विधी का विधान
पुराने जमाने में एक राजा था| उसकी इकलौती बेटी का नाम सुशीला था। राजा ने लड़की को बड़े लाड़-प्यार से पाला। उसे किसी चीज़ की कमी न होने दी। सयानी हो गई तो लेकिन तब वह लड़की कि वजह से राजा और रानी में झगड़ा उठ खड़ा हुआ।
राजा ने कहा, "मै अपने भांजे से इसका व्याह करूंगा।"
पर रानी ने इसका विरोध किया। उसके एक मतीजा था। वह बहुत दिनों से उससे सुशीला के ब्याह की बात सोच रही थी।
इसलिए उसने कहा, “यह तो कभी नहीं हो सकता। मैं इसका ब्याह अपने भतीजे से करूंगी।”
इसी तरह दोनों में कई बार कहा-सुनी हो गई।
तब एक दिन राजा ने बिगड़ कर कहा,“मैं राजा हूँ किसकी मजाल जो मेरा हुक्म तोड़े…! लडकी मेरी है। मैं जिससे चाहूँगा उसका व्याह कर दूँगा।”
यह कह कर राजा ने उसी दिन अपने भाँजे को बुरा भेजा। उसके आने पर राजा ने उसे छिपा दिया ताकि रानी उसको एक महल में देख न ले। पुरोहित ने आकर पोथी पत्रा उलट कर मुहूर्त निश्चय किया और ब्याह की तैयारियाँ होने लगीं। इधर रानी यह सब देखती चुपचाप कैसे बैठी रहती..!
उसने सोचा, "मैंने उस को जन्म दिया है। पाल-पोस कर बड़ा किया है। फिर उसके व्याह के बारे में मेरा हक़ न हो तो और किसका होगा अपमान की यह घूँट चुपचाप कैसे पी जाऊँ?”
यह कह कर उसने गुप्त रूप से अपने भतीजे को बुला लिया और एक महल में छिपा दिया। दोनों दूल्हे अलग-अलग महल में छिपे अपने भाग्य पर इतरा रहे थे, “राजकुमारी मेरी होगी | मैं उसका पति बनूँगा !"
उनके लिए एक एक पल एक-एक युग के समान बीत रहा था। उसी समय ब्रह्मा, विष्णु और महेश भूमण्डल का भ्रमण करने निकले और घूमते फिरते उस नगर के नज़दीक पहुँचे। जब विष्णु और महेश को इन दोनों दुल्दों की बात मालूम हुई|
उन्होंने ब्रह्मा से पूछा, “इन दोनों में से किसके साथ इस लडफी काव्या होने जा रहा है?”
(वाचको ! तुम तो जानते ही हो कि भूमण्डल में जो कुछ होने वाला है, जिस के भाग्य में जो लिखा रहता है, ब्रह्मा यह सब पहले ही से जानते हैं। क्यों न जानेंगे वही तो हमारे माथे पर लिख देते हैं| और जैसा लिखते हैं वैसा ही होता है। इसीलिए महेश ने ब्रह्मा से यह सवाल किया।)
“इन दोनों में से किसी के साथ उसका ब्याह न होगा।”
ब्रह्मा ने जवाब दिया। यह सुन कर महेश को बड़ा अचरज हुआ और उन्होंने पूछा, “तो फिर इस लड़की का ब्याह किसके साथ होगा ?”
तब ब्रह्मा ने भैंसे पर चढ़ कर सड़क पर जाते हुए एक लँगड़ का तरफ उँगली उठाई और कहा, “बही लँगड़ा इस लड़की का पति बनेगा।”
यह सुन कर महेश को बड़ा अचरज हुआ और दुख भी।
“वह इन दो सुन्दर राजकुमारों को छोड़ कर इस लँगड़े के साथ राजकुमारी का व्याह होगा...! नहीं, एसा कभी नहीं हो सकता...!!!" उन्होंने कहा।
“इस लड़की के ललाट में जो कुछ लिखा है, वही होगा। इस में कुछ अदल-बदल नहीं हो सकता।” ब्रह्मा ने जवाब दिया।
“यही देखना है कि अदल-बदल कैसे नहीं होता है!” यह कह कर महेश ने विष्णु से कहा, “जरा आप मेरे वृषभ पर बैठ जाएँ। में गरुड से एक काम लेना चाहता हूँ।"
विष्णु तुरन्त गरुड पर से उतर कर महेश के साथ वृषभ पर बैठ गए। तब महेश ने गरुड से कहा, “देखो, गरुड..! यह लंगड़ा जो भैंसे पर चढ़ा आ रहा है, तुम उसे अपने चंगुल में दबोच कर सात समुन्दर पार बीहड़ जंगल में छोड़ आओ।"
यह सुन कर गरुड उड़ा और एक ही झपटे में उस लंगडे को उठा कर सात समुन्दर पार एक बीहड़ वन में छोड़ आया।
महेश ने विष्णु से कहा, "अब देखना है कि उस लंगडे से सुशीला का ब्याह कैसे होता है?”
देवताओं के लिए तो यह एक तमाशा हुआ, पर बेचारे लंगड़े की जान पर ही आ गई। वह आज तक घर घर मीख माँग कर किसी तरह पेट पालता आ रहा था। लेकिन अब इस घोर जंगल में भीख कौन देगा? यहाँ उसका रोना कौन सुनता ? गरुड़ उसे एक जंगल में नहीं, बल्कि मौत के मुँह में डाल गया था। थोड़ी ही देर में वह भूख से छटपटाने और भगवान का नाम लेकर हाय..! हाय..! करने लगा। आखिर उसकी पुकार देवताओं के कान में पड़ी|
विष्णु ने तरस खाकर गरुड से कहा, “उस बेचारे लंगड़े की जान जा रही है। तुम एक टोकरी पकवान ले जाकर उसके सामने रख आओ। नहीं तो उस निर्दोष की हत्या का पाप हमारे सिर पड़ेगा।"
विष्णु की आज्ञा पाते ही गरुड पकवान ढूँढने चला गया। थोड़ी दूर भटकने के बाद उसे राजा के महल में दो टोकरी दीख पडी। उनमें से पकवानों की मीठी महक आ रही थी। गरुड ने झट से उन टोकरीयोंको को उठा लिया और सात समुन्दर पार घने वन में लंगड़े के सामने रख दिया। फिर वहाँ से लौट कर विष्णु के पास आ गया। लंगड़े ने बढ़ी उतावली से एक टोकरी का मुँह खोला| टोकरी का मुह खोलते ही उसमें से एक सुन्दर राजकुमारी निकली और उसने उसके गले में जयमाला डाल दी। लंगड़ा हका-बका रह गया। मुँह से कोई बात न निकली। वह सिर्फ देखता रह गया।
आखिर उसने अपने को सम्हाला और कहा, “मालूम होता है, तुम किसी बड़े राजा की लड़की हो। में ठहरा एक ग़रीब लंगड़ा। फिर तुमने मेरे गले में यह माला क्यों डाल दी। इसका क्या मतलब है|"
वह राजकुमारी अपनी राम कहानी सुनाने लगी, “सचमुच में एक राजकुमारी हूँ। मेरी माँ ने अपने भतीजे से मेरा ब्याह करना चाहा। लेकिन मेरे पिता को यह पसन्द न पड़ा। इसलिए मेरी माँ ने मुझे एक टोकरी में छिपा दिया। दूसरे टोकरी में मिठाई भर दिए।”
फिर मुझसे कहा कि, “मैं ये टोकरी तेरे दूल्हे के पास भेज दूँगी। ज्यों ही वह इस टोकरी का ढकन खोले तू उसके गले में वरमाला डाल दे। तुम दोनों का व्याह हो जाएगा। यह कह कर माँ चली गई।”
इतने में कोई इन टोकरीयोंको को उठा ले चला। मैंने सोचा कि मैं यहीं जा रही हूँ, जहाँ मेरी माँ मुझे भेजना चाहती थी। जब तुमने इस टोकरी का मुँह खोला तो मैंने तुम्हारे गले में माल डाल दी।”
राजकुमारी की कहानी सुन कर लँगड़े को बड़ा अचरज हुआ। यह सोचने लगा कि "यह सब भाग्य का खेल है। नहीं तो कहाँ यह सुन्दर राजकुमारी और कहाँ में एक कुरुप लंगड़ा...!"
उसे बड़ी ज़ोर की भूख लग रही थी। बस, गपगप मिठाई उड़ाने लगा।
यहाँ नगर मे रानी ने देखा कि एक गरुड टोकरीयों को उड़ाए लिए जा रहा है। लेकिन वह किस से कहती...! मुँह खोलते ही सारा भेद खुल जाता। वह गुमसुम खड़ी रही। जब व्याह की घड़ी नज़दीक आई तो राजा ने दुलहिन को बुला लाने के लिए दासियों को भेजा। लेकिन जब उन्होंने लौट कर कहा कि दुलहिन का कहीं पता नहीं है तो राजा आग बबूला हो गया। उसने तुरंत जाकर रानी से पूछा, “सुशीला कहाँ है?"
रानी ने मुँह बिगाड़ कर कहा, “मै क्या जानूँ? जब से आपने कह दिया कि तुम्हें उसके ब्याह के बारे में बोलने का हक नहीं है, तब से मैंने उससे नाता ही तोड़ लिया। जब आपको मेरी बात की परवाह ही नहीं है, तो मैं फ़िजूल अपनी टाँग अड़ाने क्यों जाती...! जाइए, जहाँ मिले खोजिए और ले जाइए अपनी लाड़ली बेटी को..!”
बेचारे राजा को बड़ा दुख हुआ कि यों बात बिगड़ गई। वह उदास मन से राजकुमारी को ढूँढ़ने चला गया। जब दुलहिन के गायब होने की खबर दोनों दूल्हों को मालूम हुई तो वे इतना सा मुँह लेकर वहाँ से भाग गए। उनको यो चोरों की तरह भागते देखा|
महेश ने ब्रह्मा से पूछा, “क्यों, भाई ! आखिर यह क्या हुआ? इन दोनों में से किसी के साथ राजकुमारी का व्याह नहीं हुआ...!!"
“कैसे होता, भाई...! मैंने तो पहले ही कह दिया था कि उस लड़की का व्याह उस लंगड़े से होगा। व्याह हो गया है और इस समय वह लड़की सात समुन्दर पार एक घने जंगल में उस लँगड़े से हैंस-खेल रही है।" ब्रह्मा ने मुस्कुराते हुए कहा।
महेश को उनकी बात पर विश्वास न हुआ। उन्होंने कहा, “कहाँ हैं वे जरा जाकर देखें तो सही| तीनों देवता पल मारते सात समुन्दर पार घने जंगल में पहुँचे। वहाँ दुल्हा-दुलहिन दोनों को हँसते-खेलते देखा तो उन्हें तरस आ गया।”
विष्णु ने कहा, “यह राजकुमारी ऐसी सुन्दर है कि देवता भी दंग रह जाएँगे। इसकी सुन्दरता तो सारे जंगल को उजाला दे रही है। ऐसी सुन्दर लड़की का इस बेढंगे लंगड़े के साथ-बंधन कर देना क्या उचित था जो हो गया सो हो गया विधि के लिखे को बदलना? अब हम इतना करें कि इस लंगड़े को पैर दें और इसको एक सुन्दर राजकुमार बना दें।"
यह कह कर विष्णु ने वरदान दिया जिस से वह कुरूप लँगड़ा एक सुन्दर राजकुमार बन गया। ब्रह्मा ने उसकी उम्र बढ़ा दी। महेश ने उसे बुद्धि और बल का वरदान दिया। ब्रह्मा जो एक बार लिख देते हैं उसे कोई नहीं मिटा सकता है। ब्रह्मा की वाणी में बड़ी ताकत है। ब्रह्मा की बढ़ाई करते हुए कहा महेश ने विष्णु ने फिर गरुड को आज्ञा दी कि, “इस दंपति को फिर राजमहल में पहुँचा दो।”