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ब्रम्हराक्षस

सैकड़ों बरस पहले किसी गाँव में एक जमींदार रहता था। वह बड़ा धनी आदमी था। उसके पास हजारों बीघे जमीन थी। लेकिन वह बड़ा कंजूस और मक्खीचूस था। उसके नौकर चाकरों को भरपेट अन्न तक नसीब न होता था। भला ऐसे कंजूस के पास कौन नौकरी करता !अगर कोई भूला भटका बेवकूफ आ भी जाना नो दस-पन्द्रह दिन में ऐसा चम्पत हो जाता कि किसी को कानो-कान खबर तक न होती।

फिर जमींदार के हजार बीघों की खेती कौन करता यों उसके हजारों बीघों में घासफूस उग आयी और गाँव के गाय बैल उसमें मजेसे चरने लगे। संयोग से एक दिन एक साधू उस जमींदार के घर आया। जमींदार ने उस साधू से अपना दुखड़ा रोकर कह सुनाया । सुनकर साधू को उस पर दया आई और उसने जमींदार को एक मन्त्र बता दिया ।

साधू के चले जाने के बाद जमींदार ने एक आसन पर बैठ कर उस मन्त्र का जाप किया। पलक मारते में उसके सामने एक राक्षस आ खड़ा हुआ और कहने लगा.

“बोलो क्या चाहते हो?"

जमींदार पहले तो डर गया, पर किसी तरह बोला-'अच्छा, क्या तुम मेरा कुछ काम कर दोगे?"

“जरूर कर दूंगा।" राक्षस ने कहा।

"पर तुम्हें मुफ्त में करना होगा। मैं पहले ही कह देता हूँ। " उस कंजूस ने कहा।

“कोई परवाह नहीं ।“ राक्षस ने कहा।

जमींदार बडा खुश हुआ कि मुफ्त में नौकर मिला। उसने हुक्म दिया 'तुरंत मेरी हजारों बीघे जमीन जोत आओ।' यह हुकुम देकर वह पाना खाने गया।

इतने में राक्षस ने आकर कहा-“जमीन जोत आया।“

“क्या ! सारा खेत जोत लिया? हजारों बीघे...” जमींदार ने पूछा।

'हां, सारा खेत जोत आया। राक्षस ने कहा।

जमीदार मन ही मन डर गया। पर मुँह पर बनावटी गुस्सा खाकर बोला-"तुमने खेत जोतने में इतनी देर क्यों लगाई।

" माफ कीजिए। आगे से ऐसा न होगा।' राक्षस ने कहा।

“अच्छा, जाओ। जल्दी से खेत सींच कर निरा देना।' जमीदार ने कहा।

जमींदार खाना खाने के लिए आसन पर बैठा ही था कि इतने में राक्षस सौट आया और बोला “सिंचाई-निराई हो गई। अब बोलिए क्या करे?”.

'नहीं,नहीं, एक बार निराने से कुछ न होगा। इस काली चिकनी मिट्टी को तीन तीन बार निराना पता है।' जमींदार ने   कहा

जमींदार का लाना अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि राक्षस रि लौट आया और बोला, “तुमने जो कहा था सो तो पूरा हो गया। कहो, अब क्या करे।"

जमीदार ने घबडाते हुए जल्दी-जल्दी कहा- “जाओ, सारे खेत को बो आओ। अभी आकर देखता हूँ कि तुम सचमुच काम कर रहे हो या सिर्फ बात बना रहे हो।“

“जमींदार खाना खाकर कुल्ला कर ही रहा था कि राक्षस लौट आया और बोला, “बोना हो गया। अब क्या करे।“

“सचमुच बो आए हो? चलो मैं अभी तुम्हारे साथ चलता हूँ। यह कह कर जमींदार उसके साथ चला। जाकर देखा तो सारा खेत बोया हुआ था। अब उसका दिल जोर से पकने लगा और हाथ पैर घबराने लगे।

उसे न सूझा कि ऐसे नौकर को कैसा काम दिया जाय ! उसने सिर खुजलाते हुए कहा-'अच्छा, देखो, सरे खेत में एक-एक सीधे की नई मेढ़े बना कर पर आ जाना । और देखो, मेंढे  बनाने में उतनी जल्दी करने की कोई जरूरत नहीं।'”

ये कह कर वह बहुत तेज  दौडना-दौडता घर जा पहुँचा और सीधे रसोईघर में जाकर पत्नी से बोला- 'बोलो, अब क्या किया जाय। साल भर का काम राक्षस ने एक घण्टे में कर दिया। अगर मैं उसे कोई काम न दे सका तो वह मुझे खा जाएगा। वह अभी आता ही होगा।' जमींदार ने चिंतित हो कर कहा।

'कोई चिन्ता नहीं। जब वह आ जाए तो एक बार मेरे पास भेज देना। उसकी पत्नी ने लापरवाही के साथ कहा। पाँच मिनट में राक्षस वापस आ गया। जमीदार ने उसे अपनी पत्नी के पास भेज दिया। जनींदार की पत्नी ने पहले तो राक्षस से घर का सारा काम करवा लिया। फिर अपने सिर का एक घुंगराला केश उसके हाथ में देकर कहा- 'देखो, इसकी ऐठ निकाल कर सीधा करके मेरे पास लना।'

राक्षस व्ह केश लेकर सीधा करने के लिए बाड़ी में गया । लेकिन दिन पीन गए, हफ्ते बीत गए, तो भी बद केश सीधा न हुआ।जमींदार जो काम चाहता  राक्षस से करवा लेता और फुरसत के वक्त वह केक्ष राक्षस के हाथ दे देता।आखिर राक्षस भी उब गया और उस केश को सीधा करने का उपाय ढूंढते हुए गली-गली घूमने लगा ।

एक दिन उसने देखा कि एक कुहार लोहे की एक छड़ आग में गरम करके एडे से सीधा कर रहा है। बस, अब क्या था। वह दौद्य-चौडा एक अंगीठी के पास गया और वह केश आग में डाल दिया। केश जल कर साफ हो गया और उसके साथ-साथ राक्षस भी।

ब्रम्हराक्षस

बनारसी बाबु
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