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शिक्षा

प्राथमिक शिक्षा

आंबेडकर ने सातारा शहर में राजवाड़ा चौक पर स्थित गव्हर्नमेंट हाईस्कूल (अब 'प्रतापसिंह हाईस्कूल') में 7 नवंबर 1900 को अंग्रेजी पहली कक्षा में प्रवेश लिया। इसी दिन से उनके शैक्षिक जीवन की शुरुआत हुई थी, इसलिए 7 नवंबर को महाराष्ट्र में विद्यार्थी दिवस रूप में मनाया जाता हैं। उस समय उन्हें 'भिवा' कहकर बुलाया जाता था। स्कूल में उस समय 'भिवा रामजी आंबेडकर' यह उनका नाम रजिस्टर में क्रमांक - 1914 पर अंकित था। जब वह अंग्रेजी चौथी कक्षा की परीक्षा उत्तीर्ण हुए, तब यह अछूतों में असामान्य बात थी, इसलिए भीमराव की इस सफलता को अछूतों के बीच और सार्वजनिक समारोह में मनाया गया, और उनके परिवार के मित्र एवं लेखक दादा केलुस्कर द्वारा खुद की लिखी 'बुद्ध की जीवनी' उन्हें भेंट दी गयी। इसे पढकर उन्होंने पहली बार गौतम बुद्ध व बौद्ध धर्म को जाना एवं उनकी शिक्षा से प्रभावित हुए।
माध्यमिक शिक्षा

1897 में, आम्बेडकर का परिवार मुंबई चला गया जहां एल्फिंस्टोन रोड पर स्थित गवर्न्मेंट हाईस्कूल में आम्बेडकर एकमात्र अछूत छात्र थे।

बॉम्बे विश्वविद्यालय में स्नातक अध्ययन

1907 में, उन्होंने अपनी मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की और अगले वर्ष उन्होंने एल्फिंस्टन कॉलेज में प्रवेश किया, जो कि बॉम्बे विश्वविद्यालय से संबद्ध था, ऐसा करने वाले वह पहले अछूत छात्र बन गये।

1912 तक, उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र और राजनीतिक विज्ञान में अपनी डिग्री प्राप्त की, और बड़ौदा राज्य सरकार के साथ काम (रोज़गार) करने के लिए तैयार हुए। उनकी पत्नी ने अभी अपने नये परिवार को स्थानांतरित कर दिया था और काम शुरू किया जब उन्हें अपने बीमार पिता को देखने के लिए मुंबई वापस लौटना पड़ा, जिनका 2 फरवरी 1913 को निधन हो गया।

कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर अध्ययन

1913 में, आम्बेडकर 22 साल की उम्र में संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए। उन्हें सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय (बड़ौदा के गायकवाड़) द्वारा स्थापित एक योजना के तहत न्यू यॉर्क शहर में कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर शिक्षा के अवसर प्रदान करने के लिए तीन साल के लिए 11.50 डॉलर प्रति माह बड़ौदा राज्य की छात्रवृत्ति प्रदान की गई थी। वहां पहुंचने के तुरंत बाद वह लिविंगस्टन हॉल में पारसी मित्र नवल भातेना के साथ बस गए। जून 1915 में उन्होंने अपनी एमए परीक्षा पास कर दि, जिसमें अर्थशास्त्र प्रमुख, और समाजशास्त्र, इतिहास, दर्शनशास्त्र और मानव विज्ञान यह अन्य विषय थे। उन्होंने एक थीसिस, एशियंट इंडियन्स कॉमर्स (प्राचीन भारतीय वाणिज्य) प्रस्तुत किया। आम्बेडकर जॉन डेवी और लोकतंत्र पर उनके काम से प्रभावित थे।

1916 में, उन्होंने अपना दूसरा थीसिस, नेशनल डिविडेंड ऑफ इंडिया - ए हिस्टोरिक एंड एनालिटिकल स्टडी दुसरे एमए के लिए पूरा किया, और आखिरकार उन्होंने लंदन के लिए छोड़ने के बाद, 1916 में अपने तीसरे थीसिस इवोल्युशन ओफ प्रोविन्शिअल फिनान्स इन ब्रिटिश इंडिया के लिए अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की, अपने थीसिस को प्रकाशित करने के बाद 1927 में अधिकृप रुप से पीएचडी प्रदान की गई। 9 मई को, उन्होंने मानव विज्ञानी अलेक्जेंडर गोल्डनवेइज़र द्वारा आयोजित एक सेमिनार में भारत में जातियां: उनकी प्रणाली, उत्पत्ति और विकास नामक एक पेपर लेख प्रस्तुत किया, जो उनका पहला प्रकाशित काम था। डॉ॰ आम्बेडकर ने 3 वर्ष तक की मिली हुई छात्रवृत्ति का उपयोग उन्होंने केवल दो वर्षों में अमेरिका में पाठ्यक्रम पूरा किया और 1916 में वह लंदन गए।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में स्नातकोत्तर अध्ययन

अक्टूबर 1916 में, डॉ॰ आम्बेडकर लंदन चले गये और वहाँ उन्होंने ग्रेज़ इन में बैरिस्टर कोर्स (विधि अध्ययन) के लिए दाखिला लिया, और साथ ही लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स में दाखिला लिया जहां उन्होंने अर्थशास्त्र की डॉक्टरेट थीसिस पर काम करना शुरू किया। जून 1917 में, वह मजबूरन उन्हें अपना अध्ययन अस्थायी तौरपर बीच में ही छोड़ कर भारत लौट आए क्योंकि बड़ौदा राज्य से उनकी छात्रवृत्ति समाप्त हो गई थी। लौटते समय उनके पुस्तक संग्रह को उस जहाज से अलग जहाज पर भेजा गया था, और उस जहाज को जर्मन पनडुब्बी द्वारा टारपीडो और डूब गया था, ये प्रथम विश्व युद्ध का काल था। उन्हें चार साल के भीतर अपने थीसिस के लिए लंदन लौटने की अनुमति मिली। बड़ौदा राज्य के सेना सचिव के रूप में काम करते हुये अपने जीवन में अचानक फिर से आये भेदभाव से डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर निराश हो गये और अपनी नौकरी छोड़ एक निजी ट्यूटर और लेखाकार के रूप में काम करने लगे। यहाँ तक कि अपनी परामर्श व्यवसाय भी आरंभ किया जो उनकी सामाजिक स्थिति के कारण विफल रहा। अपने एक अंग्रेज जानकार मुंबई के पूर्व राज्यपाल लॉर्ड सिडनेम, के कारण उन्हें मुंबई के सिडनेम कॉलेज ऑफ कॉमर्स एंड इकोनोमिक्स मे राजनीतिक अर्थव्यवस्था के प्रोफेसर के रूप में नौकरी मिल गयी। १९२० में कोल्हापुर के शाहू महाराज, अपने पारसी मित्र के सहयोग और अपनी बचत के कारण वो एक बार फिर से इंग्लैंड वापस जाने में सक्षम हो गये और वह पहले अवसर में लंदन लौट आए, और 1921 में एमएस॰सी॰ यह मास्टर की डिग्री पूरी की। उनकी थीसिस "रुपये की समस्या: इसकी उत्पत्ति और इसका समाधान" पर थी। 1923 में, उन्हें ग्रेज इन ने बैरिस्टर-एट-लॉज डीग्री प्रदान की और उन्हें ब्रिटिश बार में बैरिस्टर के रूप में प्रवेश मिल गया। 1923 में, उन्होंने अर्थशास्त्र में डीएस॰सी॰ (डॉक्टर ऑफ साईंस) उपाधि प्राप्त की। लंदन का अध्ययन पुरा कर भारत वापस लौटते हुये डॉ॰ भीमराव आम्बेडकर तीन महीने जर्मनी में रुके, जहाँ उन्होंने अपना अर्थशास्त्र का अध्ययन, बॉन विश्वविद्यालय में जारी रखा। किंतु समय की कमी से वे विश्वविद्यालय में नहीं ठहर सकें। उनकी तीसरी और चौथी डॉक्टरेट्स (एलएल॰डी॰, कोलंबिया विश्वविद्यालय, 1952 और डी॰लिट॰, उस्मानिया विश्वविद्यालय, 1953) सम्मानित पदवीयां थी।