भूमिका
शुरुआत में यह बात लिख देना जरूरी है कि प्रत्येक तिथि और वार का हमारे मन और मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है। इस असर को जानकर ही कोई कार्य किया जाए तो लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तिथि और वार का निर्धारण सैंकड़ों वर्षों की खोज और अनुभव के आधार पर किया गया है। इस तिथि के प्रभाव को जानकर ही व्रत और त्योहारों को बनाया गया।
जब से हिन्दुओं ने अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अपने व्रत, त्योहर और जन्मदिन देखने लगा है तब से वह बड़ा भ्रमित रहता है। उसे लगता है कि दो होली और दो दीपावली, लेकिन ऐसा होता नहीं है।
अंग्रेजी कैलेंडर सूर्य पर आधारित है तो इस्लामिक कैलेंडर चंद्र पर। लेकिन हिन्दू कैलेंडर सूर्य, चंद्र और नक्षत्र तीनों पर आधारित है। समय की संपूर्ण धारण को समझकर ही ऐसा किया गया है। सूर्य मास का दिन बड़ा होता है तो चंद्रमास का छोटा। सभी का समय निर्धारण करने में योगदान रहता है।
हिन्दू पंचांग के महीने नियमित होते हैं और चंद्रमा की गति के अनुसार 29.5 दिन का एक चंद्र मास होता है। हिन्दू सौर-चंद्र-नक्षत्र पंचांग के अनुसार माह के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या। पंचांग के अनुसार पूर्णिमा माह की 15वीं और शुक्ल पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चन्द्रमा आकाश में पूर्ण रूप से दिखाई देता है। पंचांग के अनुसार अमावस्या माह की 30वीं और कृष्ण पक्ष की अंतिम तिथि है जिस दिन चन्द्रमा आकाश में दिखाई नहीं देता है।