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गीता की शैली पौराणिक

दूसरी बात यह है कि गीता का विषय और उसके तर्क वगैरह जरूर दार्शनिक हैं; मगर विषय प्रतिपादन की शैली पौराणिक है और गीता की यह एक खास खूबी है। दार्शनिक रीति रूखी और सख्त होती है, नीरस होती है। फलत: सर्वसाधारण के दिमाग में यह बात जँचती नहीं, जिससे लोग ऊब जाते हैं। फिर भी दार्शनिक इसकी परवाह करते नहीं। उन्हें तो सत्य का प्रतिपादन करना होता है। वे उपदेशक और प्रचारक तो होते नहीं कि लोगों के दिल-दिमाग को देखते फिरें। मगर गीता तो उपदेशक का काम करती है। इसका तो काम ही है सार्वजनिक जीवन से संबंध रखने वाले कामों का विवेचन करना और उनके रहस्य को लोगों के दिल-दिमाग में पहुँचाना। इसीलिए उसने पौराणिक शैली अख्तियार की है। इसकी विशेषता यही है कि संवाद, प्रश्नोत्तर या कथनोपकथन के रूप में ये बातें इसमें रखी गई हैं। इससे प्रसंग रुचिकर हो जाता है, उसमें सरसता आ जाती है। बच्चों के लिए यह संवाद की ही प्रणाली ज्यादा हितकर मानी जाती है। हितोपदेश में यही बात पाई जाती है और पुराणों में भी। इसके चलते कठिन से कठिन विषय भी आलंकारिक ढंग से प्रतिपादित हो के सहज बन जाते हैं। चौदहवें अध्याकय में गर्भधारण के रूप में सृष्टि का निरूपण कितना सुंदर है! अर्जुन को दूसरे अध्याचय में जो डाँटा गया है कि मुँह कैसे दिखाओगे वह कितना अनूठा है! पंदरहवें में, मरण के समय जीव सभी संस्कारों को ले के साथ ही जाता है, इसका कितना सुंदर वर्णन वायु के द्वारा फूलों की गंध ले जाने की बात से किया गया है!

गीताधर्म और मार्क्सवाद

स्वामी सहजानन्द सरस्वती
Chapters
गीताधर्म कर्म का पचड़ा श्रद्धा का स्थान धर्म व्यक्तिगत वस्तु है धर्म स्वभावसिद्ध है स्वाभाविक क्या है? मार्क्‍सवाद और धर्म द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद और धर्म भौतिक द्वन्द्ववाद धर्म, सरकार और पार्टी दृष्ट और अदृष्ट अर्जुन की मानवीय कमजोरियाँ स्वधर्म और स्वकर्म योग और मार्क्‍सवाद गीता की शेष बातें गीता में ईश्वर ईश्वर हृदयग्राह्य हृदय की शक्ति आस्तिक-नास्तिक का भेद दैव तथा आसुर संपत्ति समाज का कल्याण कर्म और धर्म गीता का साम्यवाद नकाब और नकाबपोश रस का त्याग मस्ती और नशा ज्ञानी और पागल पुराने समाज की झाँकी तब और अब यज्ञचक्र अध्यात्म, अधिभूत, अधिदैव, अधियज्ञ अन्य मतवाद अपना पक्ष कर्मवाद और अवतारवाद ईश्वरवाद कर्मवाद कर्मों के भेद और उनके काम अवतारवाद गुणवाद और अद्वैतवाद परमाणुवाद और आरंभवाद गुणवाद और विकासवाद गुण और प्रधान तीनों गुणों की जरूरत सृष्टि और प्रलय सृष्टि का क्रम अद्वैतवाद स्वप्न और मिथ्यात्ववाद अनिर्वचनीयतावाद प्रातिभासिक सत्ता मायावाद अनादिता का सिद्धांत निर्विकार में विकार गीता, न्याय और परमाणुवाद वेदांत, सांख्य और गीता गीता में मायावाद गीताधर्म और मार्क्सवाद असीम प्रेम का मार्ग प्रेम और अद्वैतवाद ज्ञान और अनन्य भक्ति सर्वत्र हमीं हम और लोकसंग्रह अपर्याप्तं तदस्माकम् जा य ते वर्णसंकर: ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव सर्व धर्मान्परित्यज्य शेष बातें उत्तरायण और दक्षिणायन गीता की अध्‍याय-संगति योग और योगशास्त्र सिद्धि और संसिद्धि गीता में पुनरुक्ति गीता की शैली पौराणिक गीतोपदेश ऐतिहासिक गीताधर्म का निष्कर्ष योगमाया समावृत