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भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन एवं नव बिहार प्रान्त के रूप में गठन

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। १८५७ ई. के विद्रोह का प्रभाव उत्तरी एवं मध्य भारत तक ही सीमित राहा। इस आन्दोलन में मुख्य रूप से शिक्षित एवं मध्यम वर्गों का योगदान रहता था। राष्ट्रीय चेतना की जागृति में बिहार ने अपना योगदान जारी रखा। बिहार और बंगाल राष्ट्रीय चेतना का प्रमुख केन्द्र रहा। सार्वजनिक गठन की १८८० ई. में नींव रखकर भारतीय जनता में राष्ट्रीयता की भावना को जगाया। १८८५ ई. में राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हो चुकी थी। १८८६ ई. में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में बिहार के कई प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्‍वर सिंह कांग्रेस को आर्थिक सहायता प्रदान की थी।

नव राज्य का गठन, रेग्यूलेटिंग एक्ट १७७४ ई. के तहत बिहार के लिए एक प्रान्तीय सभा का गठन किया तथा १८६५ ई. में पटना और गया के जिले अलग-अलग किये गये।

१८९४ ई. में पटना से प्रकाशित समाचार-पत्र के माध्यम से बिहार पृथक्‍करण आन्दोलन की माँग की गई। इस पत्रिका के सम्पादक महेश नारायण और सच्चिदानन्द थे, जबकि किशोरी लाल तथा कृष्ण सहाय भी शामिल थे। कुर्था थाना में झण्डा फहराने की कोशिश में श्याम बिहारी लाल मारे गये। कटिहार थाने में झण्डा फहराने में कपिल मुनि भी पुलिस का शिकार हुए।

ब्रिटिश सरकार आन्दोलन एवं क्रान्तिकारी गतिविधियों से मजबूर होकर अपने शासन प्रणाली के नीति को बदलने लगी।

इस बीच गाँधी जी ने १० फ़रवरी १९४३ को २१ दिन का अनशन करने की घोषणा की। समाचार-पत्र में बिहार हेराल्ड, प्रभाकर योगी ने गाँधी जी की रिहाई की जोरदार माँग की। अक्टूबर, १९४३ के बीच लॉर्ड वेवेल वायसराय बनकर भारत आया। इसी समय २२ जनवरी १९४४ को गाँधी जी की पत्‍नी श्रीमती कस्तूरबा का देहान्त हो गया। मुस्लिम लीग ने बिहार का साम्प्रदायिक माहौल को बिगाड़ कर विभाजन करो और छोड़ो का नारा दे रहा था। मुस्लिम लीग ने ४ फ़रवरी १९४४ को उर्दू दिवस तथा २३ मार्च को पाकिस्तान दिवस भी मनाया गया। ६ मई १९४४ को गाँधी जी को जेल से रिहा कर दिया। अनुग्रह नारायण सिंह, बाबू श्रीकृष्ण सिंह, ठक्‍कर बापा आदि नेताओं की गृह नजरबन्दी का आदेश निर्गत किये गये।

जून, १९४५ में सरकार ने राजनैतिक गतिरोध को दूर करते हुए एक बार फिर मार्च, १९४६ ई. में बिहार में चुनाव सम्पन्‍न कराया गया। विधानसभा की १५२ सीटों में कांग्रेस को ९८, मुस्लिम लीग को ३४ तथा मोमीन को ५ सीटें मिलीं। ३० मार्च १९२६ को श्रीकृष्ण सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा अन्तरिम सरकार का गठन का मुस्लिम लीग ने प्रतिक्रियात्मक जवाब दिया। देश भर में दंगा भड़क उठा जिसका प्रभाव छपरा, बांका, जहानाबाद, मुंगेर जिलों में था। ६ नवम्बर १९४६ को गाँधी जी ने एक पत्र जारी कर काफी दुःख प्रकट किया। १९ दिसम्बर १९४६ को सच्चिदानन्द सिंह की अध्यक्षता में भारतीय संविधान सभा का अधिवेशन शुरू हुआ। २० फ़रवरी १९४७ में घोषणा की कि ब्रिटिश जून, १९४८ तक भारत छोड़ देगा।

१४ मार्च १९४७ को लार्ड माउण्टबेटन भारत के वायसराय बनाये गये। जुलाई, १९४७ को इण्डियन इंडिपेंडेण्ट बिल संसद में प्रस्तुत किया। इस विधान के अनुसार १५ अगस्त १९४७ से भारत में दि स्वतन्त्र औपनिवेशिक राज्य स्थापित किये जायेंगे। बिहार के प्रथम गवर्नर जयरामदास दौलतराम और मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह बने तथा अनुग्रह नारायण सिंह बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री बने। २६ जनवरी १९५० को भारतीय संविधान लागू होने के साथ बिहार भारतीय संघ व्यवस्था के अनुरूप एक राज्य में परिवर्तित हो गया। १९४७ ई. के बाद भारत में राज्य पुनर्गठन में बिहार को क श्रेणी का राज्य घोषित किया लेकिन १९५६ ई. में राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अन्तर्गत इसे पुनः राज्य के वर्ग। में रखा गया।

१५ नवम्बर २००१ को बिहार को विभाजित कर झारखण्ड और बिहार कर दिया गया।