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सूरजमुखी

बच्चो...! तुम ने समुंदर तो देखा ही होगा। देखने में वह कैसा नीला और कैसा सुंदर होता है| उसकी गहराई की थाह पाना बहुत कठिन है। कहते हैं, समुंदर में भी बड़े-बड़े पहाड़, छोटे मोटे टीले, और बहुत ही सुंदर गुफ़ाएँ हैं। समुंदर में रहने वाले गुफाओं में रहते हैं। लेकिन वे गुफाएँ हमारे घरों और महलों वे से कहीं ज्यादा खूबसूरत होती हैं। उन गुफाओं की दीवारें मूंगों की और छतें मोतियों की होती हैं।

हीरे-जवाहरातों से जड़ी हुई वे गुफाएँ दिन-रात जगमगाती रहती हैं। उनमें और कोई रोशनी करने की ज़रूरत नहीं होती। उन गुफाओं में सिंधुराज की पुत्रियाँ, नाग-कन्याएँ रहती हैं। उन नाग-कन्याओं के भौरों से काले काले बाल होते हैं। उनके मुँह की दमक से उन गुफाओं की रौनक और भी बढ़ जाती है।

वे सोने के तारों से बुने हुए झीने कपडे पहनती हैं और उनके (पुराने बाल सागर की तरंगों के साथ साथ लहराते रहते हैं। जब उन गुफाओं में रहते रहते उन नाग- कन्याओं का मन उचट जाता है तब वे सैर करने निकल पड़ती हैं। उतने बड़े राजा की, लड़कियों, वे पैदल कैसे चलें? नहीं, उनके लिए सीपियों से बने हुए सुन्दर रथ तैयार रहते हैं। उन रथों में सुनहरी मछलियाँ जोती जाती हैं। वे नाग-कन्याएँ उन रथों पर चढ़कर अक्सर आधी रात के वक्त समुन्दर के तट पर आती हैं।

यहाँ के मुलायम गवतोंपर पर बैठकर वे तरह-तरह के खेल खेला करती हैं और हमेशा सूरज उगने के पहले ही चली जाती हैं। हमेशा रातों-रात खेलने के कारण उन्होंने कभी सूरज का उगना न देखा । उन्हें यह भी नहीं मालूम कि सूरज होता कैसा है|

अच्छा, तो एक बार कुछ नाग-कन्याएँ इसी तरह समुन्दर के तट पर खेलने आई। वे सारी रात खेलती रही और सूरज के उगने के पहले ही चली गई। लेकिन उनमें से एक बहुत ही सुंदर नाग-कन्या भूल से पीछे छूट गई। वह खेलने के लिए सबसे अलग, अकेली, बहुत दूर चली गई थी। अब तक वह लौट आई उसकी सब सहेलियाँ अपनी अपनी गाड़ियों में बैठकर चल चुकी थी। अब वह बेचारी क्या करती? वह बिलकुल अकेली एक चट्टान के पर बैठी रही।

थोड़ी देर में उसे पूरब से एक अजीब रोशनी निकलती दिखाई दी। वह एक-टक उसकी ओर देखने लगी। क्योंकि उसने पहले कभी सूरज को निकलते नहीं देखा था। आज उसे यह देखकर बड़ा आनन्द हुआ।

उसने सोचा, “अरे..! यह क्या है। ऐसा सुन्दर दृश्य तो मैंने पहले कभी नहीं देखा था...!" इतने में सूरज पूरा निकल आया और उसे आकाश में एक सुन्दर राजकुमार सात घोड़ों वाले रथ पर बैठा, घोड़ों को हाँकता हुआ दिखाई दिया। ऐसा अच्छे और ऐसे सुन्दर घोड़े उसके पिता के पास भी न थे। ऐसा सुंदर राजकुमार तो उसने कभी देखा ही न था।

उसने सोचा, “अगर यह सुन्दर राजकुमार मुझे अपने साथ रथ में बैठा ले चले तो कितना अच्छा हो...!”

इस तरह वह दिन भर वहाँ बैठी बैठी सूरज की ओर देखती रही। सूरज के साथ-साथ उसकी नज़र भी दौडती रही। धीरे धीरे सूरज पहाड़ों में छिप गया। रात हो आई। थोड़ी देर में उसकी हमजोलियों भी समुन्दर के किनारे पर खेलने आ गई। उसने दिन भर जो जो देखा सुना था सब सखियों से कह सुनाया। इन्हीं बातों में फिर रात बीत चली। उसकी सब सखियों पर लौटने लगी। लेकिन वह अपनी जगह से न हिली, न डुली। सखियों ने बुलाया तो उसने कहा, “मैं नहीं आऊँगी। मैं यहीं बैठकर उन महाराज की राह देलूंगी।”

सखियों ने उसे समझाया, “महाराज आएंगे नहीं, तेरा हठ बेकार है।” लेकिन वह टस से मस न हुई।

सूरज महाराज अपने रथ पर फिर आ गए। यह नाहक आस लगाए बैठी रही कि वे उसे बुलाकर रथ में बिठा लेंगे और अपने साथ ले जाएंगे। पर महाराज ने उसकी  ओर आँख उठा कर देखा तक नहीं। इसी तरह कई दिन बीत गए और वह ज्यों की त्यों बैठी रही। सूरज महाराज ने उसकी ओर ध्यान न दिया। उसने सोचा, ज़रूर इसका कोई न कोई कारण होगा। शायद वह जहाँ बैठी है यहाँ से उनको अच्छी तरह दिखाई न देती होगी। यह सोचकर उसने वहाँ से उठने की कोशिश की।

लेकिन अब उसे मालूम हुआ कि वह वहाँ से हिल-डुल भी नहीं सकती। उसके दोनों पैर धरती में फंस कर जड़ फैला चुके थे। धीरे-धीरे उसकी देह भी सूख कर एक पौधे सी हो गई और उसमें पत्ते भी निकल आए। उसके काले काले केश बदल कर सुनहरा पराग बन गए और उसका मुँह धीरे धीरे एक सुंदर फूल हो गया। पर यह फूल मामूली फूल नहीं है। बड़ा ही निराला फूल है।

जब सूरज सबेरे सबेरे अपने सात घोड़ों वाले सोने के रथ पर बैठकर पूरब से निकलता है तब वह फूल उसकी ओर मुँह करके दीन स्वर में गिड़गिड़ाकर कहता है,

"महाराज क्या अब भी आपको मुझ पर दया नहीं आएगी..! क्या अब भी आप इस दासी को अपने साथ न ले जाएँगे...??"

दोपहर को जब सूरज ठीक हमारे सिर पर आ जाता है, तब यह फूल भी ठीक उसी की ओर मुँह करके खड़ा हो जाता है। शाम को यह सूरज के साथ साथ पश्चिम की ओर मुड़ने लगता है।

क्यो? अब तुम समझ गए न कि यह कौनसा फूल है? इसी को सूरजमुखी या सूर्यमुखी कहते हैं। बड़े-बूढों का कहना है कि यह नाग-कन्या आज तक इस फूल के रूप में सूरज के लिए तप कर रही है...!

 इसी से उस फूल को सूरजमुखी कहते हैं।

सूरजमुखी

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