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मन

ये मन भी कितना चंचल है
इसे कितना भी रोकना चाहूं
इसे कितना भी टोकना चाहूं
ये कमबख्त तेरी ओर ही हमेशा बढ़ता है

चाहे हो सूनी राहें या हो भीड़ से भरे चौराहे
ये सब जगह तुझे संग ले चलता है
इसे कितना भी रोकना चाहूं
इसे कितना भी टोकना चाहूं
ये कमबख्त तेरी ओर ही हमेशा बढ़ता है   

आए जो हवा का ठंडा झोंका या हो गर्म हवा ने ठोका
कभी प्यार तेरा, कभी रुसवा भी ये सब याद करता है
इसे कितना भी रोकना चाहूं
इसे कितना भी टोकना चाहूं
ये कमबख्त तेरी ओर ही हमेशा बढ़ता है

चाहे हो सुबह या हो चाहे शाम
हो कड़क प्याली चाय या छलके हो जाम
चाहे हो किस्से या जिक्र मदहोशी का है
ये हर महफिलों में तुझे ढूंढ ही लेता है
इसे कितना भी रोकना चाहूं
इसे कितना भी टोकना चाहूं
ये कमबख्त तेरी ओर ही हमेशा बढ़ता है।