कविता
<p dir="ltr">मैं वो किसान हूं जो धरती का सीना चीर कर मोती बोता हु उन मोतियों को अपने आंसू और स्नेह से सिचता हूं मे वो किसान हु जिसे पहले लुटे जमींदार और ठग ठाकुर अब लुट रहे बिचौलिया और ठेकेदार मे वो किसान जो कही रातो से सोया नही फिर भी चेहरे पर एक चमक सी ह मे वो किसान हु जो कभी अपने लिए नही जिया अन्न का दाता हु पर फिर भी लोग हीन भावनाओ से देखते मे वो किसान हु माटी मे पैदा हुआ और माटी मे मिल गया पर कोई पूछने वाला नही मे वो किसान हु सब कुछ बदला पर किसान दर्द नही मे वो किसान हु</p>