कुलधारा
राजस्थान के जैसलमेर जिले का कुलधरा गांव आज भी शापित माना जाता है। यह गांव पिछले 170 सालों से वीरान पड़ा है। कहते हैं कि कुलधरा गांव के हजारों लोग एक ही रात में इस गांव को खाली कर के चले गए थे और जाते-जाते शाप दे गए थे कि यहां फिर कभी कोई नहीं बस पाएगा। तब से गांव वीरान पड़ा हैं।
मान्यता के अनुसार कुलधरा गांव घूमने आने वालों के मुताबिक उन्हें यहां हरपल ऐसा अनुभव होता है कि कोई आसपास चल रहा है। बाजार के चहल-पहल की आवाजें आती हैं, महिलाओं के बात करने, उनकी चूड़ियों और पायलों की आवाज हमेशा ही वहां के माहौल को भयावह बनाती है। प्रशासन ने इस गांव की सरहद पर एक फाटक बनवा दिया है जिसके पार दिन में तो सैलानी घूमने आते रहते हैं लेकिन रात में इस फाटक को पार करने की कोई हिम्मत नहीं करता हैं।
कुलधरा, जैसलमेर से लगभग अठारह किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है। ईंट-पत्थर से बने इस गांव की बनावट ऐसी थी कि यहां कभी गर्मी का अहसास नहीं होता था। कहते हैं कि इस कोण में घर बनाए गए थे कि हवाएं सीधे घर के भीतर होकर गुजरती थीं। कुलधरा के ये घर रेगिस्तान में भी वातानुकूलन का अहसास देते थे। इस जगह गर्मियों में तापमान 45 डिग्री रहता हैं पर आप यदि कभी भारी गर्मी में इन वीरान पड़े मकानों में जाएंगे तो आपको शीतलता का अनुभव होगा।
पालीवाल समाज के लोग मेहनती, ईमानदार, शांतिप्रिय और उद्यमी थे। अपनी बुद्धिमत्ता, कौशल और अटूट परिश्रम के रहते पालीवालों ने रेतीली धरती पर सोना उगाया था। पालीवाल समुदाय आमतौर पर खेती और मवेशी पालने पर निर्भर रहता था और सभी मिलजुल कर शांतिपूर्वक रहते थे।
कहते हैं कि इतना विकसित गांव रातों रात वीरान हो गया, इसकी वजह था गांव का अय्याश दीवान सालम सिंह जिसकी नजर गांव कि एक खूबसूरत लड़की पर पड़ गई थी। दीवान उस लड़की के पीछे ऐसा पागल हुआ कि बस किसी तरह से उसे पा लेना चाहता था। उसने इसके लिए उस लड़की के परिवार और समुदाय पर दबाव बनाना शुरू कर दिया। हद तो तब हो गई कि जब सत्ता के मद में चूर उस दीवान ने लड़की के घर संदेश भिजवा दीया कि यदि अगले पूर्णमासी तक उसे लड़की नहीं मिली तो वह गांव पर हमला करके लड़की को उठा ले जाएगा। गांववालों के लिए यह मुश्किल की घड़ी थी। उन्हें या तो गांव बचाना था या फिर अपनी बेटी। इस विषय पर निर्णय लेने के लिए सभी 84 गांव वाले एक मंदिर पर इकट्ठा हो गए और पंचायतों ने फैसला किया कि कुछ भी हो जाए अपनी लड़की उस दीवान को नहीं देंगे।
फिर क्या था, गांव वालों ने गांव खाली करने का निर्णय कर लिया और रातोंरात सभी उस गांव से ओझल हो गए। जाते-जाते उन्होंने शाप दिया कि आज के बाद इन घरों में कोई नहीं बस पाएगा। आज भी वहां की हालत वैसी ही है जैसी उस रात थी जब लोग इसे छोड़ कर गए थे।जैसलमेर के स्थानीय निवासियों की मानें तो कुछ परिवारों ने इस जगह पर बसने की कोशिश की थी, लेकिन वह सफल नहीं हो सके। स्थानीय लोगों का तो यहां तक कहना है कि कुछ परिवार ऐसे भी हैं, जो वहां गए जरूर लेकिन लौटकर नहीं आए। उनका क्या हुआ, वे कहां गए कोई नहीं जानता।