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रीगुरुदत्ता जय भगवंता। ते मन निष्ठुर न करी आता।।ध्रु।।

चोरे द्विजासी मारीता मन जे। कळवळले ते कळवळो आता।।
श्रीगुरुदत्ता जय भगवंता.....।।१।।

पोटशूळाने द्विज तडफडता। कळवळले ते कळवळो आता।।
श्रीगुरुदत्ता जय भगवंता.....।।२।।

द्विजसुत मरता वळले ते मन। हो की उदासीन न वळे आता।।
श्रीगुरुदत्ता जय भगवंता.....।।३।।

सतिपति मरता काकुळती येता। वळले ते मन न वळे की आता।।
श्रीगुरुदत्ता जय भगवंता.....।।४।।

श्रीगुरुदत्ता त्यजी निष्ठुरता। कोमल चित्ता वळवी आता।।
श्रीगुरुदत्ता जय भगवंता.....।।५।।