनार के पास दो पहाड़ियों के बीच के एक नाले के किनारे शाम के वक्त पंडित बद्रीनाथ, रामनारायण, पन्नालाल, नाज़िम और अहमद बैठे आपस में बातें कर रहे हैं।
नाज़िम-क्या कहें हमारा मालिक तो बहिश्त में चला गया, तकलीफ उठाने को हम रह गये।
अहमद-अभी तक इसका पता नहीं लगा कि उन्हें किसने मारा।
बद्री-उन्हें उनके पापों ने मारा और तुम दोनों की भी बहुत जल्द वही दशा होगी। कहने के लिए तुम लोग ऐयार कहलाते हो मगर बेईमान और हरामखोर पूरे दर्जे के हो इसमें कोई शक नहीं।
नाज़िम-क्या हम लोग बेईमान हैं?
बद्री-जरूर, इसमें भी कुछ कहना है? जब तुम अपने मालिक महाराज जयसिंह के न हुए तो किसके होवोगे। आप भी गारत हुए, क्रूरसिंह की भी जान ली,और हमारे राजा को भी चौपट बल्कि कैद कराया। यही जी में आता है कि खाली जूतियां मार-मारकर तुम दोनों की जान ले लूं।
अहमद-जुबान सम्हालकर बातें करो नहीं तो कान पकड़ के उखाड़ लूंगा!
अहमद का इतना कहना था कि मारे गुस्से के बद्रीनाथ कांप उठे। उसी जगह से पत्थर का एक टुकड़ा उठाकर इस जोर से अहमद के सिर में मारा कि वह तुरंत जमीन सूंघकर दोजख (नर्क) की तरफ रवाना हो गया। उसकी यह कैफियत देख नाज़िम भागा मगर बद्रीनाथ तो पहले ही से उन दोनों की जान का प्यासा हो रहा था, कब जाने देता। बड़ा-सा पत्थर छागे[1] में रखकर मारा जिसकी चोट से वह भी जमीन पर गिर पड़ा और पन्नालाल वगैरह ने पहुंचकर मारे लातों के भुरता करके उसे भी अहमद के साथ क्रूर की ताबेदारी को रवाना कर दिया। इन लोगों के मरने के बाद फिर चारों ऐयार उसी जगह आ बैठे और आपस में बातें करने लगे।
पन्ना-अब हमारे दरबार की झंझट दूर हुई।
बद्री-महाराज को जरा भी रंज न होगा।
पन्ना-किसी तरह गद्दी बचाने की फिक्र करनी चाहिए। महाराज जयसिंह ने बेतरह आ घेरा है और बिना महाराज के फौज मैदान में निकलकर लड़ नहीं सकती।
चुन्नी-आखिर किले में भी रहकर कब तक लड़ेंगे? हम लोगों के पास सिर्फ दो महीने के लायक गल्ला किले के अंदर है, इसके बाद क्या करेंगे।
राम-यह भी मौका न मिला कि कुछ गल्ला बटोर के रख लेते।
बद्री-एक बात है, किसी तरह महाराज जयसिंह को उनके लश्कर से उड़ाना चाहिए, अगर वह हम लोगों की कैद में आ जायं तो मैदान में निकलकर उनकी फौज को भगाना मुश्किल न होगा।
पन्ना-जरूर ऐसा करना चाहिए, जिसका नमक खाया उसके साथ जान देना हम लोगों का धर्म है।
राम-हमारे राजा ने भी तो बेईमानी पर कमर बांधी है। बेचारे कुंवर वीरेन्द्रसिंह का क्या दोष है?
चुन्नी-चाहे जो हो मगर हम लोगों को मालिक का साथ देना जरूरी है।
बद्री-नाजिम और अहमद ये ही दोनों हमारे राजा पर क्रूर ग्रह थे, सो निकल गये। अबकी दफे जरूर दोनों राजों में सुलह कराऊंगा, तब वीरेन्द्रसिंह की चोबदारी नसीब होगी। वाह, क्या जवांमर्द और होनहार कुमार हैं?
पन्ना-अब रात भी बहुत गई, चलो कोई ऐयारी करके महाराज जयसिंह को गिरफ्तार करें और गुप्त राह से किले में ले जाकर कैर करें।
बद्री-हमने एक ऐयारी सोची है, वही ठीक होगी।
पन्ना-वह क्या?
बद्री-हम लोग चल के पहले उनके रसोइये को फांसें। मैं उसकी शक्ल बनाकर रसोई बनाऊं और तुम लोग रसोईघर के खिदमतगारों को फांसकर उनकी शक्ल बना हमारे साथ काम करो। मैं खाने की चीजों में बेहोशी की दवा मिलाकर महाराज को और बाद में उन लोगों को भी खिलाऊंगा जो उनके पहरे पर होंगे, बस फिर हो गया।
पन्ना-अच्छी बात है, तुम रसोइया बनो क्योंकि ब्राह्मण होगे, तुम्हारे हाथ का महाराज जयसिंह खायेंगे तो उनका धर्म भी न जायगा, इसका भी ख्यालजरूर होना चाहिए, मगर एक बात का ध्यान रहे कि चीजों में तेज बेहोशी की दवा न पड़ने पाये।
बद्री-नहीं-नहीं, क्या मैं ऐसा बेवकूफ हूं, क्या मुझे नहीं मालूम कि राजे लोग पहले दूसरे को खिलाकर देख लेते हैं! ऐसी नरम दवा डालूंगा कि खाने के दो घंटे बाद तक बिल्कुल न मालूम पड़े कि हमने बेहोशी की दवा मिली हुई चीजें खाई हैं।
राम-बस, यह राय पक्की हो गई, अब यहां से उठो।
शब्दार्थ:
↑ छागा-एक किस्म का छीका (ढेलवांस) होता है। छीके में चारों तरफ डोरी रहती है मगर छागे में दो ही तरफ। एक तरफ की डोरी कलाई में पहिर लेते हैं और दूसरी डोरी चुटकी में थामकर बीच में से घुमाकर निशाना मारते हैं।