देव जाति
देवताओं की उत्पत्ति कश्यप की पत्नीं अदिति से हुई थी । देवताओं के धरती पर रहने के स्थान को पुराणों अनुसार हिमालय में दर्शाया गया था । देवताओं को पहले लोग स्वर्गदूत, आकाशदेव, ईश्वरदूत आदि नामों से जानते थे। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि ये सभी देव मानव समान ही थे। ये सभी कश्यप ऋषि और अदिति की संताने हैं और ये सभी हिमालय के नंदनकानन वन में रहते थे।
सभी देवता, गंधर्व, यक्ष और अप्सरा आदि देव या देव समर्थक जातियां हिमालय के उत्तर में ही रहती थी। देवताओं के अधिपति इन्द्र, गुरु बृहस्पति और विष्णु परम ईष्ट हैं। देवताओं के भवन, अस्त्र आदि के निर्माणकर्ता विश्वकर्मा थे।
माना जाता है कि आज से लगभग 12-13 हजार वर्षं पूर्व तक संपूर्ण धरती सोर्फ़ बर्फ से ढंकी हुई थी और बस कुछ ही जगहें रहने लायक बची थी उसमें से एक था देवलोक जिसे इन्द्रलोक और स्वर्गलोक भी कहते थे। यह लोक हिमालय के उत्तर में था। सभी देवता, गंधर्व, यक्ष और अप्सरा तथा देव या देव समर्थक जातियां हिमालय के उत्तर में ही रहती थी।
भारतवर्ष जिसे प्रारंभ में हैमवत् वर्ष कहते थे यहां कुछ ही जगहों पर नगरों का निर्माण हुआ था बाकि संपूर्ण भारतवर्त समुद्र के जल और भयानक जंगलों से भरा पड़ा था, जहां कई अन्य तरह की जातियां प्रजातियां निवास करती थी। सुर और असुर दोनों ही आर्य थे|
देवताओं के राजा को इंद्र कहा जाता था। इस तरह स्वर्ग पर राज करने वाले 14 इंद्र माने गए हैं। जिनके नाम कुछ इस प्रकार हैं- यज्न, विपस्चित, शीबि, विधु, मनोजव, पुरंदर, बाली, अद्भुत, शांति, विश, रितुधाम, देवास्पति और सुचि। कहा जाता है कि एक इन्द्र 'वृषभ' (बैल) के समान था। असुरों के राजा बली भी इंद्र बन चुके हैं और रावण पुत्र मेघनाद ने भी इंद्रपद को हासिल कर लिया था।