गांधारी के साथ किया अन्याय
इसके अलवा भीष्म ने यह अपराध भी किया है । यह जानते हुए भी कि गांधारी नेत्रहीन नहीं है, भीष्म ने जबरदस्ती उनका विवाह धृतराष्ट्र से करा दिया। अपनी बहन से बहुत प्रेम करने वाला शकुनि अपनी बहन के साथ हुए इस अन्याय का बदला लेने के लिए जिंदगी भर चालें चलता रहा और इसीके चलते महाभारत युद्ध हुआ।
ऐसा बताते हैं कि उस समय गांधार राजकुमारी के रूप की चर्चा पूरे आर्यावर्त में थी। ऐसे में पितामह भीष्म ने धृतराष्ट्र का विवाह गांधार की राजकुमारी से करने की सोची। पहले उन्होंने सोचा कि गांधारी का अपहरण कर के लाया जाए, लेकिन अम्बा और अम्बालिका ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया था अतः पितामह भीष्म गांधार की राजसभा में धृतराष्ट्र का रिश्ता लेकर गए, लेकिन उन्हें मालूम था कि उनका प्रस्ताव ठुकरा दिया जाएगा। तब पितामह भीष्म ने क्रोधपूर्ण लहजे में कहा कि मैं तुम्हारे इस छोटे से साम्राज्य पर चढ़ाई करूंगा और इसे समाप्त कर दूंगा। अंततः राजा सुबाल को भीष्म के आगे झुकना पड़ा और अत्यंत क्षोभ के साथ उनको अपनी सुन्दर पुत्री का विवाह अंधे राजकुमार धृतराष्ट्र के साथ करना पड़ा।
माना जाता है कि गांधारी का विवाह महाराज धृतराष्ट्र से करने से पहले ज्योतिषियों ने सलाह दी कि गांधारी के पहले विवाह पर संकट है अत: इसका पहला विवाह किसी ओर से कर दीजिए, फिर धृतराष्ट्र से करें। इसके लिए ज्योतिषियों के कहने पर गांधारी का विवाह एक बकरे से करवाया गया था। बाद में उस बकरे की बलि दे दी गई। कहा जाता है कि गांधारी को किसी प्रकार के प्रकोप से मुक्त करवाने के लिए ही ज्योतिषियों ने यह सुझाव दिया था। इस कारणवश गांधारी प्रतीक रूप में विधवा मान ली गईं और बाद में उनका विवाह धृतराष्ट्र से कर दिया गया। गांधारी एक विधवा थीं, यह सच्चाई बहुत समय तक कौरव पक्ष को पता नहीं चली। यह बात जब महाराज धृतराष्ट्र को पता चली तो वे बहुत क्रोधित हो उठे। उन्होंने समझा कि गांधारी का पहले किसी से विवाह हुआ था और वह न मालूम किस कारण मारा गया। धृतराष्ट्र के मन में इसको लेकर दुख उत्पन्न हुआ और उन्होंने इसका दोषी गांधारी के पिता राजा सुबाल को माना। धृतराष्ट्र ने गांधारी के पिता राजा सुबाल को पूरे परिवार सहित कारागार में डाल दिया।
कारागार में उनको खाने के लिए केवल एक व्यक्ति का भोजन दिया जाता था। केवल एक व्यक्ति के भोजन से सभी का पेट कैसे भरता? यह पूरे परिवार कोभूखा मार देने की साजिश थी। राजा सुबाल ने यह निर्णय लिया कि वह यह भोजन केवल उनके सबसे छोटे पुत्र को ही दिया जाए ताकि उनके परिवार में से कोई तो जीवित बच सके। एक-एक करके सुबाल के सभी पुत्र मरने लगे। सब लोग अपने हिस्से का चावल शकुनि को देते थे ताकि वह जीवित बना रह सके। मृत्यु से पहले सुबाल ने धृतराष्ट्र से शकुनि को छोड़ने की विनती की, जो धृतराष्ट्र ने मान ली । जब कौरवों में वरिष्ठ युवराज दुर्योधन ने यह देखा कि केवल शकुनि ही जीवित बचे हैं तो उन्होंने पिता की आज्ञा से उसे क्षमा करते हुए अपने देश वापस लौट जाने या फिर हस्तिनापुर में ही रहकर अपना राज देखने को कहा। शकुनि ने हस्तिनापुर में रुकने का निर्णय लिया।
यह जानते हुए भी कि परिजनों के मरने और गांधारी के जिंदगी भर मजबूरन आंखों पर पट्टी बांध कर रहने की वजह से शकुनि के दिल में हस्तिनापुर साम्राज्य के लिए जहर भरा है, भीष्म ने शकुनि को राज्य में रहने की इजाजत दे दी। इसका नतीजा सब जानते हैं।