सोने का हंस
मरणोपरान्त उस गृहस्थ का पुनर्जन्म एक स्वर्ण हंस के रुप में हुआ । पूर्व जन्म के उपादान और संस्कार उसमें इतने प्रबल थे कि वह अपने मनुष्य-योनि के घटना-क्रम और उनकी भाषा को विस्मृत नहीं कर पाया । पूर्व जन्म के परिवार का मोह और उनके प्रति उसका लगाव उसके वर्तमान को भी प्रभावित कर रहा था । एक दिन वह अपने मोह के आवेश में आकर वाराणसी को उड़ चला जहाँ उसकी पूर्व-जन्म की पत्नी और तीन बेटियाँ रहा करती थीं ।
घर के मुंडेर पर पहुँच कर जब उसने अपनी पत्नी और
बेटियों को देखा तो उसका मन खिन्न हो उठा क्योंकि उसके
मरणोपरान्त उसके परिवार की आर्थिक दशा दयनीय हो चुकी थी । उसकी पत्नी और
बेटियाँ अब सुंदर वस्रों की जगह चिथड़ों
में दिख रही थीं । वैभव के सारे सामान
भी वहाँ से तिरोहित हो चुके थे । फिर भी पूरे उल्लास के
साथ उसने अपनी पत्नी और बेटियों का आलिंगन कर उन्हें अपना परिचय दिया और
वापिस लौटने से पूर्व उन्हें अपना एक
सोने का पंख भी देता गया, जिसे बेचकर उसके परिवार वाले अपने दारिद्र्य को कम कर
सकें । |