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श्लोक ६ ते १०

जिस अलकामे, स्वर्गंगाका शीतलवायु जिनकी सेवा कर रहा है, मन्दारके वृक्षोकी छाया जिनपर पडती हुई धूपको रोक रही है और देवता जिनके लिये तरस रहे है, ऐसी यक्षबालाएँ सुनहरी बालूकी मुट्ठीयोमे रत्न छिपाकर उन्हे खोजनेके खेल कर रही है ॥६॥

जिस अलकामे अनुरागके कारण प्रेमियोके शरारती हाथो द्वारा कमरबन्दकी गांठ खोलदेनेसे शिथिल हुई साडियोको हटा देनेपर अत्यन्त लज्जित बिम्बोष्ठो लज्जित सुन्दरियाँ, अँधेरा करदेनेके विचारसे धूलकी मुट्ठी ऊँची लौवाले दीपकोपर फ़ेकती है, किन्तु उनका यह प्रयत्न व्यर्थ जाता है । क्योकि उन दीषकोसे अग्निकी ज्योति नही निकलती जो धूलसे बुझ जाय, वे तो रत्नोकी किरणे है जो तीव्र प्रकाश कर रही है ॥७॥

आगे बढनेकी प्रेरणा देनेवाले वायुसे जिस अलकाके सातमंजिले महलोकी छतोपर ले जाये गये तुम जैसे मेघ, छोटी-छोटी पानीकी झुर्रियोसे वहाके भित्ति-चित्रोको विकृत करके पकडे जानेकी डरसे जैसे, धुएँ की तरह बनकर तत्काल रोशनदानोसे बिखर-बिखरकर निकल आती है ॥८॥

जिस अलकामे अर्द्धरात्रिके समय चन्द्र्माके सामनेसे तुम्हारे हट जानेपर विमल चाँदनीके सम्पर्कसे स्वच्छ जलकणोको टपकानेवाली, झालरोमे लटकती हुई चंन्द्रकान्त मणियाँ प्रियतमोकी भुजाओके गाढ आलिंगनोसे उसाँसे भरती हुई नायिकाओकी संभोगजन्य अंगग्लानीको दूर कर देती है ॥९॥

जिस अलकामे, अक्षयनिधियाँ जिनके घरोमे भरी है, ऐसे कामीजन अप्सरारुप गणिकाओके साथ बाते करते हुए, सुरीले कंठवाले और कुबेरका यश गाते हुये किन्नरोके साथ वैभ्राज नामक उद्यानका आनन्द ले रहे है ॥१०॥

मेघदूत - उत्तरमेघा

संकलित साहित्य
Chapters
श्लोक १ ते ५ श्लोक ६ ते १० श्लोक ११ ते १५