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नरेंद्र मोदी और ध्रुवीकरण का भ्रम

शुक्रवार १३ सितम्बर को , मुख्य विपक्ष दल ने २०१४ में आने वाले चुनावों के लिए अपना प्रधान मंत्री उम्मीदवार घोषित किया | नरेन्द्र मोदी जो मोजूदा गठजोड़ सरकार को २०१४ में चुनौती देंगे उन् पर  कई सालों से मीडिया का ध्यान केन्द्रित रहा है , तब भी जब वह भारत के एक राज्य में मुख्य मंत्री का पद संभाले थे | उनको अक्सर विभाजनकारी , हिन्दू प्रभुत्वावादी कहा जाता है और कई बार फूट डालने के बजाय लोकप्रिय भी कहा गया है | ऐसे में जो सवाल उठता है वो ये है की क्या वह इस वाहवाही के हकदार हैं और क्यूँ अन्यथा ही उन पर ये कृपा की गयी है |

1 .क्या यहाँ पर मुसलमानों के प्रति द्वेष का मुद्दा है ?

गुणानुवाद्दियों को अक्सर ऐसे इल्ज्ज़म लगाते देखा गया है की वह जनता में धर्म के आधार पर फर्क करते हैं और बहुसंख्यकवाद का पालन करते हैं | लेकिन तथ्य कुछ और ही बताते हैं | सबसे पहले तो इस बात को नकारा नहीं जा सकता की सांप्रदायिक दंगों की वजह से गुजरात में उनके मुख्य मंत्री के कार्यकाल में करीब ७०० मुसलमान और ३०० हिन्दुओं को मौत के घाट उतार दिया गया |

इस नरसंहार की तब से भरपूर जांच हो चुकी है | लेकिन इस जांच के दौरान भारत के सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक समिति ने न सिर्फ उन्हें किसी चूक से बरी कर दिया अपितु दंगों को नियंत्रण में लाने के लिए बेहतरीन तरीकों का इस्तेमाल करने के लिए उनकी तारीफ भी की है | इस कार्य को अंजाम उन्होनें पूर्ण रूप से प्रशासनिक ज़िम्मेदारी सँभालने से पहले ही दे दिया था – ये दंगे उनके सत्ता  सँभालने के ४ महीनों में ही हो गए थे |

इस में भी कोई शक नहीं है की ये बदनाम गुजरात दंगे अपनी तरह के न पहले और न आख़री दंगे हैं और भारत में सांप्रदायिक हिंसा का इतिहास देखते हुए ना ही जान माल को ये  नुक्सान अभूतपूर्व है |

अगर कुछ है तो ये एक उदाहरण है जहाँ न्याय हुआ है ; राजनीति के कई रसूखदार व्यक्तियों को  जिनमें से कुछ मोदी के राजनितिक प्रतिद्वंदी कांग्रेस दल के सदस्य थे इस मामले में दोषी माना गया है | ये भी देखने वाली बात है की गुजरात में १९६९ ,८७ ,८९ ,९० ,९२ में कई बार दंगे हुए हैं – कांग्रेस सरकार में १९६९ में करीब 5000 मुसलमानों की हत्या कर दी गयी – फिर भी इस मामले में सजा होना तो दूर  की बात प्राथमिक सूचना रिपोर्ट तक दर्ज नहीं हुई | मोदी सरकार की नजर में गुजरात ने शांति, विकास और समृद्धि का एक दशक देख लिया है – उसके इतिहास में एक बिना किसी दाग के पहले १० साल |

सच्चर समिति की जांच से सामने आया है की गुजरात देश के अन्य राज्यों से श्रेष्टतर अपने मुस्लमान नागरिकों की आर्थिक और सामाजिक बेहतरी का ख्याल रख रहा है | गुजरात के मुसलमानों की प्रति व्यक्ति आय ( शहरी इलाकों में ८७५ रूपये और ग्रामीण में ६६८ रूपये ) राष्ट्रिय औसत (८०४ और ५५३ रूपये ) और कई अन्य राज्यों जिनमे मुस्लमान जनता है जैसे उत्तर प्रदेश ( शहरी इलाकों में ६६२ ) और पश्चिमी बंगाल ( ७४८ रूपये ) से ज्यादा है |

गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले मुसलमानों की संखया १९८७ में ५४ % से घट कर २००४-२००५ में ३४ % तक आ गयी है | गुजरात में सबसे ज्यादा मुसलमान आबादी वाले दो क्षेत्र भरूच और कच्छ भारत के सबसे तेजी से विकसित होने वाले जिलों में से हैं | भरूच के ४ मुख्य शहरों में ४० % व्यवसाई मुसलमान हैं और कच्छ में मुसलामनों को जहाज निर्माण यार्ड व्यापार में ४५ % हिस्सा हासिल है | कच्छ में पर्यटन मेलों (जैसे रणोंत्सव) की वजह से हस्तशिल्प कलाकारों को २ करोड़ की आमदनी हुई और इन कलाकारों में से ८० % मुसलमान थे |

गुजरात में मुसलमानों की शिक्षा दर 73.5 % है जब की राष्ट्रिय औसत 59.1 % है : औसतन तौर पर ७ से १६ साल के मुसलमान बच्चे गुजरात में ४.२९ साल के लिए माध्यमिक शिक्षा पाते हैं , जिसका राष्ट्रिय औसत ३.२६ साल  पश्चिमी बंगाल में २.८४ , उत्तर  प्रदेश में २.६ और  बिहार में २.०७ साल है | गुजरात सरकार ने पश्चिमी बंगाल(२.१%) , दिल्ली (३.२%) और महाराष्ट्र(४.४%) से ज्यादा प्रतिशत मुसलमानों(५.४%) को नियुक्त किया है | गुजरात उन दो राज्यों में से है जहाँ पुलिस दल में मुसलमानों का प्रतिशत (१०.६%) साधारण जनता से ज्यादा है (९.१%) है |

मोदी को मिले ऐतिहासिक तीसरे लगातार जनमत से उनका  गुजरात के सभी वर्गों से हासिल समर्थन दिखाई देता है : ३० % मुसलमानों ने उनके दल के लिए मत डाला जो की कई मुस्लमान आबादी वाले क्षेत्रों से जीती | भाजपा ने ऐसे  66 विधानसभा क्षेत्रों में से ४० में जहाँ मुस्लमान जनता का प्रतिशत १० से ६० तक था और 8 में से 6 मुस्लमान प्रधान इलाकों में जीत हासिल की | भाजपा के हिन्दू उम्मीदवारों ने भुज और वागरा जैसे मुस्लमान प्रधान इलाकों के कांग्रेस के मुस्लमान प्रत्याशियों को शिकस्त दी |

इसके पश्चात् भाजपा ने ९० % मुसलमान आबादी वाले और २७ सीटों वाले क्षेत्र सलाया में स्थानीय चुनावों में जीत हासिल की ; उसने जिन 24 सीटों पर चुनाव लडे थे उनमे सब में उसे जीत हासिल हुई | भाजपा की अल्पसंख्यक शाखा में पिछले कई सालों में सदस्यता काफी बढ गयी है |

एक युवा,  तीन बार निर्वाचित स्थानीय एकाई  प्रतिनिधि, सुश्री अस्मा खान पठान ने बताया की मोदी जी के जन्मदिवस पर एक इलाके खेडा में ७००० मुसलमान इखट्टे हुए थे | ये बात भी सामने आई की नए नियुक्तियों में से कई ने दंगों में काफी नुक्सान का सामना किया था | गुजरात के कई रसूखदार मुसलमानों जैसे जफर सारेशवाला (एक अग्रणी उद्यमी), असीफा खान ( जो एक कांग्रेस प्रवक्ता थी पर अब उन्होंने भाजपा की तरफ अपनी निष्ठा कर ली है ), मुफ्ती शब्बीर अहमद सिद्दीकी (अहमदाबाद में जामा मस्जिद के इमाम) ने गुजरात में मुसलमानों की तरक्की के किस्से सुनाये हैं |

राष्ट्रिय अल्पसंख्यक आयोग के एक प्रतिष्टित सदस्य केरेला के वी वी औगुस्तीन ने मोदी की गुजरात में अल्पसंख्यकों के लिए शांति और समृद्धि की कोशिशों की तारीफ की है  | और मोदी ने अभी तक एक भी ऐसा विधायी या प्रशासनिक ज्ञापन पारित नहीं  किया है जहाँ धर्म के आधार पर भेदबाव हो |

2 भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण  बदलाव
सभी हाल के जनमत सर्वेक्षणों से सामने आया है की श्रीमान मोदी देश का नेतृत्व करने के लिए मतदाताओं की सबसे पसंदीदा विकल्प हैं , जहाँ टाइम्स नाउ के सी मतदाता पोल ने जुलाई में उनका  अपने निकटतम प्रतिद्वंदी गांधी परिवार के राहुल गाँधी के ऊपर २० % लाभ दिखाया है | सीएसडीएस एक शैक्षिक संसथान द्वारा किये गए एक जनमत सर्वेक्षण ने इस भ्रम को झूठा साबित किया की लोग उनसे काफी नफरत करते हैं |

ये भी सामने आया की राजनितिक गलियारों में भारत के  हर मुख्य नेता को  करीबन १८ – २४ % जनता नापसंद करती है – हैरानी की बात है की श्रीमान मोदी कम नापसंद किये जाने वाले नेताओं में हैं (१८%) | जनता की नज़र में नहीं हो फिर भी पत्रकारों की नज़र में उनको विभाजनकारी माना जा रहा है | मेरा ऐसा मानना है की ये आवलोकन उनकी राजनीती में मोजूदा स्थिति में महत्वपूर्ण बदलाव लाने की कोशिशों का नतीजा है जिसने  बहुत  लोगों की  स्थापित सोचों को हिला दिया है |

2.1 पहचान की राजनीति से आकांक्षा की राजनीति में परिवर्तन

सबसे पहले भारत के नेताओं ने पारंपरिक रूप से पहचान , धर्म , जाती या वंश के आधार पर मत मांगे है | भारत के प्रधान मंत्री ने माना है की एक धर्म , मुसलमान ,के सभी पालकों का देश के साधनों पर पहला हक होना चाहिए | राजनितिक दलों का गठन विशिष्ट जाति समूहों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया गया है मसलन भारत के सबसे आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के दो मुख्य दल समाजवादी और बहुजन समाज ख़ास तौर से यादवों और दलितों के लिए बने हैं | अंत में सबसे बड़े दल इंडियन नेशनल कांग्रेस के मुख्य पद एक ही परिवार का विशेषाधिकार बन गया है | यहीं पर मोदी सबसे अलग हैं |

वह अपने गुजरात के नागरिकों को बिना कोई और पहचान दे  गुजरातियों की तरह संबोधित करते हैं | इस प्रतिवाद से अलग उन्होनें चर्च और राज्य में फासले का संरक्षण किया है जैसे धर्मनिरपेक्ष स्थानों में होना चाहिए |

उनकी सरकार ने अपने धर्म ,हिंदुत्व से जुडी इमारतों को सिर्फ इसीलिए नष्ट कर दिया की वह अवैध रूप से सार्वजनिक संपत्ति पर अतिक्रमण कर रहे थे , इसके इलावा उन्होनें पाकिस्तानी कलाकारों द्वारा आयोजित प्रदर्शनियों के खिलाफ विरोध को भी दबा दिया जबकि वह हिन्दू दलों द्वारा किया  जा रहा था  | इसी तरह से उनकी सरकार ने धर्म के आधार पर अल्पसंख्यकों को दी जाने वाली छात्रवृतियोँ का विरोध किया – वहां अब छात्रवृत्ति आर्थिक कमी के आधार पर दी जाती हैं जिससे सब समुदाय के लोगों को फायदा  हुआ है |

अंत में हांलाकि वह अपने राज्य के सबसे पिछड़ी जाती का हिस्सा है फिर भी उस जाती के समर्थन के बिना उन्होनें अपने वर्तमान कद को हासिल किया है | उनका एक विनम्र, सामाजिक और आर्थिक मूल आकांशा प्रधान राजनीती का प्रतिनिधित्व करते हैं जो की भारत में इससे पहले कभी नहीं हुआ था |

2.2 हकदारी की राजनीति से सशक्तिकरण की राजनीति में बदलाव
मोदी हकदारी की राजनीती से पृथक  हो सशक्तिकरण की राजनीति का उदाहरण हैं – उन्हें अपना जनमत सिर्फ अच्छी राजनीति की वजह से नहीं अपितु अच्छी अर्थनीति की वजह से भी मिला है | उन्होनें अपने राज्य के साधनों का इस्तेमाल खैरात और सब्सिडी पर कम और बुनियादी ढांचे पर ज्यादा किया है | गुजरात उन कुछ एक राज्यों में से है जहाँ बुनियादी ढांचा  और सुविधाएं विकसित देशों के स्तर पर हैं |

भारत के शहर-प्रणालियों(ऐ एस आई सी एस ) के वार्षिक सर्वेक्षण ने हाल ही  में गुजरात को ४ पुरस्कारों से सम्मानित किया है |राज्य को जीवन की गुणवत्ता की सामान्य श्रेणी में और शहर और शासन की गुणवत्ता के लिए विशेष श्रेणी में पुरस्कृत किया गया  है | सूरत को साफ-सफाई, गतिशीलता, प्रदूषण नियंत्रण, जल आपूर्ति नेटवर्क, सार्वजनिक सुविधाओं, हरियाली, सुरक्षा और वहाँ के शहरी स्थानीय एकाई  की प्रभावकारिता के आधार  पर ज़िन्दगी और शहर की गुणवत्ता के लिए सर्वश्रेष्ठ शहर का पुरुस्कार दिया गया |

नवीन उत्पादन और वितरण रणनीति के कार्यान्वयन की वजह से गुजरात एक बिजली की कमी वाले क्षेत्र से बदल कर अधिक बिजली वाला राज्य बन गया है | कार्यान्वयन की रणनीति में शामिल है वैकल्पिक उर्जा स्रोतों जैसे सूर्य और हवा का उपयोग | उदाहरण के तौर पर गुजरात में एशिया का सबसे बड़ा सूर्य उर्जा पार्क है जो भारत के कुल सूर्य उर्जा उत्पाद क्षमता का ६०० मेगा वाट उर्जा उत्पाद करता है |

भारतीय पवन ऊर्जा संघ (आई डब्लू ई ऐ ) के द्वारा जारी जानकारी से सामने आया है की गुजरात ने पिछले ४ सालों में पवन उर्जा उत्पादन क्षमता में सबसे ज्यादा बढ़त दिखाई है ; २०११-२०१२ में बढ़त ३६ % थी ; प्रौद्योगिकी आधारित निगरानी के माध्यम से बिजली की चोरी पर नियंत्रण कर बिजली की कमी की समस्या का हल निकाल लिया  गया है |

इन सुधारों का मोदी के दल के कृषि शाखा भारतीय किसान संघ ने विरोध किया फिर भी उनका लागू हो जाना उनकी निर्णायक नेतृत्व और दूरदर्शी चुनावी और राजनीतिक कारणों को  पार करने की क्षमता का उदाहरण है | बिजली की चोरी भारतीय इतिहास में घटित सबसे बड़े बिजली के गायब होने की घटना का मुख्य कारण था जिस वजह से जुलाई २०१२ में दो दिन तक सम्पूर्ण उत्तर भारत बिजली से वंचित हो गया था | गुजरात इस आपदा से बच गया जिसने ६०० मिलियन भारतियों को प्रभावित किया |

गुजरात विद्युत बोर्ड में शामिल बिजली कंपनियोँ को २०११ में उर्जा विभाग द्वारा बिजली क्षेत्र में सुधार, ग्रामीण क्षेत्रों में निर्बाध विद्युत आपूर्ति (ज्योति ग्राम योजना के तहत ) और कानून और व्यस्था के क्षेत्र में इस्तेमाल में लाये गए  नवीन सूचना प्रौद्योगिकी पैमाइश अनुप्रयोगों की वजह से कई सरकारी पुरुस्कार मिले हैं  | राज्य में ख़ास तौर पर लिंग गुनाह सबसे कम होते हैं |

एक मीडिया दल ऐ बी पी ने , जो की मोदी का समर्थक नहीं है राजकोट को औरतों के लिए सबसे सुरक्षित शहर माना है | इन सब के साथ प्रशासनिक भ्रष्टाचार और रेड टेप में कमी – मोदी का कहना है न्यूनतम सरकार और अधिकतम शासन- ने पिछले दशक में दो अंकों में आर्थिक विकास को पहुंचा दिया है |

औसतन तौर पर गुजरात की अर्थव्यवस्था पिछले दशक में (२०११-०२ से २१०११-११ तक ) १०.३% से बढ गयी है ; जिसमें कृषि में १०.७ % , उद्योग में १०.३ % और सेवा में १०.९% की बढ़त हुई है | जन दुनिया में कई अर्थव्यवस्थाओं गहरी मंदी में थीं तब २०११-११ में गुजरात के सकल राज्य घरेलू उत्पाद में 11 % की वृद्धि हुई और ओद्योगिक क्षेत्र ने १० % की बढ़त दर्ज की | इसलिए ये स्वाभाविक सी बात है की नयी नौकरियों का बड़ा हिस्सा (७२%) गुजरात में उत्पन्न होती हैं |

इसके विपरीत केंद्र सरकार की महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (नरेगा) योजना की सब्सिडी आधारित ग्रामीण रोजगार गारंटी भ्रष्टाचार का केंद्र बन गया है | २००५ में मोदी के राजनितिक प्रतिद्वंदी सोनिया गाँधी की अध्यक्षता में स्थापित राजीव गाँधी फाउंडेशन ने आर्थिक स्वतंत्रता सूचकांक के आधार पर गुजरात को सर्वश्रेष्ठ राज्य घोषित किया था |

एक ऐसे राज्य में जहाँ पानी की कमी हो वहां एक दशक में दो अंकों में कृषि क्षेत्र का विकास होना एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है | ये बढ़त नवीन जल प्रबंधन की तकनीकों का नतीजा हैं | केन्द्रीय भू-जल बोर्ड द्वारा जारी की गयी जानकारी से पता चलता है की पिछले 8 सालों में भू जल स्तर में भारी बढ़त हुई है | नर्मदा और साबरमती नदियों को नहरों के नेटवर्क से एक दुसरे से जोड़ा गया है |

पिछले १० सालों में करीब 5.5 लाख जल प्रबंधन संरचनाओं का जिनमे शामिल हैं बाँध , बोरिबंध और खेत तल्वादी निर्माण हुआ है और सूक्ष्म सिंचाई योजनाओं ने  4.5 लाख हेक्टेयर भूमि क्षेत्र को नापा है | प्रधान मंत्री ने गुजरात स्टेट वाटरशेड प्रबंधन एजेंसी (जी एस डब्लु एम् ऐ ) को २०१०-११ के लिए सार्वजानिक प्रशासन में  उनकी पार्टिसिपेटरी वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम पहल  के माध्यम से उत्कृष्टता का पुरुस्कार दिया है और राष्ट्रपति ने २०१३ में कुल खाद्यान्न उत्पादन पुरस्कार से सम्मानित किया है | खास तौर पर २०१२ में पडोसी महाराष्ट्र में फैले सूखे की स्थिति को इन पहलों के कारण ही गुजरात में  नियंत्रण में लाया गया |  मोदी जी ने अपना तीसरा जनमत इस सूखे के दौरान, जो की इस दशक का सबसे तीव्र सूखा था ,  ही हासिल किया |

इस व्यापक विकास के लाभ और सरकार की ओर से दृढ़ प्रयासों का असर गुजरात के सामाजिक क्षेत्र में दिखाई देता है जहाँ वह अन्य राज्यों से काफी पिछड़ा था | २०११ में आवास और शहरी गरीबी उन्मूलन के शहरी विकास मंत्रालय के केंद्रीय मंत्रालय ने शहरी गरीबों के लिए बुनियादी सेवाओं के सफल कार्यान्वयन के लिए अहमदाबाद को सर्वश्रेष्ठ शहर घोषित किया | महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय , नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)ने अपनी एकीकृत बाल विकास योजना (आईसीडीएस) पर रिपोर्ट में यह निष्कर्ष निकाला की गुजरात में बाल कुपोषण में सबसे ज्यादा गिरावट आई है २००७ में ७०.६९ % से २०११ में ३८.७७ % |

गुजरात ने १९९१ से २००१( 1000 आदमियों के अनुपात में ९२८ से गिर कर ८८३ )तक बच्चे के लिंग अनुपात में हो रही गिरावट को रोक लिया है  और २०११ के सेन्सस में ये अनुपात थोडा बढ़कर ८८६ हो गया है | शिक्षा क्षेत्र , ख़ास तौर से प्राथमिक शिक्षा में काफी हद तक स्कूल छोड़ने की दर  में कमी आ गयी है | बालिकाओं की शिक्षा दर बढ़कर १३ % हो गयी है और स्कूल छोड़ने की दर २९.७७ % से गिर गयी है ; प्राथमिक स्कूलों में स्कूल छोड़ने की दर अब सिर्फ २ % है ( २००१ और २०११ के सेन्सस के मुताबिक )

एक जाने माने मीडिया दल इंडिया टुडे द्वारा किये गए सर्वेक्षणों में लगातार ३ बार मोदी को सर्वश्रेष्ठ मुख्य मंत्री का ख़िताब दिया गया है | गुजरात को कई विदेशी एकाईयोँ जैसे संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, लोक प्रशासन और प्रबंधन के राष्ट्रमंडल एसोसिएशन (सी ऐ पी ऐ एम् ) और केंद्र सरकार में सत्तारूढ़ दल की मोजूदगी के बावजूद कई मंत्रालय ( जैसे बिजली, गैर पारंपरिक ऊर्जा) द्वारा कई पुरुस्कार मिले हैं |

2.3 मतदाताओं से सीधा संपर्क
मोदी ने अपने मतदाताओं से बात करने के लिए ऐसा जरिया अपनाया है जो भारत के सन्दर्भ में अभी तक एक नयी सोच है | पारंपरिक तौर पर अभी भी नेता जनता से मीडिया के माध्यम से बात करते हैं जिस वजह से सत्ता रूढ़ दलों और प्रेस के बीच की अपेक्षित पेशेवर विभाजन ख़तम हो गयी है  | इस वजह से भारत में कई उच्च स्तरीय  मीडिया घोटाले हुए हैं जिसमें शामिल है राजनीतिक फायदों के लिए मीडिया प्रमुखों का अपने पदों का गलत इस्तेमाल करना |

मोदी ने इसके बजाय अपने मतदाताओं से बात करने के लिए सोशल मीडिया से संपर्क करना शुरू किया है , एक ऐसी प्रोद्योगिकी जो की भारत के बदलते राजनितिक समीकरण में बदलाव ला रही है | वह एक आसानी से स्वचालित और ज्ञानवर्धक वेबसाइट चलाते हैं जो की भारत के सन्दर्भ में एक अलग दृष्टिकोण है | वह भारत के उन पहले नेताओं में से हैं जिन्होंने अपना खुद का ब्लॉग शुरू किया और फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया जरिया का हिस्सा बने | भारत के राजनीतिक नेताओं में से उनकी  सोशल मीडिया में सबसे ज्यादा पहुँच है |

अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा और ऑस्ट्रेलिया की प्रधानमंत्री जूलिया गिल्लार्ड के ठीक बाद उन्होनें एक गूगल हैंगआउट  वार्ता का आयोजन किया जिसमें काफी लोगों ने भाग लिया | उन्होनें चुनावी अभियान के लिए कई अभिनव चुनाव प्रचार रणनीतियों का इस्तेमाल किया जैसे 3-आयामी अनुमानों के माध्यम से एक साथ कई रैलियां का आयोजन जिसका ज़िक्र गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी किया गया है | ये हाल ही की बात है की भारत में अन्य राजनीतिकों ने प्रोद्योगिकी के माध्यम से मतदाताओं से संपर्क में आने की पहल की है | मोदी ने अपने खुद के निर्वाचन क्षेत्रों को जन्म दिया है जिनको अभी तक एक गुट की तरह संबोधित नहीं किया गया था |

सबसे पहले वह अपनी प्रोद्योगिकी की पहुँच से और वैसे भी युवाओं से सीधा संपर्क साधते हैं जो की भारत जैसे  युवा  देश का एक मुख्य भाग है | उन्होनें अपने राज्य में औरतों से सशक्तिकरण और संपर्क कार्यक्रमों की विविध किस्मों से संपर्क साधा है |

ये भी देखने वाली बात है की उन्होनें अपनी एक ख़ास योजना , कन्या केलवानी बालिकाओं की शिक्षा योजना, की शुरुआत अपनी सत्ता की शुरुआत में ही कर दी है जब औरतों का सशक्तिकरण भारतीय राजनीति में इतना प्रचलित मुद्दा नही था | वह इस योजना को अपने को मिले तोहफों की नीलामी से मिले पैसे समर्पित करते आ रहे हैं | प्राथमिक विद्यालयों में लड़कियों की भरती अब लड़कों के बराबर है | उनकी रैलियों में औरतें मुख्य रूप से भाग लेती है और २०१२ में उनकी गुहार के बाद औरतों का मत प्रतिशत २००७ के मुकाबले ५७ से बढ़कर ६८.९ हो गया |

इसीलिए ये हैरानी वाली बात नहीं है की मोदी के कई आलोचकों जैसे महेश लंगा , आकार पटेल और राजदीप सरदेसाई ने माना है की मोदी को गुजरात में औरतों का मज़बूत समर्थन प्राप्त है | हाल में वह पूर्व सैनिकों को निमित रैलियों को संबोधित कर रहे हैं , एक ऐसा क्षेत्र जिसका अमेरिका के राजनीतिक  संबोधन करते हैं लेकिन भारत के  नहीं |

3 निष्कर्ष
मोदी ने पहचान और पात्रता की राजनीति की विरासत को आकांक्षा और सशक्तिकरण की राजनीति से चुनौती दी है | वह अपने एक दशक के निर्णायक, भ्रष्टाचार मुक्त शासन के उदाहरण के बल पर जनमत मांग रहे हैं नाकि प्रधानमंत्रियों की पीढ़ियों की विरासत के बल पर | वह भारतीय सन्दर्भ में एक नवीन श्क्शीयत हैं और इसलिए मतदाताओं में  कर्री प्रतिक्रिया पैदा करते हैं और शायद वह तटस्थता को बिलकुल समाप्त कर दें | कुछ लोग मानते हैं की जिन विचारों के संघर्ष को वह प्रस्तुत करना चाहते हैं वह भारतीय लोकतंत्र को वो जोश देगा जिसकी उसे सख्त ज़रुरत है |

श्रीमती थैचर की तरह दोषसिद्धि के राजनीतिज्ञ होने के नाते वह सबसे कम विभाजक , जिसने अभी तक हमेशा सबसे अप्रिय व्यक्ति का समर्थन किया है का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं –उन्हें शायद ज़रूरत भी नहीं है – दुनिया भर के लोकतन्त्रों को  ऐसे नेताओं की ज़रुरत है जो बहुमत के जनादेश  से जीत हासिल करें | पासा फेंका जा चुका है –आईये जनता के फैसले का इंतज़ार करें !

Source: http://blogs.swarajyamag.com/2013/10/25/narendra-modi-and-the-myth-of-polarization

सास्वती सरकार के लेख

Shivam
Chapters
उत्कृष्ट संस्थानों पर मानव संसाधन विकास मंत्रालय का आक्रमण मंजिल महाकारण स्मृति ईरानी विवाद और एक बौद्धिक पारिस्थितिक तंत्र का केस प्रधान मंत्री जी हमें हमारी विरासत लौटा दें : नेताजी की जानकारी को सार्वजानिक कर दें | भाजपा बंगाल पर उम्मीद न छोडें इस्लाम में सोच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है [भाग 1] इस्लाम में सोच और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है [भाग 2] क्रांतिकारियों बनाम गांधी: भारतीय राष्ट्रवाद में मौलिक संघर्ष क्या भारत एक वंशवादी लोकतंत्र की तरफ बढ़ रहा है ? दक्षिण एशिया में लापता हिंदुओं और मौन की साजिश नरेंद्र मोदी और ध्रुवीकरण का भ्रम ज़हीर जन्मोहम्मेद के लिए