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मुगल शासन

बिहार के महान अफगान सम्राट शेरशाह का स्थापित सूर वंश के पतन के बाद भी बिहार अफगानो के अधीन बना रहा। ताज खाँ करारानी, सुलेमान खाँ एवं दाऊद खाँ करारानी आदि के अधीन में रहा।

इन अफगान शासकों ने बिहार पर अपना नियन्त्रण १५८० ई. तक बनाये रखा। सुलेमान खाँ ने १५५६ ई. से १५७२ ई. तक शासन किया और अपना अधिकार क्षेत्र को उड़ीसा तक विस्तार किया। उसने तत्कालीन सम्राट के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहारिकता बनाये रखी, लेकिन उसका पुत्र दाऊद खाँ करारानी ने अकबर के प्रति अहंकारी रवैया अपनाया। फलतः मुगल शासक अकबर ने १५७४ ई. में बिहार पर आक्रमण किया और पटना पर अधिकार कर लिया। दाऊद खाँ भाग गया। बिहार मुगलों के अधीन १५७४ ई. से १५८० ई. तक पूर्णत: हो गया। १५८० ई. तक बिहार को मुगल साम्राज्य एक प्रान्त के रूप में घोषित कर दिया गया।

अफगानों ने विद्रोह का झण्डा बुलन्द किया तथा खान-ए-खनाम मुनीम खान को बिहार का गवर्नर नियुक्‍त किया गया। मुजफ्फर खान, टोडरमल एवं मुनीम खाँ ने इस अवधि में रोहतासगढ़, सूरजगढ़, मुंगेर भागलपुर एवं अन्य इलाकों पर कब्जा कर लिया।

अफगानों के छुटपुट नेता बहादुर खान, अधम खाँ, बतनी खाँ, दरिया खाँ नूहानी इत्यादि का विद्रोह हुआ, जिसे मुजफ्फर खान ने दबाया। मुजफ्फर खान ने गंगा पार कर चम्पारण के जमींदार उदय सिंह करण से सहायता प्राप्त कर विद्रोही पर आक्रमण कर हाजीपुर को जीता। पुनः मुजफ्फर खान अफगानों के जमावड़ों की खबर पाकर (मरहा गंडक नदी के पास) पहुँचा, लेकिन इसी युद्ध में मुगल सेना हार गयी और इस पराजय से मुगल सेना में गहरी मायूसी छाई हुई थी, लेकिन मुजफ्फर खान पुनः मुगल सेना को संगठित कर पुनः अफगान विद्रोही पर आक्रमण कर दिया। इस संघर्ष में ताज खाँ पनवार भाग गया तथा अफगान जमाल खान गिलजई गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद बिहार का गवर्नर (१५७५-८१ ई.) तक मुजफ्फर खान बना रहा।

इसी अवधि में मुनीम खाँ ने बंगाल और उड़ीसा के शासक दाऊद खाँ को पराजित करके मुगल प्रभुत्व की स्थापना की परन्तु अक्टूबर १५७५ ई. में मुनीम खाँ की मृत्यु हो जाने के बाद दाऊद खाँ ने पुनः सम्पूर्ण बंगाल पर अधिकार कर लिया। अकबर ने हुसैन कुली को बंगाल का गवर्नर बनाकर भेजा साथ-साथ बिहार के गवर्नर मुजफ्फर खान के खिलाफ ५,००० सेना भी भेजी। १५८२ ई. में खान-ए-आजम भी शाही दरबार में लौट गया, परन्तु विद्रोह भड़क जाने के कारण पुनः बिहर लौट गया और वह बिहार को पूर्णतः विद्रोह मुक्‍त कर दिया। अब मुगलों ने बंगाल में उठे विद्रोह को दबाने की कोशिश करने लगा। बिहार के प्रमुख अधिकारियों एवं खान-ए-आजम, भी बंगाल गये। बारी-बारी से खान-ए-आजम, शाहनबाज, सईद खान चधता तथा युसूफ खाँ को भेजा गया। अन्त में सईद खान को गवर्नर बनाकर ये सभी अधिकारी शाही दरबार में चले गये। सईद खान को बंगाल का सूबेदार बनाया गया। १५८७ ई. में कुँवर मानसिंह को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त किया गया। १५८९ ई. में राजा भगवान दास की मत्यु के पश्‍चात्‌ मानसिंह को राजा की पद्‍वी दी गई। उन्होंने गिद्दौर के राजा पूरनमल की पुत्री से शादी की। खड्‍गपुर के राजा संग्राम सिंह एवं चेरो राजा अनन्त सिंह को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया।

राजा मानसिंह के पुत्र जगत सिंह ने बंगाल के विद्रोही सुल्तान कुली कायमक एवं कचेना (जो बिहार के तांजपुर एवं दरभंगा में उत्पात मचा रहे थे) को शान्त किया। बिहार में मुगलों की सत्ता स्थापित होने के दौर में अफगानों ने अनेक बार विद्रोह किये। १९४ ई. में सईद खान तीसरी बार बिहार का सूबेदार बना और १५९८ ई. तक बना रहा। १५९९ ई. में जब उज्जैन शासक दलपत शाही ने विद्रोह किया तो इलाहाबाद के गवर्नर राजकुमार दानियाम ने उसकी पुत्री से विवाह कर लिया।

इस प्रकार अकबर के समय बिहार पठानों एवं मुगलों की लड़ाई का केन्द्र बना रहा और भोजपुर तथा उज्जैन ने मुगलों से ज्यादा पठानों के साथ अपना नजदीकी सम्बन्ध बनाये रखा। अकबर के अन्तिम समय में बिहार सलीम के विद्रोह से मुख्य रूप से प्रभावित हुआ। तत्कालीन गवर्नर असद खान को हटाकर असफ खान को गवर्नर नियुक्‍त किया गया।

जब जहाँगीर ने दिल्ली के राजसिंहासन १६०६ ई. में बैठा, तब उसने बिहार का सूबेदार लाल बेग या बाज बहादुर को नियुक्‍त किया। बाज बहादुर ने खडगपुर ने राजा संग्रामसिंह के विद्रोह को सफलतापूर्वक दबाया। बाज बहादुर ने नूरसराय का निर्माण कराया (जो स्थानीय परम्पराओं के अनुसार दरभंगा में एक मस्जिद एवं एक सराय है) यह नूरसराय मेहरुनिसा (नूरजहाँ) के बंगाल से दिल्ली जाने के क्रम में यहाँ रुकने के क्रम में बनायी गयी थी। १६०७ ई. बाज बहादुर ने जहाँगीर कुली खान की उपाधि पा गया था और उसे बंगाल का गवर्नर बनाकर भेजा गया। इसके बाद इस्लाम खान बिहार का गवर्नर बन गया १६०८ ई. में पुनः उसे भी बंगाल का गवर्नर बना दिया गया। इस्लाम के बाद अबुल फजल का पुत्र अब्दुर्रहीम या अफजल खान बिहार का सूबेदार बना तथा कुतुबशाह नामक विद्रोही को कुछ कठिनाइयों के बाद सफलतापूर्वक दबा दिया गया था।

१६१३ ई. में अफजल खान की मृत्यु के बाद जफर खान बिहार का सूबेदार बना। १६१५ ई. में नूरजहाँ का भाई इब्राहिम खाँ बिहार का सूबेदार बना लेकिन खडगपुर के राजा संग्राम सिंह के पुत्र द्वारा इस्लाम धर्म स्वीकार करने के बाद उसने अपना राज्य प्राप्त कर लिया। इब्राहिम खान को १६१७ ई. में बंगाल के गवर्नर के रूप में स्थानान्तरण किया गया तथा जहाँगीर कुली खाँ द्वितीय को १६१८ ई. तक बिहार का गवर्नर नियुक्‍त कर दिया। फिर एक बार अफगानों और मुगलों की सेना के बीच १२ जुलाई १५७६ को राजमहल का युद्ध हुआ और अफगान पराजित हुए। इधर भोजपुर एवं जगदीशपुर में उज्जैन सरदार राजा गज्जनशाही ने विद्रोह कर दिया। प्रारम्भ में मुगल सेना को काफी सहायता दी। उसने विद्रोह कर आरा पर कब्जा जमाया और वहाँ के जागीरदार फरहत खाँ को घेर लिया। उसका पुत्र फहरंग खान ने अपने पिता को गज्जनशाही के घेरे से मुक्‍त कराने का प्रयास किया, परन्तु इस प्रयास में वह मारा गया तथा फरहत भी मारा गया। गज्जनशाही गाजीपुर की ओर खान-ए-जहाँ के परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार करने के उद्देश्य से गया लेकिन केन्द्रीय सरकार द्वारा नियुक्‍त शाहवाज खान कम्बो ने पीछा करते हुए जगदीशपुर पहुँच गया और तीन माह तक घेराबन्दी कर अन्त में उसे पराजित कर दिया।

इसके पश्‍चात्‌ रोहतास के क्षेत्रों में अफगानों का उपद्रव शुरू हो गया। काला पहाड़ नामक अफगान (जो बंगाल से आया था) के साथ मिलकर विद्रोह शुरू कर दिया। मालुम खान ने इसे पराजित कर मार डाला। फलतः शाहवाज खान ने रोहतास के किले एवं शेरगढ़ पर अधिकार कर लिया। १५७७ ई. में मुजफ्फर खान को बिहार से आगरा बुला लिया गया और शुजात खान को बिहार का गवर्नर बनाया गया। १५७८ ई. से १५८० ई. तक बिहार का कोई मुगल गवर्नर नहीं रहा। इस अवधि में छोटे-छोटे सरदार ही शासन करते थे। पटना, रोहतास, आरा, सासाराम, हाजीपुर, तिरहुत के क्षेत्रों में सरदारों का शासन चलता था। बिहार में सूबेदार के अभाव में अव्यवस्था तथा अराजकता का माहौल बना हुआ था। १५७९ ई. में शेरशाह ने मुल्ला तैयब को दीवान एवं राय पुरुषोत्तम को मीर बक्शी नियुक्‍त किया था, लेकिन अधिकारियों की अदूरदर्शिता से शासन प्रणाली और अधिक चरमरा गई। इसी दौरान बिहार में अरब बहादुर के नेतृत्व में विद्रोह भड़क उठा। पटना में बंगाल से सम्पत्ति ले जा रही गाड़ियों को लूट लिया गया तथा १५८० ई. में विद्रोहियों ने मुजफ्फर खान की हत्या कर दी। कुशाग्र एवं बुद्धि वाला सेनापति राजा टोडरमल ने अतिरिक्‍त शाही सैनिक सहायता से बंगाल का विद्रोही नेता बाबा खान कमाल को मार डाला तथा मुंगेर शासक यासुम खान को घेर लिया। यासुम खान पराजित हो गया फलतः शाही सेना गया होते हुए शेर घाटी पहुँची। १५८० ई. के अन्त तक लगभग सम्पूर्ण दक्षिणी बिहार पर पुनः मुगलों का अधिकार हो गया।

अकबर ने अपने साम्राज्य को १२ सूबों में बाँटा था। उसमें बिहार भी एक अलग सूबा था जिसका गवर्नर खान-ए-आजम मिर्जा अजीज कोकलतास को बनाया गया। इस समय बिहार की कुल आय २२ करोड़ दाय अर्थात्‌ ५५,४७,९८५ रु. थी। १६१८ ई. मुर्करव खान को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त किया गया। वह अपने पिता के अनुरूप एक अच्छा चिकित्सक एवं अंग्रेजी साझी व्यापारी था। १६२१ ई. में बिहार का गवर्नर बनने वाला पहला राजकुमार था। वह शहजादा परवेज था। उसके प्रशासनिक कार्यों में मुखलिस खान सहायता करता था। इस समय बिहार में एक अफगान सरदार नाहर बहादुर खवेशगी द्वारा १६३६ ई. में पटना में पत्थर की मस्जिद का निर्माण करवाया था। १६२२-२४ ई. की अवधि में शहजादा खुर्रम ने बादशाह के खिलाफ विद्रोह कर दिया। खुर्रम ने पटना, रोहतास आदि क्षेत्रों पर परवेज का अधिकार छीन लिया। इसी समय खुर्रम ने खाने दुर्रान (बैरम बेग) को बिहार का गवर्नर बनाया।

२६ अक्टूबर १६२४ को बहादुरपुर के निकट टोंस नदी पर शहजादा परवेज की सेना ने खुर्रम को पराजित कर दिया। खुर्रम पटना होते हुए अकबर नगर चला गया फिर जहाँगीर द्वारा सुलह कर लिया गया। १६२६-२७ ई. में शहजादा परवेज के स्थान पर मिर्जा रुस्तम एफावी को को बिहार का सूबेदार बनाया गय जो जहाँगीर का अन्तिम गवर्नर था। १६२८ ई. में खान-ए-आलम बिहार का सूबेदार आठ वर्षों तक बना रहा। इसके बाद गुजरात के गवर्नर सैफ खान को बिहार का गवर्नर बना दिया गया। वह योग्य गवर्नरों में एक था उसने ही १६२८-२९ ई. में पटना में सैफ खान मदरसा का निर्माण कराया था। १६३२ ई. में बिहार का गवर्नर शाहजहाँ ने अपने विश्‍वस्त अब्दुल्ला खान बहादुर फिरोज जंग को बनाया। इस समय भोजपुर के उज्जैन शासक ने विद्रोह कर दिया। वह पहले मुगल अधीन मनसबदार था। अन्त में पराजित होकर राजा प्रताप को मार डाला। एक शाही अधिकारी शहनवाज खान बिहार आया। उसने खान-ए-आजम के साथ मिलकर उज्जैन के सरदार दलपत शाही एवं अन्य विद्रोही अरब बहादुर को शान्त किया। राजा टोडरमल के शाही दरबार में लौटने के बाद शाहनवाज को वजीर नियुक्‍त किया गया। अब्दुल्ला खान के बाद मुमताज महल का भाई शाहस्ता खाँ को बिहार का गवर्नर (१६३९-४३ ई.) बनाया गया।

शाइस्ता खाँ ने १६४२ ई. में चेरो शासकों को पराजित कर दिया। उसके बाद उसने मिर्जा सपुर या इतिहाद खाँ को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त कर दिया। १६४३ ई. से १६४६ ई. तक चेरी शासक के खिलाफ पुनः अभियान चलाया गया। १६४६ ई. में बिहार का सूबेदार आजम खान को नियुक्‍ किया गया। उसके बाद सईद खाँ बहादुर जंग को सूबेदार बनाया। इसके प्रकार १६५६ ई. में जुल्फिकार खाँ तथा १६५७ ई. में अल्लाहवर्दी ने बिहार का सूबेदारी का भा सम्भाला। अल्लाहवर्दी खान शाहजादा शुजा का साथ देने लगा, लेकिन शाही सेना ने शहजादा सुलेमान शिकोह एवं मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में शहजादा शुजा को पराजित कर दिया। १६ जनवरी १६५९ को खानवा के युद्ध में औरंगजेब ने शुजा को पराजित किया और शुजा बहादुर पटना एवं मुंगेर होते हुए राजमहल पहुँच गया।

मुईउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब शाहजहाँ तथा मुमताज महल का छठवाँ पुत्र था जब औरंगजेब दिल्ली (५ जून १६५९) को सम्राट बना तो बिहार का गवर्नर दाऊद खाँ कुरेशी को नियुक्‍त किया गया। वह १६५९ ई. से १६६४ ई. तक बिहार का सूबेदार रहा। दाऊद खाँ के बाद १६६५ ई. में बिहार में लश्कर खाँ को गवर्नर बनाया गया इसी के शासन काल में अंग्रेज यात्री बर्नीयर बिहार आया था। उसने अपने यात्रा वृतान्त में सामान्य प्रशासन एवं वित्तीय व्यवस्था का उल्लेख किया है। उस समय पटना शोरा व्यापार का केन्द्र था। वह पटना में आठ वर्षों तक रहा। १६६८ ई. में लश्कर खाँ का स्थानान्तरण कर इब्राहिम खाँ बिहार का सूबेदार बना। इसके शासनकाल में बिहार में जॉन मार्शल आया था। उसने भयंकर अकाल का वर्णन किया है।

एक अन्य डच यात्री डी ग्रैफी भी इब्राहिम के शासनकाल में आया था। जॉन मार्शल ने बिहार के विभिन्‍न शहर भागलपुर, मुंगेर, फतुहा एवं हाजीपुर की चर्चा की है।

इब्राहिम खाँ के बाद अमीर खाँ एक साल के लिए बिहार का सूबेदार नियुक्‍त हुआ, उसके बाद १६७५ ई. में तरवियात खाँ को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त किया गया। १६७७ ई. में औरंगजेब का तीसरा पुत्र शहजादा आजम को बिहार का गवर्नर नियुक्‍त किया गया। इसी अवधि में पटना में गंगाराम नामक व्यक्‍ति ने विद्रोह कर दिया। भोजपुर एवं बक्सर के राजा रूद्रसिंह ने भी असफल बगावत की। शफी खाँ के पश्‍चात्‌ बजरंग उम्मीद खाँ बिहार का गवर्नर बना परन्तु अपने अधिकारियों से मतभेद के कारण ज्यादा दिनों तक गद्दी पर नहीं रहा। फिदा खाँ १६९५ ई. से १७०२ ई. तक बिहार का सूबेदार बना रहा। इस अवधि में तिरहुत और संथाल परगना (झारखण्ड) में अशान्ति रही। कुंवर धीर ने विद्रोह कर दिया। इसे पकड़कर दिल्ली लाया गया। फिदा खाँ के बाद शहजादा अजीम बिहार के साथ-साथ बंगाल का भी शासक बना। शहजादा अजीम आलसी और आरामफरोश होने के कारण शीघ्र ही सत्ता का भार करतलब खाँ को दे दिया गया जो बाद में मुर्शिद कुली खाँ के नाम से जाना गया। परस्पर सम्बन्ध में कतुता आ गयी। १७०४ ई. में शहजादा अजीम स्वयं पटना पहुँचा। प्रशासनिक सुदृढ़ता के कारण शहर (पटना) का नाम अजीमाबाद रखा गया। बाद में अलीमर्दन के विद्रोह को दबाने को चला गया। १७०७ ई. में जब औरंगजेब की मृत्यु हो गई तथा बहादुरशाह १७०७ ई. में शसक बना और १७१२ ई. तक दिल्ली का शासक रहा तब राजकुमार अजीम बिहार का गवर्नर पद पर अधिक शक्‍ति के साथ बना हुआ था। उसका नाम अजीम उश शान हो गया।

१७१२ ई. में बहादुरशाह की मृत्यु हो गयी तो अजीम उश शान ने भी दिल्ली की गद्दी प्राप्त करने की कोशिश की, लेकिन वह असफल होकर मारा गया। जब दिल्ली की गद्दी पर जहाँदरशाह बादशाह बना तब अजीम उश शान का पुत्र फर्रुखशियर पटना में था। उसने अपना राज्याभिषेक किया और आगरा पर अधिकार के लिए चल पड़ा। आगरा के समीप फर्रुखशियर ने जहाँदरशाह को पराजित कर दिल्ली का बादशाह बन गया।

१७०२ ई. में मुगल सम्राट औरंगजेब के पौत्र राजकुमार को बिहार का सूबेदार नियुक्‍त किया गया। प्रशासनिक सुधार उन्होंने विशेष रूप से पटना में किया फलतः पटना का नाम बदलकर ‘अजीमाबाद’ रख दिया। अजीम का पुत्र फर्रूखशियर पहला मुगल सम्राट था जिसका राज्याभिषेक बिहार के (पटना में) हुआ था। मुगलकालीन बिहार में शोरा, हीरे तथा संगमरमर नामक खनिजों का व्यापार होता था। फर्रूखशियर के शासनकाल से बिहार का एक प्रान्तीय प्रशासन प्रभाव धीरे-धीरे कम होते-होते अलग सूबा की पहचान समाप्त हो गई।

१७१२ ई. से १७१९ ई. तक फर्रूखशियर दिल्ली का बादशाह बना इसी अवधि में बिहार में चार गवर्नर- खैरात खाँ- १७१२ ई. से १७१४ ई. तक, मीलू जुमला- १७१४ ई. से १७१५ ई. तक, सर बुलन्द खाँ-१७१६ ई. से १७१८ ई. तक बना। इस दौरान जमींदारों के खिलाफ अनेक सैनिक अभियान चलाए गये। भोजपुर के उज्जैन जमींदार सुदिष्ट नारायण का विद्रोह, धर्मपुर के जमींदार हरिसिंह का विद्रोह आदि प्रमुख विद्रोही थे। इन विद्रोहियों का तत्कालीन गवर्नर सूर बुलन्द खाँ ने दमन किया। सूर बुलन्द खाँ के पश्‍चात्‌ खान जमान खाँ १७१८-२१ ई. में बिहार का सूबेदार बना। अगले पाँच वर्षों के लिए नुसरत खाँ को बिहार का नया गवर्नर बना दिया गया। बाद में फखरुद्दौला बिहार का सूबेदार बनकर उसने छोटा नागपुर, पलामू (झारखण्ड) जगदीशपुर के उदवन्त सिंह के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़ा।

इसी के शासनकाल में ही पटना में दाऊल उदल (कोर्ट ऑफ जस्टिस) का निर्माण किया गया। परन्तु कुछ कारणवश इन्हें १७३४ ई. में पद से विमुक्‍त कर दिया गया। फखरुद्दौला की नियुक्‍ति के बाद शहजादा मिर्जा अहमद को बिहार का नाममात्र का अधिकारी गवर्नर नियुक्‍त किया गया बाद में इसे सहायक रूप में बंगाल में (नाजिम शुजाउद्दीन) को नियुक्‍त किया गया। शुजाउद्दीन ने अपने विश्‍वत अधिकारी अलीवर्दी खाँ को अजीमाबाद में शासन की देखभाल के लिए भेजा। वह अजीमाबाद (पटना में) १७३४ ई. से १७४० ई. तक नवाब बना रहा। उसने अपनी शासन अवधि में बिहार के विद्रोहों को दबाया और एक सश्रम प्रणाली का विकास कर राज्य की आय में बढ़ोत्तरी की। यही बढ़ी आय को उसने बंगाल अभियान में लगाया। वह १७३९ ई. में शुजाउद्दीन की मृत्यु के बाद गिरियाँ युद्ध में शुजाउद्दीन के वंशज को हराकर बिहार और बंगाल का स्वतन्त्र नवाब बन गया। इसी समय बंगाल पर मराठों और अफगानों का खतरा बढ़ गया। अफगानों ने १७४८ ई. में हैबतजंग की हत्या कर दी।

अलीवर्दी खाँ ने स्वयं रानी सराय एवं पटना के युद्ध में अफगान विद्रोहियों को शान्त किया। उसने १७५१ ई. में फतुहा के पास मराठों को पराजित किया था किन्तु मराठों ने उड़ीसा के अधिकांश क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इसमें मराठा विद्रोही का नेतृत्व रघु जी के पुत्र भानु जी ने किया था।

१७५६ ई. में अलीवर्दी खाँ की मृत्यु के बाद सिराजुद्दौला बंगाल का नवाब बना लेकिन एक प्रशासनिक अधिकारी रामनारायण को बिहार का उपनवाब बनाया गया। अप्रैल, १७६६ में सिराजुद्दौला बंगाल की गद्दी पर बैठा, गद्दी पर बैठते ही उसे शौकत जंग, घसीटी बेगम तथा उसके दीवान राज वल्लभ के सम्मिलित षड्‍यन्त्र का सामना करना पड़ा। सिराजुद्दौला का प्रबल शत्रु मीर जाफर था। वह अलीवर्दी खाँ का सेनापति था। मीर जाफर बलपूर्वक बंगाल की गद्दी पर बैठना चहता था दूसरी तरफ अंग्रेज बंगाल पर अधिकार के लिए षड्‍यन्त्रकारियों की सहायता करते थे।

फलतः व्यापारिक सुविधाओं के प्रश्‍न पर तथा फरवरी, १७५७ ई. में हुई अलीनगर की सन्धि की शर्तों का ईमानदारी के पालन नहीं करने के कारण २३ जून १७५७ में प्लासी के मैदान में क्लाइव और नवाब सेना के बीच युद्ध हुआ। युद्ध में सिराजुद्दौला मारा गया। इसके बाद मीर जाफर बंगाल का नवाब बना। इस प्रकार बिहार, बंगाल एवं उड़ीसा का नवाबी साम्राज्य धीरे-धीरे समाप्त हो गया और अंग्रेजी साम्राज्य की नींव पड़ गई।