निज़ाम उल मुल्क से लड़ाई
उद-दिन-खान, आसिफ जाह I , डेक्कन(हैदराबाद में विराजे) के निज़ाम –उल –मुल्क ने ये सोच की मुग़ल बादशाहों का कब्ज़ा कमज़ोर हो रहा है डेक्कन में अपना स्वतंत्र राज्य बनाने का विचार बनाया |
निज़ाम ने मराठों का चौथा वसूल करने के हक को नज़र अंदाज़ कर दिया | शांतिपूर्ण समाधान की कोशिशें (चिकल्थान परले १७२१) दिल्ली से मुग़ल मराठा दस्तावेज़ के आने के बावजूद विफल हो गयीं | १७२२ में निज़ाम की व्यक्तिगत महत्वकांक्षाएं मुग़ल बादशाह के सामने आ गयीं और उन्होनें (मोहम्मद शाह) निज़ाम को अनदेखा करना शुरू कर दिया | निज़ाम ने इस बात का विरोध कर मुग़ल बादशाह के विपरीत जाने का फैसला किया और अपने राज्य को स्वतन्त्र करार कर हैदराबाद को उसकी राजधानी बना दिया | जब मुबरिज़ खान के नेतृत्व में शाही सेना ने निज़ाम को कब्ज़े में लेना चाहा , तो उसने अपने पुराने दुश्मनों मराठों से संपर्क किया और उनकी सारी पुरानी शर्तें मान लीं | शाहू ने बाजीराव को निज़ाम की मदद करने का निर्देश दिया | उनकी मिली हुई सेनाओं ने सखेर्खेडा में १७२४ में शाही सेना को हरा दिया |
निज़ाम ने ये देख की खतरा टल गया है मराठो से किये वादे की अवहेलना कर उनको उत्तेजित कर दिया | उसने शाहू के खिलाफ कोल्हापुर के संभाजी II , चंद्रसेन जाधव , उदाजी चवन और राओ रम्भा निम्बालकर के साथ गटबंधन कर लिया | जब पेशवा और उसकी सेना १७२७ में दक्षिण से चौथ वसूलने आये , निज़ाम की सेना ने अचानक ही पूना पर हमला बोल दिया और संभाजी II को उनके द्वारा नियुक्त छत्रपति घोषित कर दिया ( सतारा भी इस खतरे में आ गया और छत्रपति शाहू को ससवाद में किले पुरंदर में शरण लेनी पडी |