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काशी में शनिदेव ने तपस्या करने के बाद ग्रहत्व प्राप्त किया था

स्कन्द पुराण के काशी खण्ड में वृतांत आता है, कि छाया सुत श्री शनिदेव ने अपने पिता भगवान सूर्य देव से प्रश्न किया कि हे पिता! मैं ऐसा पद प्राप्त करना चाहता हूँ, जिसे आज तक किसी ने प्राप्त नही किया, हे पिता ! आपके मंडल से मेरा मंडल सात गुना बडा हो, मुझे आपसे अधिक सात गुना शक्ति प्राप्त हो, मेरे वेग का कोई सामना नही कर पाये, चाहे वह देव, असुर, दानव, या सिद्ध साधक ही क्यों न हो.आपके लोक से मेरा लोक सात गुना ऊंचा रहे.दूसरा वरदान मैं यह प्राप्त करना चाहता हूँ, कि मुझे मेरे आराध्य देव भगवान श्रीकृष्ण के प्रत्यक्ष दर्शन हों, तथा मै भक्ति ज्ञान और विज्ञान से पूर्ण हो सकूं.शनिदेव की यह बात सुन कर भगवान सूर्य प्रसन्न तथा गदगद हुए, और कह, बेटा ! मै भी यही चाहता हूँ, के तू मेरे से सात गुना अधिक शक्ति वाला हो.मै भी तेरे प्रभाव को सहन नही कर सकूं, इसके लिये तुझे तप करना होगा, तप करने के लिये तू काशी चला जा, वहां जाकर भगवान शंकर का घनघोर तप कर, और शिवलिंग की स्थापना कर, तथा भगवान शंकर से मनवांछित फ़लों की प्राप्ति कर ले.शनि देव ने पिता की आज्ञानुसार वैसा ही किया, और तप करने के बाद भगवान शंकर के वर्तमान में भी स्थित शिवलिंग की स्थापना की, जो आज भी काशी-विश्वनाथ के नाम से जाना जाता है, और कर्म के कारक शनि ने अपने मनोवांछित फ़लों की प्राप्ति भगवान शंकर से की, और ग्रहों में सर्वोपरि पद प्राप्त किया।

शनि देव 2

संकलित
Chapters
भारत में तीन चमत्कारिक शनि सिद्ध पीठ महाराष्ट्र का शिंगणापुर गांव का सिद्ध पीठ मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास शनिश्चरा मन्दिर उत्तर प्रदेश के कोशी के पास कौकिला वन में सिद्ध शनि देव का मन्दिर शनि की साढे साती शनि परमकल्याण की तरफ़ भेजता है काशी में शनिदेव ने तपस्या करने के बाद ग्रहत्व प्राप्त किया था शनि मंत्र शनि बीज मन्त्र शनि अष्टोत्तरशतनामावली शनि स्तोत्रम् शनि चालीसा शनिवज्रपञ्जर-कवचम् शनि संबंधी रोग शनि यंत्र विधान शनि के रत्न और उपरत्न शनि की जुड़ी बूटियां शनि सम्बन्धी व्यापार और नौकरी शनि सम्बन्धी दान पुण्य शनि सम्बन्धी वस्तुओं की दानोपचार विधि शनि ग्रह के द्वारा परेशान करने का कारण शनि मंत्र