तीसरा अध्याय / बयान 2
कुंअर वीरेन्द्रसिंह बैठे फतहसिंह से बातें कर रहे थे कि एक मालिन जो जवान और कुछ खूबसूरत भी थी हाथ में जंगली फूलों की डाली लिये कुमार के बगल से इस तरह निकली जैसे उसको यह मालूम नहीं कि यहां कोई है। मुंह से कहती जाती थी-”आज जंगली फूलों का गहना बनाने में देर हो गई, जरूर कुमारी खफा होंगी, देखें क्या दुर्दशा होती है।”
इस बात को दोनों ने सुना। कुमार ने फतहसिंह से कहा, “मालूम होता है यह उन्हीं की मालिन है, इसको बुला के पूछो तो सही।” फतहसिंह ने आवाज दी, उसने चौंककर पीछे देखा, फतहसिंह ने हाथ के इशारे से फिर बुलाया, वह डरती-कांपती उनके पास आ गई। फतहसिंह ने पूछा, “तू कौन है और फूलों के गहने किसके वास्ते लिये जा रही है?”
उसने जवाब दिया, “मैं मालिन हूं, यह नहीं कह सकती कि किसके यहां रहती हूं, और ये फूल के गहने किसके वास्ते लिये जाती हूं। आप मुझको छोड़ दें, मैं बड़ी गरीब हूं, मेरे मारने से कुछ हाथ न लगेगा, हाथ जोड़ती हूं, मेरी जान मत मारिए।”
ऐसी-ऐसी बातें कह मालिन रोने और गिड़गिड़ाने लगी। फूलों की डलिया आगे रखी हुई थी जिनकी तेज खुशबू फैल रही थी। इतने में एक नकाबपोश वहां आ पहुंचा और कुमार की तरफ मुंह करके बोला, “आप इसके फेर में न पड़ें, यह ऐयार है, अगर थोड़ी देर और फूलों की खुशबू दिमाग में चढ़ेगी तो आप बेहोश हो जायेंगे।”
उस नकोबपोश ने इतना कहा ही था कि वह मालिन उठकर भागने लगी, मगर फतहसिंह ने झट हाथ पकड़ लिया। सवार उसी वक्त चला गया। कुमार ने फतहसिंह से कहा, “मालूम नहीं सवार कौन है, और मेरे साथ यह नेकी करने की उसको क्या जरूरत थी?” फतहसिंह ने जवाब दिया, “इसका हाल मालूम होना मुश्किल है क्योंकि वह खुद अपने को छिपा रहा है, खैर जो हो यहां ठहरना मुनासिब नहीं, देखिये अगर यह सवार न आता तो हम लोग फंस ही चुके थे।”
कुमार ने कहा, “तुम्हारा यह कहना बहुत ठीक है, खैर अब चलो और इसको अपने साथ लेते चलो, वहां चलकर पूछ लेंगे कि यह कौन है।” जब कुमार अपने खेमे में फतहसिंह और उस ऐयार को लिये हुए पहुंचे तो बोले, “अब इससे पूछो इसका नाम क्या है?” फतहसिंह ने जवाब दिया, “भला यह ठीक-ठीक अपना नाम क्यों बतावेगा, देखिये मैं अभी मालूम किये लेता हूं।”
फतहसिंह ने गरम पानी मंगवाकर उस ऐयार का मुंह धुलाया, अब साफ पहचाने गये कि यह पंडित बद्रीनाथ हैं। कुमार ने पूछा, “क्यों अब तुम्हारे साथ क्या किया जाय?” बद्रीनाथ ने जवाब दिया, “जो मुनासिब हो कीजिये।”
कुमार ने फतहसिंह से कहा, “इनकी तुम हिफाजत करो, जब तेजसिंह आवेंगे तो वही इनका फैसला करेंगे!” यह सुन फतहसिंह बद्रीनाथ को ले अपने खेमे में चले गये। शाम को बल्कि कुछ रात बीते तेजसिंह, देवीसिंह और ज्योतिषीजी लौटकर आये और कुमार के खेमे में गए। उन्होंने पूछा, “कहो कुछ पता लगा?”
तेजसिंह-कुछ पता न लगा, दिन भर परेशान हुए मगर कोई काम न चला।
कुमार-(ऊंची सांस लेकर) फिर अब क्या किया जायेगा?
तेज-किया क्या जायेगा, आज-कल में पता लगेगा ही।
कुमार-हमने भी एक ऐयार को गिरफ्तार किया है।
तेज-हैं, किसको? वह कहां है!
कुमार-फतहसिंह के पहरे में है, उसको बुला के देखो कौन है!
देवीसिंह को भेजकर फतहसिंह को मय ऐयार के बुलवाया। जब बद्रीनाथ की सूरत देखी तो खुश हो गये और बोले, “क्यों, अब क्या इरादा है?”
बद्री-इरादा जो पहले था वही अब भी है?
तेज-अब भी शिवदत्त का साथ छोड़ोगे या नहीं?
बद्री-महाराज शिवदत्त का साथ क्यों छोड़ने लगे?
तेज-तो फिर कैद हो जाओगे।
बद्री-चाहे जो हो।
तेज-यह न समझना कि तुम्हारे साथी लोग छुड़ा ले जायेंगे, हमारा कैदखाना ऐसा नहीं है।
बद्री-उस कैदखाने का हाल भी मालूम है, वहां भेजो भी तो सही।
देवी-वाह रे निडर।
तेजसिंह ने फतहसिंह से कहा, “इनके ऊपर सख्त पहरा मुकर्रर कीजिए। अब रात हो गई है, कल इनको बड़े घर पहुंचाया जायगा।”
फतहसिंह ने अपने मातहत सिपाहियों को बुलाकर बद्रीनाथ को उनके सुपुर्द किया, इतने ही में चोबदार ने आकर एक खत उनके हाथ में दी और कहा कि एक नकाबपोश सवार बाहर हाजिर है जिसने यह खत राजकुमार को देने के लिए दी है!” तेजसिंह ने लिफाफे को देखा, यह लिखा हुआ था-
“कुंअर वीरेन्द्रसिंहजी के चरण कमलों में-”
तेजसिंह ने कुमार के हाथ में दिया, उन्होंने खोलकर पढ़ा-
बरवा
“सुख सम्पत्ति सब त्याग्यो जिनके हेत।
वे निरमोही ऐसे, सुधिहु न लेत॥
राज छोड़ बन जोगी भसम रमाय।
विरह अनल की धूनी तापत हाय॥"
-कोई वियोगिनी
पढ़ते ही आंखें डबडबा आईं, बंधे गले से अटककर बोले, “उसको अंदर बुलाओ जो खत लाया है।” हुक्म पाते ही चोबदार उस नकाबपोश सवार को लेने बाहर गया मगर तुरंत वापस आकर बोला-”वह सवार तो मालूम नहीं कहां चला गया!”
इस बात को सुनते ही कुमार के जी को कितना दुख हुआ वे ही जानते होंगे। वह खत तेजसिंह के हाथ में दे दी, उन्होंने भी पढ़ी, “इसके पढ़ने से मालूम होता है यह खत उसी ने भेजी है जिसकी खोज में दिन भर हम लोग हैरान हुए और यह तो साफ ही है कि वह भी आपकी मुहब्बत में डूबी हुई है, फिर आपको इतना रंज न करना चाहिए।”
कुमार ने कहा, “इस खत ने तो इश्क की आग में घी का काम किया। उसका ख्याल और भी बढ़ गया घट कैसे सकता है! खैर अब जाओ तुम लोग भी आराम करो, कल जो कुछ होगा देखा जायगा।”