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फिल्में जो हम सबको देखनी चाहिए

हम अक्सर हिंदी सिनेमा को ये कह कर धिक्कारते हैं की वहां हॉलीवुड की नक़ल पर फिल्में बनती है | बॉलीवुड के निर्देशक और कहानीकार इस बात का ये कह समर्थन करते हैं की जनता को भी ऐसी कहानियां अच्छी लगती हैं |

लेकिन ऐसी कई हिंदी फिल्में हैं जो वाकई में बहुत दिलचस्प हैं | वह हम तक इसिलए नहीं पहुँचती क्यूंकि उनको सही से पेश नहीं किया जाता | आइये बात करते हैं कुछ ऐसी ही फिमों की जो भारतीय होने के साथ विश्वसनीय भी हैं | 

एक डॉक्टर की मौत 

इस एक फिल्म से पंकज कपूर फिल्म जगत के बेहतरीन अदाकारों की सूची में शामिल हो गए | सालों की शोध के बाद डॉ दीपंकर रॉय को लेप्रोसी का इलाज मिलता है | खबर को टीवी पर दिखा दिया जाता है जिससे उनके नीचे काम करने वाले डॉक्टर को ख्याति प्राप्त हो जाती है |साथियों के जलन और सत्ता के दुरूपयोग के चलते स्वास्थ्य विभाग के मंत्री उन्हें राज़ खोलने के लिए धमकाते हैं | उन्हें हल्का दिल का दौरा पड़ता है पर वह अस्पताल जाने से मना कर देते हैं |अमेरिकन संस्था से आया एक ख़त दबा दिया जाता है और डॉ रॉय को एक छोटे से गाँव में भेज दिया जाता है | अंत में दो अमेरिकी डॉक्टरों को वही इलाज ढूँढने का श्रेय दे दिया जाता है जिससे डॉ रॉय पूर्ण रूप से टूट जाते हैं |

जाने भी दो यारों 

ये फिल्म काफी लोकप्रिय हुई | नसीरुद्दीन शाह और राजू वासवानी मुख्य भूमिका में  और पंकज कपूर खलनायक की भूमिका में थे | दो फोटोग्राफर एक स्टूडियो खोलते हैं लेकिन शुरू से ही सब कुछ गलत होने लगता है | उनकी फोटोग्राफिक गतिविधियाँ उन्हें शहर के बिल्डर , नगर निगम के अफसर और अन्य लोगों की काली करतूतों से अवगत कराते हैं |

फिल्म व्यंग्य के माध्यम से कई बुराइयों को सामने लाती है और लोगों को सोचने पर मजबूर करती है | 

ऍन ओड टू लॉस्ट लव 

इस  एनेफ्डीसी की फिल्म की सिने खूबियाँ गाँधी के इलावा सभी फिल्मों से बेहतर थीं | 

अपनी शूटिंग के पहले दिन प्रमोद सुष्मिता , फिल्म की अदाकारा और उसकी माँ ज्योति भट की मुलाक़ात छायाकार एम् से कराता है | सुष्मिता एम् को बड़े भाई के तौर पर पसंद करने लगती है | एम् उसे अपनी अगली फिल्म में आशा के किरदार के लिए लेने का फैसला करता है | प्रमोद जो अब तक कुंवारा है और कई लड़कियों से सम्बन्ध रखता है वह अचानक सुष्मिता के लिए अलग भावना महसूस करने लगता है | 

में जिंदा हूँ 

एक अनाथ लड़की बीना मुंबई आती है लेकिन उसका नकारा पति उसे छोड़ देता है | वह अपने ससुराल की करता धर्ता बन जाती है | जब उसे किसी से प्यार होता है तो उसके परिवार के सदस्य रोज़ी रोटी छिनने के डर से मतलबी हो जाते हैं | एक बार उसका खोया पति वापस आ जाता है तो वह बीना से हमदर्दी नहीं दिखाते हैं और उसे वैश्या करार देते हैं | ये फिल्म समाज में औरतों के दर्जे के बारे में बात करती है और कैसे इतनी उम्मीदों के बीच वह अपनी असली ज़िन्दगी जी नहीं पाती है | 

बांगरवाड़ी

ये फिल्म निर्देशक बने अभिनेता अमोल पालेकर ने बनाई थी | इस फिल्म को राष्ट्रपति पुरुस्कार मिला था | ये एक स्कूल अध्यापक की कहानी है जो चरवाहों के गाँव में रहने आता है |वह उन्हें प्रगति के रास्ते पर ले जाना चाहता है | लेकिन अध्यापक और गाँव के भविष्य ,में क्या होना था ये किसे मालूम था | 

शुरुआती समस्याओं के बाद अध्यापक को वहां का वातावरण बहुत प्रेरक लगने लगता है | लेकिन फिर उसे दुसरे स्कूल में स्थानांतरित कर दिया जाता है | उसके पास सिर्फ गांववालों की सादगी की यादें रह जाती हैं | गाँव में आये सूखे से परेशान गाँव वाले उसे छोड़ने को मजबूर हो जाते है |अध्यापक भी चला जाता है , उसके साथ सिर्फ उसकी यादें जाती हैं | 

आगंतुक 

भारतीय सिनेमा सत्यजित रे के बिना अधूरा है | अन्य फिल्मों की तरह ये फिल्म भी उनकी श्रेष्टता को स्थापित करती है|

अनीता और उसके पति सुधीन्द्र बोस को खबर मिलती है की उनके चाचा मनमोहन जो 35 साल से अलग स्थानों का  सफ़र कर रहे हैं वह भारत वापस आ रहे हैं और उनसे मिलना चाहते हैं | मनमोहन आते हैं और साथ में लाते हैं अपनी सफ़र से जुडी कहानियां | उनकी सादगी पर बोस परिवार को शक होता है लेकिन वह उनके ११ साल के बेटे सत्यकी का दिल जीत लेते हैं | एक वकील दोस्त को बुलाकर बोस परीवार मनमोहन से पूछताछ कर उन्हें बेईज्ज़त करता है | अगले दिन मनमोहन जा चुके होते हैं | पति पत्नी जब उन्हें ढूँढने निकलते हैं तो एक ऐसी चीज़ सामने आती है जो उन दोनों के लिए ख़ुशी और शर्म दोनों की बात है | 

द वॉयेज बियॉन्ड 

१९ सदी में कभी सटी की प्रथा पर प्रतिबन्ध लग गया था | एक बूड़ा ब्राह्मण सीताराम प्रभु का आशीर्वाद पाने के लिए नदी पर जाता है पर एक ज्योतिषी उससे कहता है की वह दुबारा शादी कर फिर से ख्याति पा सकता है |इस प्रस्ताव को वह मान लेता है और एक गरीब और ज़रूरतमंद ब्राह्मण की बेटी यशोबती से ब्याह कर लेता है | शमशान के नौकर बैजू के विरोध के बावजूद शादी हो जाती है | 

बैजू को अचानक बेहद गुस्सा आता है और जो अंजाम होता है वह काफी अप्रत्याशित है | 

रघु रोमियो 

रघु एक डांस बार में वेटर है | उसके आस पास की दुनिया शोर गुल से भरी है | ये ऐसी जगह है जहाँ सब उससे गलत व्यव्हार करते हैं | ऐसे में कोई उम्मीद की किरण है तो वह है –नीताजी से उसका रिश्ता | रघु के लिए नीताजी धरती माँ के जैसे प्यार से भरी और दानी हैं | बस एक समस्या है – वह काल्पनिक है – वह सिर्फ टी वी पर एक किरदार है | और फिर रघु को पता चलता है की कोई नीताजी को मारना चाहता है | उसे उन्हें किसी भी कीमत पर बचाना होगा !

बबल गम 

वेदांत १४ साल का है | वह एक अकेले बच्चे की तरह पल रहा है | वह अपने माता पिता – मुकुंद और सुधा से उसके बड़े भाई निशांत के प्रति चिंता को लेकर नाराज़ रहता है | निशांत सुन नहीं सकता और लखनऊ जैसे बड़े शहर में एक विशेष स्कूल में पढ रहा है | क्यूंकि दोनों माँ बाप बच्चों की महंगी पड़ाई के समर्थन के लिए नौकरी कर रहे हैं – वेदांत के लिए किसी के पास वक़्त नहीं है | जितना वक़्त मिलता है वह निशांत की चिंता में लगा देते हैं | क्यूंकि वेदांत सामान्य बच्चा है इसलिए किसी को उसकी ज़रुरत नहीं है | 

ज़िन्दगी तब खूबसूरत लगती है जब जेनी नाम की एक लड़की पास में रहने आती है | वह उसके नज़दीक आने की कोशिश करने लगता है लेकिन 15 साल के रतन के भी वैसे ही इरादे हैं | जब होली पर निशांत घर आता है तो सब लोग कोशिश करते हैं की उसे हर तरह का सुख दे सकें ! वेदांत को अपने स्थानीय दोस्तों को छोड़ अपने भाई को प्राथमिकता देने को कहा जाता है ! लेकिन जेनी को खोने के डर से वेदांत इस बात का विरोध करता है | उस विरोध के माध्यम से ही वह अपने , अपने भाई और अपने परिवार को सही मायने में पहचान पाता है |

बबलगम न सिर्फ वेदांत के विकास की कहानी है बल्कि उसके माँ बाप को भी ये एहसास दिलाती है की उनकी कोशिशें उनके विकलांग बेटे को तो सामान्य बना रही है लेकिन उनके दूसरे सामान्य बेटे को विकलांग बनने पर मजबूर  कर रही हैं | 


६५ साल पर भी जवान :भारतीय फिल्म उद्योग

Shivam
Chapters
भूमिका 1950-60 1950-60 1970-80 1990-2015 फिल्में जो हम सबको देखनी चाहिए