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दूसरी शादी

जब मैं अपने चार साल के लड़के रामसरूप को गौर से देखता हूं तो ऐसा मालूम हेाता हे कि उसमें वह भोलापन और आकर्षण नहीं रहा जो कि दो साल पहले था। वह मुझे अपने सुर्ख और रंजीदा आंखों से घूरता हुआ नजर आता है। उसकी इस हालत को देखकर मेरा कलेजा कांप उठता है और मुंझे वह वादा याद आता है जो मैंने दो साल हुए उसकी मां के साथ, जबकि वह मृत्यु-शय्या पर थी, किया था। आदमी इतना स्वार्थी और अपनी इन्द्रियों का इतना गुलाम है कि अपना फर्ज किसी-किसी वक्त ही महसूस करता है। उस दिन जबकि डाक्टर नाउम्मीद हो चुके थे, उसने रोते हुए मुझसे पूछा था, क्या तुम दूसरी शादी कर लोगे? जरूर कर लेना। फिर चौंककर कहा, मेरे राम का क्या बनेगा? उसका ख्याल रखना, अगर हो सके।
मैंने कहा—हां-हां, मैं वादा करता हूं कि मैं कभी दूसरी शादी न करूंगा और रामसरूप, तुम उसकी फिक्र न करो, क्या तुम अच्छी न होगी? उसने मेरी तरफ हाथ फेंक दिया, जैसे कहा, लो अलविदा। दो मिनट बाद दुनिया मेरी आंखों में अंधेरी हो गई। रामसरूप बे-मां का हो गया। दो-तीन दिन उसकों कलेजे से चिमटाये रखा। आखिर छुट्टी पूरी होने पर उसको पिता जी के सुपुर्द करके मैं फिर अपनी ड्यूटी पर चला गया।
दो-तीन महीने दिल बहुत उदास रहा। नौकरी की, क्योंकि उसके सिवाय चारा न था। दिल में कई मंसूबे बांधता रहा। दो-तीन साल नौकरी करके रूपया लेकर दुनिया ाकी सैर को निकल जाऊंगा, यह करूंगा, वह करूंगा, अब कहीं दिल नहीं लगता।
घर से खत बराबर आ रहे थे कि फलां-फलां जबह से नाते आ रहे है, आदमी बहुत अच्छे हैं, ल्रड़की अकल की तेज और खूबसूरत है, फिर ऐसी जगह नहीं मिलेगी। आखिर करना है ही, कर लो। हर बात में मेरी राय पूछी जाती थी।
लेकिन मैं बराबर इनकार किये जाता था। मैं हैरान था कि इंसान किस तरह दूसरी शादी पर आमादा हो सकता है! जबकि उसकी सुन्दर और पतिप्राणा स्त्री को, जो कि उसके लिए स्वग्र की एक भेंट थी, भगवान ने एक बार छीन लिया।
वक्त बीतता गया। फिर यार-दोस्तों के तकाजे शुरू हो गये। कहने लगे, जाने भी दो, औरत पैरह की जूती है, जब एक फट गई, दूसरी बदल ली। स्त्री का कितना भयानक अपमान है, यह कहकर मैं उनका मुंह बन्द कर दिया करता था। जब हमारी सोसायटी जिसका इतना बड़ा नाम है, हिन्दू विधवा को दुबारा शादी कर लेने की इजाजत नहीं देती तो मुझकों शोंभा नहीं देता कि मैं दुबारा एक कुंवारी से शादी कर लूंं जब तक यह कलंक हमारी कौम से दूर नहीं हो जाता, मैं हर्गिज, कुंवारी तो दूर की बात है, किसी विधवा से भी ब्याह न करूंगा। खयाल आया, चलो नौकरी छोड़कर इसी बात का प्रचार करें। लेकिन मंच पर अपने दिल के खयालात जबान पर कैसे लाऊंगा। भावनाओं को व्यावहारिक रूप देने में, चरित्र मजबूत बनाने में, जो कहना उसे करके दिखाने में, हममें कितनी कमी हैं, यह मुझे उस वक्त मालूम हुआ जबकि छ: माह बाद मैंने एक कुंवारी लड़की से शादी कर ली।
घर के लोग खुश हो रहे थे कि चलों किसी तरह माना। उधर उस दिन मेरी बिरादरी के दो-तीन पढ़े-लिखें रिश्तेदारों ने डांट बताई—तुम जो कहा करते थे मैं बेवा से ही शादी करूंगा, लम्बा-चौड़ा व्याख्यान दिया करते थे, अब वह तमाम बातें किधर गई? तुमने तो एक उदाहरण भी न रखा जिस पर हम चल सकतें मुझ पर जैसे घड़ों पानी फिर गया। आंखें खुल गई। जवानी के जोश में क्या कर गुजरा। पुरानी भावनाएं फिर उभर आई और आज भी मैं उन्हीं विचारों में डूबा हुआ हूं।
सोचा था—नौकर लड़के को नहीं सम्हाल सकता, औरतें ही इस काम के लिए ठीक है। ब्याह कर लेने पर, जब औरत घर में आयेगी तो रामसरूप को अपने पास बाहर रख सकूंगा आैर उसका खासा ख्याल रखूंगा लेकिन वह सब कुछ गलत अक्षर की तरह मिट गया। रामस्वरूप को आज फिर वापस गांव पिता जी के पास भेजने पर मजबूर हूँ। क्यों, यह किसी से छिपा नहीं। औरत का अपने सौतेले बेटे से प्यार करना एक असम्भव बात है। ब्याह के मौके पर सूना था लड़की बड़ी नेक हैं, स्वजनों का खास ख्याल रखेगी और अपने बेटे की तरह समझेगी लेकिन सब झूठ। औरत चाहे कितनी नेकदिल हो वह कभी अपने सौतेले बच्चे से प्यार नहीं कर सकती।
और यह हार्दिक दुख वह वादा तोड़ने की सजा है जो कि मैंने एक नेक बीबी से असके आखिरी वक्त में किया था।
—‘चन्दर’, सितम्बर, १९३१

प्रेमचन्द की रचनाएँ

प्रेमचंद
Chapters
अन्धेर अनाथ लड़की अनुभव अपनी करनी अमृत अलग्योझा आख़िरी तोहफ़ा आखिरी मंजिल आत्म-संगीत आत्माराम आधार आल्हा इज्जत का खून इस्तीफा ईदगाह ईश्वरीय न्याय उद्धार एक ऑंच की कसर एक्ट्रेस कमला के नाम विरजन के पत्र कप्तान साहब कफ़न कर्मों का फल क्रिकेट मैच कवच क़ातिल कुत्सा कुसुम कोई दुख न हो तो बकरी.. कौशल़ खुदी खून सफेद ग़रीब की हाय गैरत की कटार गुल्‍ली डंडा घमंड का पुतला घर जमाई घासवाली ज्‍योति ज्वालामुखी जादू जेल जुलूस झांकी ठाकुर का कुआं तेंतर त्रिया-चरित्र तांगेवाले की बड़ तिरसूल दण्ड दुर्गा का मन्दिर देवी देवी - एक लघु कथा दूसरी शादी दिल की रानी दो बैलों की कथा दो भाई दो सखियाँ धर्मसंकट धिक्कार धिक्कार नमक का दारोगा निमन्त्रण नेउर नेकी नबी का नीति-निर्वाह नरक का मार्ग नैराश्य नैराश्य लीला नशा नसीहतों का दफ्तर नाग-पूजा नादान दोस्त निर्वासन पंच परमेश्वर पत्नी से पति पुत्र-प्रेम पैपुजी प्रतापचन्द और कमलाचरण प्रतिशोध प्रेम-सूत्र प्रेरणा प्रायश्चित पर्वत-यात्रा परीक्षा पूस की रात बलिदान बैंक का दिवाला बेटोंवाली विधवा बड़े घर की बेटी बड़े बाबू बड़े भाई साहब बन्द दरवाजा बाँका जमींदार बूढ़ी काकी बेटी का धन बोध बोहनी मन्दिर महातीर्थ मैकू मोटर के छींटे मंत्र मंदिर और मस्जिद मनावन मुबारक बीमारी ममता माँ माता का ह्रदय मिलाप मिस पद्मा मुफ्त का यश मोटेराम जी शास्त्री र्स्वग की देवी यह मेरी मातृभूमि है राजहठ राष्ट्र का सेवक लैला वरदान वफ़ा का ख़जर वासना की कड़ियॉँ विजय विश्वास विषम समस्या वैराग्य शतरंज के खिलाड़ी शंखनाद शूद्रा शराब की दुकान शांति शादी की वजह शान्ति शिकारी राजकुमार स्त्री और पुरूष स्वर्ग की देवी स्‍वामिनी स्वांग सच्चाई का उपहार सभ्यता का रहस्य समर यात्रा सुभागी सेवा मार्ग सैलानी बंदर सिर्फ एक आवाज सोहाग का शव सौत होली की छुट्टी