गौ रक्त
गौ रक्त से कल्लाजी विचलित: अकबर यह भलीभांति जानता था कि कल्लाजी जैसे वीर से लोहा लेना खेल नहीं है। अत: कोई ऐसा रास्ता निकले जिससे कल्लाजी पर काबू पाया जा सके। इसके लिए उसने बीरबल से परामर्श किया। बीरबल बड़ा बुद्धिमान और समझदार था। वह हिन्दुओं की कमजोर नस से परिचित था। उसने कहा - यों तो इस वीर पर विजय पाना बहुत मुश्किल है किन्तु गाय का रक्त यदि उसके आगेडाल दिया जाय तो उसे लांघ कर वह वीर आगे नहीं बढेगा। ऐसी स्थिति में चारों ओर से घेरकर विजय पाई जा सकेगी। बीरबल की यह सलाह अकबर ने गांठ बांधली। दूसरे दिन उसने यही किया। कल्लाजी जब दुश्मनों का सफाया करते हुए आगे बढ़ रहे थे कि अचानक उनकी निगाह गौ रक्त पर पड़ी। उनके पांव आगे बढ़ने से रूक गये और पल भर के लिए सुध हीन हो उन्होंने पीछे मुड़कर देखा
देवी को शीश चढाना: ज्याही उन्होंने पीछे देखा कि जगदम्बा का दिया वरदान उन्हें याद हो आया। उन्हे तत्काल अपनी गलती का एहसास हुआ और वे वहीं से सीधे लाखोटिया बारी के बहा देवी के पास पहुचे। अपने ही हाथ से अपना सिर काटा और देवी को चढ़ा दिया। देवी ध्यान मय थी। जब खून की धार उसके मुंह पर जा लगी तो उसने ध्यान खोला और कल्ला को पाया। उसी वक्त देवी ने अपनी तलवार देकर कल्लाजी को कहा कि जा जल्दी जा. काका (जयमल) बाहर पड़ा है| उसे अपनी पीठ पर उठा और युद्ध कर। मे तेरे साथ हूँ। देवी की यह बात वहां खडे एक नागर ब्राह्मण ने सुन ली। वह तत्काल दौडा- दौड़ा गया और मुगलों को इसका भेद दे दिया। मुगल सावचेत हो अपनी व्यूह-रचना में लग गये।
जयमल को कंधे उठाना: कलाजी ने देवी से खड्ग प्राप्त कर चट्टान पर लेटे जयमल को अपनी पीठ पर बिठाया। जयमल की ठोड़ी कल्लाजी की गर्दन पर टिक कर उनका सिर बन गई। दोनो के चार हाथ चतुर्भुज रूप हो गये। बड़ी बहादुरी से दुश्मनों को खदेडते हुए कल्लाजी की पीठ पर अधिकाधिक वार करने प्रारम्भ कर दिये ताकि जयमल जख्मी हो ठिकाने लगे। पर जब इससे भी दुश्मन को सफलता नहीं मिली तो उन्हें छुरा भोंक दिया गया। इससे वे नीचे जा गिरे। कल्लाजी ने पीछे देखा तो जरणी खडी थी। उसने तत्काल वहा से भाग निकलने का आदेश दिया। कल्लाजी नीन दिन के भूखे-प्यासे वहां से भागे।
आगरा में गाड़े गये जयमल पत्ता: जिस स्थान पर जयमल गिरे वहाँ उनकी यादगार में छतरी बनवा दी गई। यह छतरी आज भी इस घटना को ताजा किये है। इस छतरी के पास कल्लाजी की छतरी भी बनी हुई है। जयमल और पत्ता दोनों की लाशें दुश्मनों के हाथ पड़ गई। दुश्मन उन्हें आगरा ले गये जहां फतहपुर सीकरी के बुलद दरवाजे के पास जमीं में गाड दी गई।