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कौआ बिटियाँ

एक जंगल में एक कौआ रहता था। उसके एक लाडली बिटिया थी। उस जमाने में लड़के और लड़कियाँ दोनों पढ़ा करते थे। सब लोग पढ़े लिखे होते थे। कौए ने सोचा जब सब लोग पढते हैं, तो मेरी बिटिया क्यों न पढे। यह सोचकर उसने अपनी विटिया को खूब पढाया-लिखाया। उस जमाने में सब लोग गाय बजाया करते थे। जिनकी आवाज़ सुरीली होती उनकी बात छोड़ो, जिनकी आवाज सुरीली न होती, वे भी गाते-बजाते थे। यह देखकर कौए ने अपनी बिटिया को भी गाना-बजाना सिखवाया। उस जमाने में क्या सुंदर और क्या कुरूप, सभी लोग नाचना सीखते थे।

इसलिए कौए ने अपनी बिटिया को नाचना भी सिखवाया। इस तरह तीनों कलाओं में कौआ-बिटिया होशियार हो गई। ठीक तो है। अपना दही किसको मीठा नहीं लगता..! हाँ, तो एक दिन कौआ-रानी को कहीं से मांस का एक टुकड़ा मिल गया। वह खुशी के साथ उसे चोंच में दबा कर एक डाल पर खाने बैठ गई। इतने में सियार-मामा ने उसे देख लिया।

बच्चो, तुम सियार-मामा की चालाकी तो जानते ही हो..! बस, मामा ने सोचा कि चलो, इसको चकमा देकर किसी न किसी तरह मांस का टुकड़ा उड़ा लें। सियार धीरे-धीरे उस पेड़ के नीचे आ गया जहाँ कौवा-बिटिया बैठी थी। आते ही

वह कहने लगा-"बिटिया...! तुम तो खूप पढ़ी-लिखी हो न??"

कौआ-बिटिया तो सचमुच पढ़ी लिखी थी ही। इसलिए वह सियार की चालाकी समझ गई। उसने बच्चों की किताब में यह पढा भी था कि एक समय एक सियार ने कैसे एक कौए को चकमा दिया और उसके मुँह से रोटी का टुकड़ा उड़ा लिया था। इसलिए कौआ-बिटिया सचेत हो गई। वह समझ गई कि सियार के सवाल का जवाब देने के लिए जैसे ही वह मुँह खोलेगी, मांस का टुकडा नीचे गिर जाएगा और सियार उसे अपने मुँह में रख कर नौ-दो-ग्यारह हो जाएगा।

कौवा-बिटिया पढ़ी-लिखी तो थी ही। इसलिए सियार के सवाल का जवाब उसने सिर्फ़ सिर हिलाकर दे दिया। जब सियार ने देखा कि उसकी यह चाल बेकार गई तो उसने और एक चाल सोची। बड़े प्रेम से यह कहने लगा

" बिटिया...! मैंने सुना है कि तुम बहुत अच्छा गाती हो और मुझे गाना सुनने में बड़ा आनंद आता है। तुम जरा एक दो गाना गाकर सुना दो न...!" अपनी बढाई सुनकर कौन नहीं फूल जाता...! सियार की खुशामद भरी बातें सुनकर कौआ-बिटिया भी फूल गई और गाने की तैयारी करने लगी। लेकिन थी तो वह पढ़ी-लिखी...! इसलिए उसने पहले मांस का टुकडा चोंच से निकाल कर चगुल में दबा लिया और फिर गाना गाने लगी। बेचारे सियार की आशा पर पानी फिर गया। लेकिन उसने हिम्मत न हारी। झट एक दूसरा उपाय सोचकर उसने कहा-

"याह...! बिटिया...! कैसा अच्छा गाना गाया तू ने मेरी सुध-बुध भूल गई। तू ने गाना क्या गाया कि मेरे कानों में अमृत बरसाया। पर मेरी और एक प्रार्थना है। मैंने सुना है कि तुम बहुत अच्छा नाचती भी हो। लोग तो कहते हैं,

“परियाँ भी वैसा अच्छा नहीं नाच सकती। एक बार ज़रा नाच कर दिखा दो तो मुझे भी उसका मजा मिले।"

सियार की बातें सुनकर कौआ बिटिया फूली न समाई। अब तक तो वह समझती थी कि उसका नाचना गाना देखकर खुश होने वाला और तारीफ करने वाला शायद कोई है ही नहीं। आज उसे सियार जैसा पारखी मिल गया। अब उसे और क्या चाहिए था...!

पर यह मांस का टुकडा...! वह तो पढी लिखी थी न ! यह अच्छी तरह जानती थी कि खुराक के मामले में कभी बेख़बर नहीं रहना चाहिए।

"भूखे भजन न होय गोपाला इसलिए उसने खूब सोच-विचार कर मांस का टुकडा फिर मुँह में रख लिया और नाचने लगी। जब तक कौआ-बिटिया नाचती रही सियार को एक ही सोच था कि मांस का टुकड़ा कैसे उसके हाथ लो...! जब कौआ-बिटिया का नाचना रख तम हो गया तो सियार ने बहुत सोच-विचार कर एक और चाल चली।

उसने कहा, "वाह...! वाह...! कौआ-बिटिया...! तुम कैसा अच्छा नाचती हो। तुम कैसा अच्छा गाती हो...! सचमुच मेरे भाग्य अच्छे थे जो मुझको यह सब देखने-सुनने का मौका मिला...! किन्तु मेरी एक और विनती है। अगर तुम मेरी वह इच्छा भी पूरी कर दो तो फिर मैं खुशी-खुशी घर लौट जाऊँगी। सचमुच मुझे इतनी खुशी हो रही है कि, मैं भूख-प्यास मी भूल गई है। अच्छा, तो कौआ-बिटिया...! मेरा जी चाहता है कि तुम्हें एक साथ गाना गाते और नाचते हुए भी देख है। बोलो, क्या तुम मेरा मन रखोगी|”

कौआ-बिटिया को सियार की तारीफ सुनकर इतनी खुशी हुई कि कुछ पूछना नहीं। लेकिन जब गाना और नाचना एक साथ करना होगा| तो इस मांस के टुकडे को क्या किया जाए ! उसने खूब सोच-विचार कर सियार-मामा से कहा

"मैं अभी तक नाच-गा कर बहुत थक गई है। अब मैं और नाच-गा नहीं सकती। मुझे भूख भी लग रही है। अगर तुम जरा ठहर जाओ तो मैं यह टुकडा खाकर अपनी भूख मिटा लें। फिर तुम्हारी इच्छा पूरी कर दूंगी।"

यह सुनते ही सियार समझ गया कि यहाँ उसकी दाल न गलेगी। इसी टुकडे के लिए तो उसने। इसकी कर्कश काँव-काँव सुनी और भोंडा नाच देखा। जब टुकडा ही मिलने का नहीं तो वह और कष्ट क्यों उठाए..!

यह सोच कर उसने कहा, "बिटिया! अच्छा, मैं अभी आता है। तुम इसी डाल पर बैठी रहो!"

यह कह कर वह चलता बना। लेकिन भला कौआ-बिटिया उसे इतनी आसानी से कैसे छोड़ सकती थी...! उसने जल्दी-जल्दी मांस का टुकडा निगल लिया और सियार-मामा को पुकार पुकार कर नाचना शुरू कर दिया।

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