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सदव्रत का प्रभाव

किसी गाँव में एक ब्राह्मण रहता था। अगर कोई भूला-भटका राही उसके घर या जाता तो वह उसकी बड़ी आव-भगत करता और बड़े प्रेम से खिलाता-पिलाता था। उसके घर से कोई भी दीन-दुखिया भूखा वापीस नहीं जाता था। अगर किसी दिन संयोग वश कोई मेहमान उसके घर नहीं जाता तो वह खुद किसी को ढूँढ़ लाने को निकल जाता। इस तरह जब बहुत दिन बीत गए तो एक दिन ब्राह्मण को यह जानने की इच्छा हुई कि इस तरह सदाव्रत करने का फल क्या होता है ? उसने बहुत लोगों से पूछा, लेकिन किसी ने ठीक जवाब नहीं दिया।

एक दिन एक भले आदमी ने कहा, “सदाव्रत का फल बहुत अच्छा होता है| अगर तुम उसका रहस्य जानना चाहो तो माता अन्नपूर्णा के मन्दिर में जाओ। माता के सिवा यह कोई नहीं बता सकता। इसलिए तुम नहीं जाकर पूछो। यह तो तुम जानते ही होंगे कि माता अन्नपूर्णा काशी विश्वनाथ की पत्नी हैं और पार्वती इनका दूसरा नाम है। सदाव्रत बाँटने में, भूखों को अन्नदान करने में उनसे बढ़ कर और कोई नहीं है। इसीलिए काशी में कोई भूखा नहीं रहता।”

इसलिए ब्राह्मण काशी गया और गंगा किनारे बैठ कर घोर तप करने लगा। कुछ दिन बाद माता अन्नपूर्णा को उस पर दया आ गई। उन्होंने प्रगट होकर पूछा,

“बोलो, तुम क्या चाहते हो?"

ब्राह्मण ने दण्डवत करके कहा, "माँ, में और कुछ नहीं चाहता। सिफ इतना बता दो कि सदाव्रत देने का फल क्या होता है ? यह तुम्हारे सिवा और कौन बताए ?”

तब माता अन्नपूर्णा ने कहा, "सदाव्रत का प्रमाव तो पूरी तरह मैं भी नहीं जानती। लेकिन मैं तुमको एक उपाय बताती हूँ, सुनो। हिमालय पर्वत के निकट हेमायत नाम का एक नगर है। उस नगर के राजा के कोई संतान नहीं है। तुम उस राजा के पास जाओ और उसे आशीष दो, जिससे उसे संतान हो।”

राजा प्रसन्न होकर कहेगा, “बोलो, क्या चाहते हो? मैं तुम्हें मुँह-माँगी चीज दूँगा। तब तुम उससे कहना है, राजा ! मैं इसके सिवा और कुछ नहीं चाहता कि जब तुम्हारी सन्तान पैदा हो, तो एक बार मुझे दिखा दो। लेकिन एक शर्त है। में उसे देखने जाऊँ तब वहाँ कोई न रहे यहाँ तक कि तुम्हारी रानी भी नहीं। राजा जरूर तुम्हारी बात मान लेगा। जब लडका पैदा हो जाए और तुम उसे देखने जाओ तो तुम एकांत में उस लड़के से पूछ लेना कि सदाव्रत का क्या प्रभाव होता है वह तुम्हें बता देगा।” 

यह उपाय बता कर देवी अन्तर्धान हो गई !

ब्राह्मण सीधे हेमावत नगर की ओर चल पड़ा। राह में उसे एक घने जंगल से होकर जाना पड़ा । जंगल में घुसते ही वह राह भूल गया और इधर-उधर भटकने लगा। इतने में एक भिल्ल ने सामने आकर पूछा,

“हे ब्राह्मण महाराज..! मालूम होता है, आप भटक गये है, आपको कहाँ जाना है?”

“मुझे हेमावत नगर जाना है।” ब्राम्हण ने जवाब दिया।

“तब तो आप भटकते- भटकते बहुत दूर चले आए। अब सांज भी हो चली। यह जंगल बाघ, चीते आदि खूँखार जानवरों से भरा हुआ है। इसलिए आप यहीं रुक जाइए। में कल सबेरे आपको राह बताऊँगा।” भील ने कहा।

ब्राह्मण को भी उसकी बात जँच गई। वह भिल्ल के साथ चल गया। भिल्ल बड़ी चिन्ता में पड़ गया कि ब्राह्मण देवता को यह क्या खिलाए-पिलए वे उसकी तरह हरिण आदि का मांस तो खा नहीं सकते थे? इसलिए उसने बड़ी मेहनत से कुछ कन्द-मूल जमा किए और ब्राह्मण के सामने लाकर रख दिए। ब्राह्मण ने किसी तरह अपनी भूख मिटाई और ठण्डा पानी पीकर भगवान का नाम लिया। भील की अतिथि सेवा देख कर उसे बड़ी खुशी हुई। वह अपना अंगोछा बिछा कर नीचे लेटने लगा। लेकिन भील ने उसे रोकते हुए कहा,

“देवता, नीचे न सोइये। यहाँ आधी रात को बाघ और चीते घूमते फिरते हैं। आप उपर मचान पर चले आइये।"

यह कह कर उसने ब्राह्मण को उपर बुला दिया और खुद नीचे बैठ कर रात भर पहरा देता रहा। रात बीतने पर थी कि, बेचारे थके-माँदे भिल्ल की आँख लग गई। उसी समय एक बाघ यहाँ आया और भिल्ल को मार कर खा गया । ब्राह्मण की आँख खुली। भिल्ल को मरा देख कर उसे बड़ा दुख हुआ।

उसने सोचा, “बेचारे ने मेरे लिए जान गँवा दी।”

इतने में उस भिल्ल की स्त्री ने आकर कहा, “हे देवता ! आप दुख न कीजिए। ‘विधि का लिखा मिटाना असंभव है|’ जो होना था सो हो गया। चलिए, मैं आपको हेमावत की राह दिखा देती हुँ।” यह कह कर उसने ब्राह्मण को हेमावत नगर पहुँचा दिया और खुद वापस आकर पति के साथ सती हो गई ।

ब्राह्मण भिल्ल और भिल्लनी की सज्जनता पर अचरज करता हुआ हेमावत नगर पहुँचा। यहाँ राजा के दरबार में जाकर उसने देवी के कहे मुताबिक राजा को आशीर्वाद दिया। राजा ने खुश होकर कहा,

“बोलो, क्या चाहते हो तब ब्राह्मण ने राजा को अपनी इच्छा बताई। राजा ने उसकी इच्छा पूरी करने का वचन दे दिया।” 

ठीक नौ महीने बाद रानी के एक सुन्दर लड़का पैदा हुआ। यह खबर सुनते ही ब्राह्मण दौड़ा-दौड़ा राजमहल पहुँचा। रानी ने उसको ले जाकर बच्चे के पास छोड़ दिया और खुद कमरे से बाहर चली गई। एकांत देख कर ब्राह्मण ने उस नवजात शिशु से पूछा,

“सदाव्रत देने का क्या फल होता है, बताओ तो?"

उस बच्चे ने बड़ों की भाँति जवाब दिया,

“आज से दस महीने पहले जंगल में आते-आते तुम भटक गए थे। तब एक भिल्ल ने तुम्हारी आव-भगत की और कन्द-मूल खिलाए। में वही भिल्ल हूँ। मैंने तुम्हारे लिए जो छोटा सा काम किया था, उसी के बदले इस राजा के घर में पैदा हुआ हूँ। उसी पुण्य के फल से कुछ ही दिनों में में राजा बनूँगा। जब सिर्फ एक बार मेहमान को कुछ कन्द-मूल खिला कर मुझे इतना फल मिला, तब जो रोज नियम से सदाव्रत देता है, यह कितना पुण्यवान होगा? खुद सोच लो, अब तुम समझ गए न कि सदाव्रत देने का क्या फल होता है?” 

इतना कह कर वह बच्चा जोर-जोर से रोने लग गया।

ब्राह्मण की आँखें खुल गई। वह मन ही मन अचरज करता हुआ घर लौट आया और अपनी पत्नी से सारा किस्सा कह सुनाया। सुन कर उसकी स्त्री भी अचम्बे में पड़ गई। उसे दिन से वे दोनों और भी लगन के साथ सदाव्रत वाटने लगे।

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