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चातुर्याम धर्म 1

पार्श्वनाथाचा चातुर्याम धर्म

त्रिषष्टी-शलाका-पुरुष


जैनांचे श्वेताम्बर व दिगम्बर असे मुख्य दोन सम्प्रदाय आहेत. हे दोन्ही संप्रदाय त्रिषष्ठी ( ६३ ) शलाका-पुरुष मानतात. प्राचीन काळीं तशाच निमंत्रित माणसांना शलाका (सळ्या) पाठवीत असत. त्या दाखविल्या म्हणजे निमंत्रित स्थानीं प्रवेश मिळत असें. ह्या पद्धतीवरून निवडक पुरुषांना शलाका-पुरुष म्हणण्याचा प्रघात पडला असावा. जैन ग्रन्थांत असे निवडक किंवा प्रसिद्ध पुरुष ६३ सांगितले आहेत ते असे -
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१ विसुद्धिमग्गदीपिका २|२७ पहा.
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ऋषभ, अजित, संभव, अभिनन्दन, सुमती, पद्‍मप्रभ, सुपार्श्व, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शीतल, श्रेयांस, वासुपूज्य, विमल, अनन्त, धर्म, शान्ति, कुन्थु, अर, मल्लि, सुव्रत, नमि, नेमि, पार्श्व आणि वर्धमान हे २४ तीर्थंकर;

भरत, सगर, मघवा, सनत्कुमार, शान्ति, कुन्थु, अर, सुभौम, पद्‍म, हरिषेण, जयसेन आणि ब्रम्हदत्त हे १२ चक्रवर्ती;

विजय, अचल, सुधर्म, सुप्रभ, सुदर्शन, नन्दी, नन्दीमित्र, राम आणि पद्‍म हे ९ बलदेव;

त्रिपृष्ठ, द्विपृष्ठ, स्वयंभू, पुरुषोत्तम, पुरुषसिंह, पुरुषपुण्डरीक, पुरुषदत्त, नारायण ( लक्ष्मण ) आणि कृष्ण हे ९ नारायण;

आणि, अश्वग्रीव, तारक, मेरक, मधुकैटभ, निशुम्भ, बलि, प्रहरण, रावण आणि जरासंध हे ९ (त्यांचे) प्रतिशत्रु मिळून ६३ होतात.

ह्यांपैकीं शान्ति, कुन्थु व अर हे चक्रवर्ति होऊन तीर्थंकर झाले. त्यांची गणना तीर्थंकरांत झाली आहे आणि पुनः चक्रवर्तीतहि झाली आहे.