मैं रहूँ ना रहूँ...
देखा है करीब से तुझे...
ए जिन्दगी बदलते हुए
जो साथ चले कभी...
उन लम्हों को देखा है फिसलते हुए
डरता हूँ फिसल ना जाऊँ कहीं
अन्धेरी राहों में यूं बढ़ते हुए
देखी है बहुत हमने
वक्त की मार चलते हुए
देखा है करीब से तुझे...
ए जिन्दगी बदलते हुए
ना चांद बदले ना तारें बदलें
पर बदल गये वो...
जो थे कभी साथ चलते मेरे
कांप उठता है मेरा रूह देख कर
किसी का घर उजड़ते हुए
देखा है करीब से तुझे...
ए जिन्दगी बदलते हुए
मैं रहूँ ...ना रहूँ ....
दिलों से जुड़ा तेरा याद रहे
यादे हटे नहीं दिलों से कभी
सदा नया कोई पैगाम रहे
हमेशा से ही रहा है
अरमानों की चिता जलते हुए
देखा है करीब से तुझे...
ए जिन्दगी बदलते हुए
कहीँ चूक ना हो जाये मुझसे
आ सम्भाल अब मुझको आकर
कैसे चूकाये एहसान उनका
जो पकड़े हैं हाथ कभी आकर
खायी है बहुत ठोकरें
मैने चलते हुए
देखा है करीब से तुझे...
ए जिन्दगी बदलते हुए
कैसे भुलाएं उनको जो हंसते हैं
मेरे ख्यालों पर
इस तरह बिखर गये मेरे अरमां कि
क्या सोचूं अपने हालातों पर
कैसे भुलाएं गमें दास्तां
छप गया है नाजुक दिल के दिवारों पर ..
यूँ ही बीत गये वक्त
दिलों में गम छिपाते हुए
बस जल रहा हूं मैं
बदलते हालातों में मिलते हुए
देखा है करीब से तुझे...
ए जिन्दगी बदलते हुए
- गौतम गोविन्द