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सियाह हाशिए

करामात

लूटा हुआ माल बरामद करने के लिए पुलिस ने छापे मारने शुरू किए।

लोग डर के मारे लूटा हुआ माल रात के अँधेरे में बाहर फेंकने लगे; कुछ ऐसे भी थे जिन्होंने अपना माल भी मौका पाकर अपने से अलहदा कर दिया, कानूनी गिरफ्त से बचे रहें।

एक आदमी को बहुत दिक्कत पेश आई। उनके पास शक्कर की दो बोरियाँ थीं जो उसने पंसारी की दुकान से लूटी थीं। एक तो वह जूँ-तूँ रात के अँधेरे में पास वाले कुएँ में फेंक आया, लेकिन जब दूसरी उसमें डालने लगा तो खुद भी साथ चला गया।

शोर सुनकर लोग इकट्ठे हो गए। कुएँ में रस्सियाँ डाली गईं। जवान नीचे उतरे और उस आदमी को बाहर निकाल लिया गया; लेकिन वह चंद घंटों के बाद मर गया।

दूसरे दिन जब लोगों ने इस्तेमाल के लिए कुएँ में से पानी निकाला तो वह मीठा था।

उसी रात उस आदमी की कब्र पर दीए जल रहे थे।

गलती का सुधार

"कौन हो तुम?"

"तुम कौन हो?"

"हर-हर महादेव…हर-हर महादेव!"

"हर-हर महादेव!"

"सुबूत क्या है?"

"सुबूत…? मेरा नाम धरमचंद है।"

"यह कोई सुबूत नहीं।"

"चार वेदों में से कोई भी बात मुझसे पूछ लो।"

"हम वेदों को नहीं जानते…सुबूत दो।"

"क्या?"

"पायजामा ढीला करो।"

पायजामा ढीला हुआ तो एक शोर मच गया-"मार डालो…मार डालो…"

"ठहरो…ठहरो…मैं तुम्हारा भाई हूँ…भगवान की कसम, तुम्हारा भाई हूँ।"

"तो यह क्या सिलसिला है?"

"जिस इलाके से मैं आ रहा हूँ, वह हमारे दुश्मनों का है…इसलिए मजबूरन मुझे ऐसा करना पड़ा, सिर्फ अपनी जान बचाने के लिए…एक यही चीज गलत हो गई है, बाकी मैं बिल्कुल ठीक हूँ…"

"उड़ा दो गलती को…"

गलती उड़ा दी गई…धरमचंद भी साथ ही उड़ गया।

घाटे का सौदा

दो दोस्तों ने मिलकर दस-बीस लड़कियों में से एक लड़की चुनी और बयालीस रुपए देकर उसे खरीद लिया।

रात गुजारकर एक दोस्त ने उस लड़की से पूछा-"तुम्हारा क्या नाम है?"

लड़की ने अपना नाम बताया तो वह भिन्ना गया-"हमसे तो कहा गया था कि तुम दूसरे मजहब की हो…"

लड़की ने जवाब दिया-"उसने झूठ बोला था।"

यह सुनकर वह दौड़ा-दौड़ा अपने दोस्त के पास गया और कहने लगा-"उस हरामजादे ने हमारे साथ धोखा किया है…हमारे ही मजहब की लड़की थमा दी…चलो, वापस कर आएँ…।"

सॉरी

छुरी पेट चाक करती (चीरती) हुई नाफ (नाभि) के नीचे तक चली गई।

इजारबंद (नाड़ा) कट गया।

छुरी मारने वाले के मुँह से पश्चात्ताप के साथ निकला-"च् च् च्…मिशटेक हो गया!"

रियायत

"मेरी आँखों के सामने मेरी बेटी को न मारो…"

"चलो, इसी की मान लो…कपड़े उतारकर हाँक दो एक तरफ…"

बँटवारा

एक आदमी ने अपने लिए लकड़ी का एक बड़ा संदूक चुना। जब उसे उठाने लगा तो संदूक अपनी जगह से एक इंच न हिला।

एक शख्स ने, जिसे अपने मतलब की शायद कोई चीज मिल ही नहीं रही थी, संदूक उठाने की कोशिश करनेवाले से कहा-"मैं तुम्हारी मदद करूँ?"

संदूक उठाने की कोशिश करनेवाला मदद लेने पर राजी हो गया।

उस शख्स ने जिसे अपने मतलब की कोई चीज नहीं मिल रही थी, अपने मजबूत हाथों से संदूक को जुंबिश दी और संदूक उठाकर अपनी पीठ पर धर लिया। दूसरे ने सहारा दिया, और दोनों बाहर निकले।

संदूक बहुत बोझिल था। उसके वजन के नीचे उठानेवाले की पीठ चटख रही थी और टाँगें दोहरी होती जा रही थीं; मगर इनाम की उम्मीद ने उस शारीरिक कष्ट के एहसास को आधा कर दिया था।

संदूक उठानेवाले के मुकाबले में संदूक को चुननेवाला बहुत कमजोर था। सारे रास्ते एक हाथ से संदूक को सिर्फ सहारा देकर वह उस पर अपना हक बनाए रखता रहा।

जब दोनों सुरक्षित जगह पर पहुँच गए तो संदूक को एक तरफ रखकर सारी मेहनत करनेवाले ने कहा-"बोलो, इस संदूक के माल में से मुझे कितना मिलेगा?"

संदूक पर पहली नजर डालनेवाले ने जवाब दिया-"एक चौथाई।"

"यह तो बहुत कम है।"

"कम बिल्कुल नहीं, ज्यादा है…इसलिए कि सबसे पहले मैंने ही इस माल पर हाथ डाला था।"

"ठीक है, लेकिन यहाँ तक इस कमरतोड़ बोझ को उठाके लाया कौन है?"

"अच्छा, आधे-आधे पर राजी होते हो?"

"ठीक है…खोलो संदूक।"

संदूक खोला गया तो उसमें से एक आदमी बाहर निकला। उसके हाथ में तलवार थी। उसने दोनों हिस्सेदारों को चार हिस्सों में बाँट दिया।

हैवानियत

मियाँ-बीवी बड़ी मुश्किल से घर का थोड़ा-सा सामान बचाने में कामयाब हो गए।

एक जवान लड़की थी, उसका पता न चला।

एक छोटी-सी बच्ची थी, उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाए रखा।

एक भूरी भैंस थी, उसको बलवाई हाँककर ले गए।

एक गाय थी, वह बच गई; मगर उसका बछड़ा न मिला।

मियाँ-बीवी, उनकी छोटी लड़की और गाय एक जगह छुपे हुए थे।

सख्त अँधेरी रात थी।

बच्ची ने डरकर रोना शुरू किया तो खामोश माहौल में जैसे कोई ढोल पीटने लगा।

माँ ने डरकर बच्ची के मुँह पर हाथ रख दिया कि दुश्मन सुन न ले। आवाज दब गई। सावधानी के तौर पर बाप ने बच्ची के ऊपर गाढ़े की मोटी चादर डाल दी।

थोड़ी दूर जाने के बाद दूर से किसी बछड़े की आवाज आई।

गाय के कान खड़े हो गए। वह उठी और पागलों की तरह दौड़ती हुई डकराने लगी। उसको चुप कराने की बहुत कोशिश की गई, मगर बेकार…

शोर सुनकर दुश्मन करीब आने लगा। मशालों की रोशनी दिखाई देने लगी।

बीवी ने अपने मियाँ से बड़े गुस्से के साथ कहा-"तुम क्यों इस हैवान को अपने साथ ले आए थे?"

सफाई पसंद

गाड़ी रुकी हुई थी।

तीन बंदूकची एक डिब्बे के पास आए। खिड़कियों में से अंदर झाँककर उन्होंने मुसाफिरों से पूछा-"क्यों जनाब, कोई मुर्गा है?"

एक मुसाफ़िर कुछ कहते-कहते रुक गया। बाकियों ने जवाब दिया-"जी नहीं।"

थोड़ी देर बाद भाले लिए हुए चार लोग आए। खिड़कियों में से अंदर झाँककर उन्होंने मुसाफिरों से पूछा-"क्यों जनाब, कोई मुर्गा-वुर्गा है?"

उस मुसाफिर ने, जो पहले कुछ कहते-कहते रुक गया था, जवाब दिया-"जी मालूम नहीं…आप अंदर आके संडास में देख लीजिए।"

भालेवाले अंदर दाखिल हुए। संडास तोड़ा गया तो उसमें से एक मुर्गा निकल आया। एक भालेवाले ने कहा-"कर दो हलाल।"

दूसरे ने कहा-"नहीं, यहाँ नहीं…डिब्बा खराब हो जाएगा…बाहर ले चलो।"

साम्यवाद

वह अपने घर का तमाम जरूरी सामान एक ट्रक में लादकर दूसरे शहर जा रहा था कि रास्ते में लोगों ने उसे रोक लिया।

एक ने ट्रक के माल-असबाब पर लालचभरी नजर डालते हुए कहा-"देखो यार, किस मजे से इतना माल अकेला उड़ाए चला जा रहा है!"

असबाब के मालिक ने मुस्कराकर कहा-"जनाब, यह माल मेरा अपना है।"

दो-तीन आदमी हँसे-"हम सब जानते हैं।"

एक आदमी चिल्लाया-"लूट लो…यह अमीर आदमी है…ट्रक लेकर चोरियाँ करता है…!"

हलाल और झटका

"मैंने उसके गले पर छुरी रखी, हौले-हौले फेरी और उसको हलाल कर दिया।"

"यह तुमने क्या किया?"

"क्यों?"

"इसको हलाल क्यों किया?"

"मजा आता है इस तरह।"

"मजा आता है के बच्चे…तुझे झटका करना चाहिए था…इस तरह।"

और हलाल करनेवाले की गर्दन का झटका हो गया।

'सियाह हाशिये' से

मुनासिब कार्रवाई

जब हमला हुआ तो महल्‍ले में अकल्‍लीयत के कुछ लोग कत्‍ल हो गए

जो बाकी बचे, जानें बचाकर भाग निकले-एक आदमी और उसकी

बीवी अलबत्ता अपने घर के तहखाने में छुप गए।

दो दिन और दो रातें पनाह याफ्ता मियाँ-बीवी ने हमलाआवरों

की मुतवक्‍के-आमद में गुजार दीं, मगर कोई न आया।

दो दिन और गुजर गए। मौत का डर कम होने लगा। भूख

और प्‍यास ने ज्यादा सताना शुरू किया।

चार दिन और बीत गए। मियाँ-बीवी को जिदगी और मौत से

कोई दिलचस्‍पी न रही। दोनों जाए पनाह से बाहर निकल आए।

खाविंद ने बड़ी नहीफ आवाज में लोगों को अपनी तरफ मुतवज्‍जेह

किया और कहा : "हम दोनों अपना आप तुम्‍हारे हवाले करते हैं...हमें मार डालो।"

जिनको मुतवज्‍जेह किया गया था, वह सोच में पड़ गए : "हमारे धरम

में तो जीव-हत्‍या पाप है..."

उन्‍होंने आपस में मशवरा किया और मियाँ-बीवी को मुनासिब कार्रवाई

के लिए दूसरे महुल्‍ले के आदमियों के सिपुर्द कर दिया।

 

हैवानियत

बड़ी मुश्किल से मियाँ-बीवी घर का थोड़ा-सा असासा बचाने में कामयाब हो गए।

एक जवान लड़की थी, उसका पता न चला।

एक छोटी-सी बच्‍ची थी, उसको माँ ने अपने सीने के साथ चिमटाए रखा।

एक भूरी भैंस थी, उसको बलवाई हाँककर ले गए।

एक गाय थी, वह बच गई मगर उसका बछड़ा न मिला।

मियाँ-बीवी, उनकी छोटी लड़की और गाय एक जगह छुपे हुए थे।

सख्‍त अँधेरी रात थी।

बच्‍ची ने डरकर रोना शुरू किया तो खामोश फजा में जैसे कोई ढोल पीटने लगा।

माँ ने खौफजदा होकर बच्‍ची के मुँह पर हाथ रख दिया

कि दुश्‍मन सुन न ले। आवाज दब गई - बाप ने

एहतियातन बच्‍ची के ऊपर गाढ़े की मोटी चादर डाल दी।

थोड़ी दूर जाने के बाद दूर से किसी बछड़े की आवाज आई।

गाय के कान खड़े हो गए - वह उठी और दीवानावार दौड़ती हुई डकराने लगी।

उसको चुप कराने की बहुत कोशिश की गई, मगर बेसूद...

शोर सुनकर दुश्‍मन करीब आने लगा।

मशालों की रोशनी दिखाई देने लगी।

बीवी ने अपने मियाँ से बड़े गु़स्‍से के साथ कहा :

"तुम क्‍यों इस हैवान को अपने साथ ले आए थे?"
 

कस्रे-नफ्सी

चलती गाड़ी रोक ली गई।

जो दूसरे मजहब के थे,

उनको निकाल-निकालकर तलवारों और गोलियों से हलाक कर दिया गया।

इससे फारिग होकर

गाड़ी के बाकी मुसाफिरों की

हलवे, दूध और फलों से तवाजो की गई।

गाड़ी चलने से पहले

तवाजो करने वालों के मुंतजिम ने

मुसाफिरों को मुखातिब करके कहा :

"भाइयो और बहनो,

हमें गाड़ी की आमद की इत्तिला बहुत देर में मिली;

यही वजह है कि हम जिस तरह चाहते थे,

उस तरह आपकी खिदमत न कर सके…!"