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भीड़ का हिस्सा

मुंबई का बोरीवली रेल्वे स्टेशन , सुबह 9 बजे का समय , भीड़ का रेला बहा जा रहा है । जहा देंखो दूर दूर तक इंसानी मुंडिया ही नजर आ रही है , ऐसा लग रहा है जैसे कोई समुद्र बह रहा है और उसमे पानी की जगह इन्सान हो !

'ओह इंसानों का समुद्र ! ' मनोहर बुदबुदाया और लोकल के डिब्बे से उतर कर उस भीड़ का हिस्सा हो गया । कोहनियो से कोहनिया टकराते हुए लोग आगे बढ़ रहे थे , मनोहर को थोडा सुकून हुआ भीड़ का हिस्सा बन कर , उस लोगो के सैलाब के साथ वो बहे जा रहा था , कुछ समय के लिए वो अपना अस्तित्व भूल कर वो भीड़ ही बन गया । वो स्वयम का अस्तित्व भूल गया जैसे वो एक चेहरा नहीं सेकड़ो चहरे है और उसका अस्तित्व इस एक शरीर में न होकर उस भीड़ के रेले में है ठीक उसी प्रकार जैसे पानी की बूंद अपना अस्तित्व समुद्र में खो कर समुद्र बन जाती है। सुख दुःख , खुशियों , परेशानियों , घर आफिस सब को भूलकर सब से परे जैसे वो सिर्फ भीड़ है और उसका लक्ष्य जैसे सिर्फ बहना है वो भूल ही गया कि वो मनोहर है और ऑफिस जा रहा है ।

एग्जिट गेट के पास जाकर उसकी तन्द्रा टूटी । उसने पीछे मुडकर देखा उसे फिर वही सेलाब दिखाई दिया इंसानों का समुद्र और ट्रेने ऐसे लग रही थी जैसे उस समुद्र के बीच जहाज खड़े है । उसे पीछे से एक धक्का लगा और उसकी तन्द्रा टूटी ।

दिन भर ऑफिस में मनोहर काम में लगा रहा , एक काम पूरा हो न कि बोस दूसरा ला के पटक दे । घड़ी दो घड़ी साँस लेने का टाइम भी नहीं लेकिन इस बीच सुबह भीड़ का हिस्सा होकर गुजारे वक़्त का खयाल आ जाये तो उसके चहरे पर सुकून की एक मुस्कान आ जाती थी ।

संध्या में जब मनोहर घर पहुँचा तो उसके दोस्त अशोक और अमर घर आ धमके और मनोहर को अपने साथ चलने को बोलने लगे ।

" अरे , यारो अभी तो ऑफिस से आया हूँ , बोस ने मार के रखी हुई है थोडा आराम कर लेने दो यार । " मनोहर झुँझलाकर बोला ।

" अबे आराम को मार गोली आज अपनी पार्टी की मीटिंग है " अशोक मनोहर का हाथ पकड़ कर उसे खड़ा करते हुए बोला ।

" ओह , मैं तो भूल ही गया यार " कहते हुए मनोहर उठ खड़ा हुआ । दरअसल मनोहर और उसके दोस्त मुंबई की नई पार्टी " खास आदमी पार्टी " के कार्यकर्ता थे जो कुछ युवाओ के द्वारा मिलकर बनाई गई थी और उनका नारा था कि देश का हर आम आदमी हमारे लिए खास है,इसीलिए पार्टी का नाम खाप ( खास आदमी पार्टी ) रखा गया ।

बस इसी यूनिक सोच का नतीजा था कि युवा इस पार्टी की और आकर्षित हो रहे थे ।

और ऐसे युवाओ में मनोहर और उसके दोस्त भी शामिल थे मनोहर पार्टी का समर्पित कार्यकता था इसी वजह से वो जल्दी तैयार होकर दोस्तों के साथ पार्टी मीटिंग में पंहुचा ।

मीटिंग अगले विधानसभा चुनावो के लिए उम्मीदवारो के चयन हेतु बुलाई गई थी । समर्पित कार्यकर्त्ता होने के नाते मनोहर का चयन उसके स्थानीय विधानसभा की सीट के लिए उम्मीदवार के रूप में हो गया । थोड़ी ना नुकर के बाद मनोहर ने ये जिम्मेदारी लेली ।

अगले दिन ऑफिस में जब ये खबर बोस ने सुनी तो वो खुद अपने केबिन से निकलकर मनोहर को बधाई देने आया । और उस दिन मनोहर की टेबिल पर काम भी कम आया ।

साँझ को मनोहर बोस के केबिन में एक महीने की छुट्टी के लिए के लिए गया जो उसे चुनाव प्रचार व चुनाव की तैयारी के लिए चाहिए थी उसे पता था कि छुट्टी मिलने के कोई चांस नही है क्योकि बोस एक दो छुट्टी देने के मामले में इतनी झिकझिक करता था कि एक महीने की छुट्टी का तो सवाल ही नही पैदा होता इसीलिए वो अपना रेसिगनेसन लेटर साथ लेकर ही गया ।

मनोहर जैसे ही बोस के केबिन में गया बोस सामने से उठकर हाथ मिलाने आया । मनोहर को लगा जैसे सचमुच वो आम आदमी से खास आदमी हो गया। मनहोर ने दबे स्वर में छुट्टी की बात की बोस ने हँसते हँसते मनोहर की छुट्टी मंजूर कर ली।

मनहोर ने खूब मेहनत की चुनाव प्रचार में। इधर आम आदमी भी पुरानी पार्टियों से उब सा गया था और नतीजा यह निकला की खाप को बहुमत मील गया और मनोहर ने अपने प्रतिद्वंद्वी की ज़मानत तक जप्त करवा दी। पार्टी ने खुश होकर मनोहर को मंत्री बना दिया ।

शपथग्रहण के पश्चात् जब मनोहर , मंत्री मनोहर बनकर विधानसभा जा रहा था तो आगे पीछे सिक्यूरिटी की गाड़िया और बीच वाली एम्बेसेडर में मंत्री मनोहर ।

मनोहर को एकदम से उस रेल्वे स्टेशन वाली भीड़ की याद आई । मनोहर ने उस ए सी की ठंडक में बेचेनी महसूस की । उसे घबराहट होने लगी क्योकि अब वो उस "भीड़ का हिस्सा " नहीं बन पायेगा ।

हिंदी कहानियाँ

दिनेश चारण
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भीड़ का हिस्सा