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क्या आप अपने शब्द स्वंय चुनते है?

र्तमान युग में हम सभी को कभी न कभी गुस्सा आता ही है| और जब हमें गुस्सा आता है तो क्या होता है ??????

उस समय क्या होता है ???

उस समय हमारा स्वंय पर नियंत्रण नहीं रहता और हमें यह भी नहीं पता चलता कि हम क्या कर रहे है| जब हमें क्रोध (Anger) आता है तो हमें सबसे बड़ी हानि यह होती है कि हम उस वक्त कुछ भी उल्टा सीधा बोल देते है और बाद में पछताते है|

जीवन का सबसे पहला नियम ही यही है कि हमारा स्वंय पर नियंत्रण होना चाहिए| सफल व्यक्तियों की सबसे बड़ी विशेषता ही यही होती है कि उनका स्वंय पर नियंत्रण होता है और असफल व्यक्तियों का जीवन कोई और ही नियंत्रित करता रहता है|

“एक बार एक किसान ने अपने पडोसी को गुस्से में भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया| उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा|

संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर के बीचो-बीच जाकर रख दो” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया|

तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”

किसान वापस गया पर तब तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे| और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा| तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है, तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते|

इस कहानी (Hindi Kahani) से यह पता चलता है कि हमारा स्वंय पर नियंत्रण होना चाहिए और हमें यह पता होना चाहिए कि हम क्या बोल रहे है, अन्यथा हमारे पास पछतावे के अलावा कुछ नहीं बचेगा|

“वार्तालाप का पहला नियम ही यही है कि अगर हम हमेशा मीठा और सकारात्मक ही बोलेंगे तो शायद हमको कभी भी यह नहीं सोचना पड़ेगा कि हम क्या बोल रहे है| अगर हमें गुस्सा आता है तो सबसे बेहतर यही होगा कि उस वक्त हम कुछ भी न बोलें क्योंकि उस वक्त हमारी वाणी को हम नहीं बल्कि हमारा क्रोध (Anger)नियंत्रित करता है|”