शिखंडी : एक तृतीपंथी योद्धा
महाभारत की कथा काफी रोचक ही नहीं काफी प्रगतिक भी है। महाभारत काल में तृतीयपंथी लोगोंको आदर प्राप्त था। शिखंडी एक ऐसा योद्धा था जिसकी वजहसे पितामह भीष्म को मारनेमें अर्जुन सफल रहा।
शिखंडी के रूप में अंबा का पुनर्जन्म हुआ था।
शिखण्डी का जन्म पंचाल नरेश द्रुपद के घर मूल रूप से एक कन्या के रूप में हुआ था। उसके जन्म के समय एक आकशवाणी हुई की उसका लालन एक पुत्री नहीं वरन एक पुत्र के रूप मे किया जाए। इसलिए शिखंडी का लालन-पालन पुरुष के समान किया गया। उसे युद्धकला का प्रक्षिक्षण दिया गया और कालंतर में उसका विवाह भी कर दिया गया। उसकी विवाह रात्री के दिन उसकी पत्नी ने सत्य का ज्ञान होने पर उसका अपमान किया। मान्यता अनुसार ऐेसा कहते हैं कि हताश शिखंडी जंगल में जाकर आत्महत्या करने लगा तभी एक यक्ष ने वहां उपस्थित होकर उसकी स्थिति पर दया करते हुए रातभर के लिए अपना लिंग उसे दे दिया ताकि वह अपना पुरुषत्व सिद्ध कर सके। हालांकि यक्ष की इस हरकत से यक्षपति कुबेर नाराज हो गए और उन्होंने उस यक्ष को शाप दे दिया कि शिखंडी के जीते-जी उसे अपना लिंग वापस नहीं मिल पाएगा। इस प्रकार शिखंडी एक पुरुष बनकर पंचाल वापस लौट गया और अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सुखी वैवाहिक जीवन बिताया। उसकी मृत्यु के पश्चात उसका पुरुषत्व यक्ष को वापस मिल गया।