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प्रस्तावना

श्री गणेशाय नमः

शिख०

मुकुंदा श्रीकृष्णा यदुकुलवतंसा मुर अरी ॥

यशोदा चित्ताचें सतत करिशीं तूं शम हरी ॥

समस्ता देवांना स्थल नच तुझे ज्ञान असता ॥

सुभक्‍ता तूं नेशीं स्वपदकमलीं नम्र बनता ॥१॥

आर्या

बुद्धी काही नसता ज्ञानहि नसता तुला स्तवायाते ॥

इच्छा मोठी वाटे भगवग्दींता-मृता स्तवायातें ॥१॥

यास्तव अनन्य भावे नमितो त्या शक्‍तिसागरा कृष्णा ॥

देउनि बुद्धी कवनी तृप्‍त करी बा जडाचि ही तृष्णा ॥२॥

स्त्रग्धरा

गीता जी अर्जुनाते कथन हरि करीं शुद्ध तत्वा कळाया ॥

व्यासानी भारती ती मधुर रचियली देववाणी जगी या ॥

अद्वैताच्या सुधेला कथन करित ती आठराध्याय योगे ॥

वंदी मी तीस आधी भवदवशमनी जी सदा मार्ग सांगे ॥३॥

समश्लोकी भगवद्‌गीता

संकलित
Chapters
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