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भजन - हरिदासनके निकट न आवत ...


 हरिदासनके निकट न आवत प्रेत पितर जमदूत ।
जोगी भोगी संन्यासी अरु पंडित मुंडित धूत ॥
ग्रह गन्नेस सुरेस सिवा सिव डर करि भागत भूत ।
सिधि निधि बिधि निषेध हरिनामहिं डरपत रहत कुपूत ॥
सुख-दुख पाप-पुन्य मायामय ईति-भीति आकूत ।
सबकी आसत्रास तजि ब्यासहि भावत भगत सपूत ॥