सुन्दर लड़की
कहते हैं कि किसी जमाने में एक बड़ी ही सुन्दर लड़की थी। वह सूत निकालना और बुनना बहुत अच्छी तरह जानती थी। उस का निकाला हुआ सूत बहुत महिंगा होता था। सवेरे की हल्की धूप में जो सतरंगी किरणें छिपी रहती हैं उन से भी महीन था वह सूत, और कोमल इतना था कि शिरिस फूल भी उस की बराबरी न कर सकता था, और वह बुनती कितना सुन्दर थी| उसका निकासा हुआ सूत दुनिया भर में मशहूर था। सच पूछा जाय तो उस जमाने में कोई भी उस की तरह न सूत निकाल सकता और न बून सकता था। जब वह चरखे पर बुनने बैठती तो उस की शोभा का क्या कहना..!
दूर-दूर के देशों से लोग उस का बुनना देखने आते थे। उस के बुने हुए कपडों पर ऐसे सुंदर बेल-बूटे कढ़े रहते कि देखने वाले दंग रह जाते। जब यह कपडों पर बेल-बूटे और फल-फूल निकालती तो तितलिया भी उनको देख प्रेम में पड़ जाती और उन कपड़ों पर आकर बैठ जाती| लोग खडे-खडे देखते और कहते,
“वाह..! भाई वाह...! क्या अच्छा बुनती है..! यह जरूर कोई देवी है जिसने किसी शाप के कारण धरती पर जन्म लिया है।”
उस के बुने हुए कपड़ों की ऐसी धूम थी कि महारानियाँ भी उस के घर आतीं और कपड़ा चरखे पर से उतारने के पहले ही, खरीद ले जातीं। उस के दरवाजे पर हमेशा ग्राहको की भीड़ लगी रहती थी। इस तरह उस लड़की को बहुत धन मिलने लगा। कुछ ही दिनों में वह बड़ी अमीर बन गई। लेकिन ज्यों-ज्यों धन बढ़ता गया त्यो-त्यों उसका घमंड भी बढता चला गया। एक दिन एक पड़ोसिन उस का कपड़ा बुनना देखने आई और उस की चतुरता देख वह चकित होकर बोली
“बिटिया...! तुम्हारा बुना हुआ यह कपड़ा साँप की केंचुली से मी महीन है। यह कपड़ा देखने से तो ऐसा मालुम होता है, मानो देवी सरस्वती ने खुद तुम्हें बुनना सिखा दिया है। नहीं तो क्या कोई ऐसा कपड़ा बुन सकता है भला..??”
और कोई होती तो यह तारीफ सुन फूली न समाती। लेकिन ये बातें उस घमंडिन को क्यों सुहाती ! उस ने मुँह बना कर कहा,
“देवी सरस्वती क्या सिखाएगी मुझे...! सिखाने के लिए पहले उसे कुछ आता भी है..! मुझे कोई क्या सिखाएगा..! मैं ही सभी को सिखा सकती हूँ...!”
उस लड़की के पिता ने, जो वहीं मैठे हुए थे, समझा कर कहा,
“बेटी..! ऐसी बातें नहीं करनी चाहिएँ। कहीं देवी को क्रोध आ गया तो फिर तुझ से क्या बनेगा…!!" लेकिन उस घमंडीन ने और भी अकड़ कर कहा,
“पिताजी...! आप भी ऐसा क्यों कहते हैं..! अगर सरस्वती यहाँ होती और मुझ से बुनने में शर्त लगाती तो फिर पता चल जाता कि कौन किससे बढ़कर है...!”
इतने में एक बुढीया वहाँ आई और बोली,
“रानी बिटिया...! हो सकता है कि, तुम बुनने में सबसे होशियार हो गई हो। लेकिन सारे संसार को ज्ञान देने वाली सरस्वती से शर्त लगाना उचित नहीं है। विद्या के साथ-साथ विनम्रता भी सीखनी चाहिए। घमंड से ही मनुष्य का पतन होता है। इसलिए अच्छा हो, अब भी तुम अपनी गलती समझ कर उनसे क्षमा माँग लो|”
बुढिया की ये बातें सुनते ही मानों उस लड़की के क्रोध की आग में घी पड गया और उस ने गुस्से मे कहा,
“जा..! जा..! बडा उपदेश देने आई है..! तुम क्या जानती हो कि मैं कैसा बुनती हुँ..! अगर यह सरस्वती यहाँ होती तो फिर मैं दिखा देती कि बुनना किसे कहते हैं..!!”
इतना सुनते ही बुढिया लोप हो गई और सरस्वती देवी खुद यहाँ आ खड़ी हुई..! यहाँ जितने लोग थे सब डर के मारे थरथराने लगे कि अब क्या होने वाला है...! वे लोग जानते थे कि, सचमुच वह लड़की बहुत अच्छा बुनती है। संसार में कोई उस की तरह नहीं बुन सकता। पर उन्हें यह भी मालूम था कि वह बड़ी घमंडिन है। वे बडे दुखी थे कि यह लडकी देवी से दुश्मनी कर के अपने पैरों पर आप ही कुल्हाडी चला रही है। देवी को देख कर भी वह लड़की। बिलकुल नहीं घबराई। वह बड़ी ऐंठ के साथ बोली,
“तो आप ही हैं सरस्वती देवी...! आइए तो, जरा देखा जाए कि हम दोनों में कौन अच्छा बुनती है...??”
वहीं दो चरखे पडे थे। दोनों ने अपना अपना चरखा चुन लिया और बुनने लगी। सब लोग मिट्टी की मूरतों की तरह उन का खुनना देखते रहे। वे देखना चाहते थे कि, अब इस शर्त का क्या नतीजा निकलता है। थोडी ही देर में दोनों ने दो घान बुन लिए| देवी ने जो कपडा बुना उस पर सुंदर, दिव्य, रंग-बिरंगे चित्र थे। उन चित्रों में सब के मुँहों पर हँसी खेल रही थी। उन चित्रों को देखते ही मन प्रसन्न हो जाता था।
उस लड़की ने जो कपडा बुना या उस पर भी चित्र थे। वे रंग-बिरंगे तो थे, लेकिन उनमें सब के मुँह बिचके हुए और सब पर क्रोध और द्वेष की रेखा पड़ी हुई थी। उस लड़की का क्रोध और द्वेष उन चित्रों में भी उतर आया था। उन चित्रों को देखते ही सब ने मुँह फेर लिया और उस लड़की को लाचार होकर हार माननी पड़ी।
देवी ने कहा,
“लड़की...! तुम बुनती बहुत अच्छा हो, इसमें कोई शक नहीं। लेकिन तुम देवताओं से तुलना नहीं कर सकती। अगर तुम विद्या के साथ-साथ विनम्रता भी सीख लेती तो आज यह नौबत न आती। लेकिन तुम्हारे घमंड का कोई ठिकाना न रहा। अब तुम्हें इसका फल भुगतना होगा। मैं तुम्हें ऐसा शाप देती हूँ जिस से तुम्हें जीवन भर बुनने के सिवा और कोई काम न रहे और लोग तुम्हारा बुनना देख कर अचरज करें। जाओ, यही तुम्हारी सजा होगी।”
यह शाप दे कर देवी ओझल हो गई। देवी का शाप लगते ही उस लड़की की काया पलट गई। वह एक सुन्दर लड़की का रूप छोटकर एक नन्हासा कीडा बन गई। उस दिन से लोग उसे 'मकडी' कह कर बुलाने लगे....!
अब वह और क्या कर सकती थी। लजा कर एक अंधेरे कोने में जा छिपी और वहीं झीने नाजुक तारों से सुन्दर जाला बुनने लगी...!!