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दूसरा अध्याय / बयान 22

चार दिन रास्ते में लगे, पांचवें दिन चुनार की सरहद में फौज पहुंची। महाराज शिवद्त्त के दीवान ने यह खबर सुनी तो घबड़ा उठे, क्योंकि महाराजशिवद्त्त तो कैद हो ही चुके थे, लड़ने की ताकत किसे थी। बहुत-सी नजर वगैरह लेकर महाराज जयसिंह से मिलने के लिए हाजिर हुआ। खबर पाकर महाराज ने कहला भेजा कि मिलने की कोई जरूरत नहीं, हम चुनार फतह करने नहीं आये हैं, क्योंकि जिस दिन तुम्हारे महाराज हमारे हाथ फंसे उसी रोज चुनार फतह हो गया, हम दूसरे काम से आये हैं, तुम और कुछ मत सोचो।”

लाचार होकर दीवान साहब को वापस जाना पड़ा, मगर यह मालूम हो गया कि फलाने काम के लिए आये हैं। आज तक इस तिलिस्म का हाल किसी को भी मालूम न था, बल्कि किसी ने उस खण्डहर को देखा तक न था। आज यह मशहूर हो गया कि इस इलाके में कोई तिलिस्म है जिसको कुंअर वीरेन्द्रसिंह तोड़ेंगे। उस तिलिस्मी खण्डहर का पता लगाने के लिए बहुत से जासूस इधर-उधर भेजे गये। तेजसिंह और ज्योतिषीजी भी गये। आखिर उसका पता लग ही गया। दूसरे दिन मय फौज के सभी का डेरा उसी जंगल में जा लगा जहां वह तिलिस्मी खण्डहर था।

चंद्रकांता दूसरा अध्याय

देवकीनन्दन खत्री
Chapters
दूसरा अध्याय / बयान 1 दूसरा अध्याय / बयान 2 दूसरा अध्याय / बयान 3 दूसरा अध्याय / बयान 4 दूसरा अध्याय / बयान 5 दूसरा अध्याय / बयान 6 दूसरा अध्याय / बयान 7 दूसरा अध्याय / बयान 8 दूसरा अध्याय / बयान 9 दूसरा अध्याय / बयान 10 दूसरा अध्याय / बयान 11 दूसरा अध्याय / बयान 12 दूसरा अध्याय / बयान 13 दूसरा अध्याय / बयान 14 दूसरा अध्याय / बयान 15 दूसरा अध्याय / बयान 16 दूसरा अध्याय / बयान 17 दूसरा अध्याय / बयान 18 दूसरा अध्याय / बयान 19 दूसरा अध्याय / बयान 20 दूसरा अध्याय / बयान 21 दूसरा अध्याय / बयान 22 दूसरा अध्याय / बयान 23 दूसरा अध्याय / बयान 24 दूसरा अध्याय / बयान 25 दूसरा अध्याय / बयान 26 दूसरा अध्याय / बयान 27