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गर्विली गौरी

एक समय एक राजा रहता था। उस राजा के कोई लड़का न था। सिर्फ एक लड़की थी। उसका नाम था गौरी| गौरी के छुटपन में ही उसकी माँ स्वर्ग सिधार गई थी। इसलिए राजा ने उसे बड़े लाड-प्यार से पाला। उसे कभी किसी चीज़ की कमी न होने दी। यों ज्यादा प्यार-दुलार पाने से वह लड़की सिर-चढ़ी हो गई। उसकी ज़िद्द का क्या कहना था, जो चीज़ माँगती थी तुरन्त देनी पड़ती थी। नहीं तो रो-पीट कर सारा महल सिर पर उठा लेती थी। राजा उसकी कोई बात नहीं टाल सकता था। यह राज-काज में भी अपना हाथ अड़ा देती थी।लोग राजा के डर से उसे कुछ नहीं कह सकते थे। लेकिन मन ही मन कुढ़ते,

“न जाने, कहाँ की चुड़ैल पैदा हुई है।”

लेकिन गौरी थी बड़ी सुन्दर बहुगुणी भी थी। उसका गाना बजाना सुन कर सब इस सुन्दर गौरी पर लोग निहाल हो जाते थे। बुद्धि भी उसकी बड़ी पैनी थी।

लोग कहते, “इतने सुंदर और सुगुणी शरीर में जाने, ये कुलक्षन कहाँ से आ गए..!"

गौरी सयानी हुई। एक दिन यह महल की छत पर टहल रही थी। अचानक उसकी नज़र एक युवक पर पड़ी जो पास ही नदी में मछलियाँ मार रहा था। युवक देखने में बहुत सुन्दर था। जात का वह एक मछुआरा था। गौरी ने उसे बुलाया और मछलियाँ मोल कर उसे मुठ्ठी भर अशर्फियों दे दीं। युवक नहीं समझ सका कि राजकुमारी उसे इतनी अशर्फियों क्यों दे रही है। फिर भी उसने बड़ी नम्रता से उसे प्रणाम किया और खुश होकर घर चला गया।

गौरी इसी तरह रोज़ उसे एक मुठ्ठी अशर्फियों देने लगी। एक दिन अचानक यह उस मछुए से बोल बैठी, “तुम मुझ से विवाह करोगे..?"

राजकुमारी के मुँह से ऐसी बात सुन कर वह युवक इक्का-बक्का रह गया पर किसी तरह अपने को सम्हाल कर बोला, “में तो मछुआरा हूँ। अगर आप के पिता यह बात सुनेंगे तो मेरा सिर उतार लेंगे।”

गौरी ने हँसते हुए कहा, “तुम इसकी चिन्ता न करो। पिताजी को में राजी कर लूँगी।”

वह मछुआरा कुछ न कह सका। गौरी ने तुरन्त पिता के पास जाकर निघड़क यह बात कह दी। राजा राजी हो गया। शादी का मुहूर्त निश्चय हो गया। खर्च-वर्च के लिए मछुआरे को राजा ने बहुत रुपया दिया। बड़ी धूम-धाम के साध बरात आई। कुलाचार के अनुसार शादी हो गई।

राजा के वैश में एक रस्म थी। विवाह की रात को दुल्हा-दुलहिन एक ही थाली में खाते थे। लेकिन गौरी इसके लिए राजी नहीं हुई। लोगों ने उसे बहुत मनाया। लेकिन उसने किसी की नहीं सुनी। राजा को बढ़ा गुस्सा आया। उसने बहुत जोर डाला।

गौरी चिल्ला उठी, “यह कभी नहीं हो सकता। में मछुआरे की जूठन कभी नहीं खा सकती।”

यह सुनते ही मानों उन पर बिजली टूट पड़ी। किसी को नहीं मालूम था कि दुल्हा मछुआरा है। लोग आपस में काना फूसी करने लगे। रनवास की औरतों ने दाँतों तले उँगली दबाई। सब लोग कनखियों से दुल्हे की तरफ देखने लगे। उस बेचारे को तो मानों सारे बदन में सैकड़ों बिच्छूओ ने डंख मारने लगे ऐसा लगा। यह चुपचाप उठा और दबे-पाव भाग खड़ा हुआ।

यह सब गड़बड़ी देख कर गौरी का धीरज छूट गया। वह एक नादान लड़की की तरह रोने लग गई। अब उसकी समझ में में आ गया कि यह सब उसकी जिद्द और घमण्ड के कारण ही हुआ। इस हद्बडी में किसी ने नहीं देखा कि, दुल्हा कहाँ गया?

गौरी यह अपमान न सह सकी। वह रातो-रात राजमहल छोड़ कर अपने पति को ढूँढ़ने निकल गई। भूखी-प्यासी, विपदा की मारी, वह गाँव-गाँव भटकने लगी। आखिर एक गाँव में उसका पति मिला। अब यह बिल्कुल बदल गया था। उसने गौरी को पहचाना, लेकिन उससे बिना बोले ही मुँह मोड़ कर चला गया। गौरी बेचारी क्या करती? वह भी उस के पीछे-पीछे चल पड़ी। आखिर उसे पता लगा कि, उसका पति एक अस्तबल में साईस का काम करता है।

गौरी ने अस्तबल के मालिक से जाकर कहा, “आपके यहाँ जो साईस है, यह मेरा पति है। वह मुझसे रूठ गया है| इसलिए वह मुझसे बातें नहीं करता है। आप जरा उसे समझा दीजिए।”

यह सुन कर यह आदमी ठठा कर हँसा और बोला,

“वाह ! तुमने तो अच्छी कहानी गढ़ी...! वह तो जन्मजात गूँगा है। फिर तुमसे बातें कैसे करेगा?”

यह सुन कर गौरी को क्रोध आया। उसने सोचा, “यह मुझे झूठा बनाना चाहता है। इसलिए उसने यह गूँगा नहीं है। देखना, में किस तरह उससे बातें कराती हूँ।”

“यह तो कभी नहीं हो सकता।” अस्तबल के मालिक ने कहा।

“तो मुझे तीन दिन का समय दो। इस बीच में अगर मैं उससे बातें न करा सकी तो फिर चाहे जो दंड देना।”

कहा गौरी ने कहा, “जो बाजी लगा कर हर जाता है, उसके लिए हमारे देश में एक ही सजा है प्राण-दण्ड।” 

“मूर्ख लड़की क्यों नाहक अपनी जान गँवाना चाहती है...?” मालिक ने कहा।

लेकिन गौरी ने न माना। उसने कहा, “अगर मैं हार गई तो तुम वही दण्ड दे देना।"

बाजी लग गई। पहले दिन गौरी ने अपने पति से बातें कराने की बहुत कोशिश की। लेकिन उसने अपना मुँह न खोला। गौरी ने उसको फटकारा। खरी-खोटी सुनाई। लेकिन वह कुछ न बोला। उसी तरह चुपचाप लौट गया। गौरी रोने लगी।

दूसरे दिन गौरी ने आँखों में आँसू भर कर उसे बहुत मनाया। पुरानी बातें याद दिलाई। लेकिन वह न पसीजा। तीसरा दिन भी वैसे ही बीतियाने लगा। गौरी बाजी हारने लगी। उस को प्राण-दण्ड देने की तैयारी हुई।

शीघ्र ही गौरी को प्राण-दण्ड मिलने वाला था। गौरी ने आँसू भरी आँखों से पति की ओर देखा। लेकिन उसका पति पत्थर की तरह खड़ा था। तब गौरी ने सभी दर्शकों को अपनी कहानी रो-रो कर किसी में दया न पैदा हुई। उसने अपनी कथा सुनाई। लेकिन बेचारी सिसक सिसक कर उसे अब रोने लगी। उसे दूसरी बार भी अपना अपराध मालूम हुआ। उसके घमंड ने उसे धोखा दिया। अब अधिक समय न था।

एक-दो मिनट में गौरी को प्राण-दंड दिया जाने वाला था। इतने में एक आवाज सुनाई पड़ी- “ठहरो...! ठहरो...! उसे न मारो।” 

सब ने उस ओर फिर कर देखा वह आवाज गौरी के पति की थी। अब सब लोग अचरन करने लगे कि गूँगा कैसे बोलने लगा अब सब को गौरी की बातों पर विश्वास हो गया। सब को खुशी हुई कि आखिर पति-पत्नी में मेल-मिलाप हो गया। गौरी ने अपने पति से क्षमा माँगी। पति ने भी उसे प्रेम से गले लगा लिया। दोनों आनन्द से अपने राज को लौट आए। गौरी का स्वभाव बिलकुल बदल गया। वे दोनों सुख से रहने लगे।

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