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पत्री 63

खरा धर्म

खरा तो एकची धर्म। जगाला प्रेम अर्पावे

जगी जे हीन अति पतित
जगी जे दीन पददलित
तया जाऊन उठवावे। जगाला....।।

जयांना कोणी ना जगती
सदा जे अंतरी रडती
तया जाऊन सुखवावे। जगाला....।।

समस्ता धीर तो द्यावा
सुखाचा शब्द बोलावा
अनाथा साह्य ते द्यावे। जगाला....।।

सदा जे आर्त अति विकळ
जयांना गांजिती सकळ
तया जाऊन हसवावे। जगाला....।।

कुणा ना व्यर्थ शिणवावे
कुणा ना व्यर्थ हिणवावे
समस्ता बंधु मानावे। जगाला....।।

प्रभूची लेकरे सारी
तयाला सर्वही प्यारी
कुणा ना तुच्छ लेखावे। जगाला....।।

जिथे अंधार औदास्य
जिथे नैराश्य आलस्य
प्रकाशा तेथ नव न्यावे। जगाला....।।

असे जे आपणापाशी
असे जे वित्त वा विद्या
सदा ते देतची जावे। जगाला....।।

भरावा मोद विश्वात
असावे सौख्य जगतात
सदा हे ध्येय पूजावे। जगाला....।।

असे हे सार धर्माचे
असे हे सार सत्याचे
परार्थ प्राणही द्यावे। जगाला....।।

जयाला धर्म तो प्यारा
जयाला देव तो प्यारा!
तयाने प्रेममय व्हावे। जगाला....।।

खरा तो एकची धर्म। जगाला प्रेम अर्पावे।।

-धुळे तुरुंग, मे १९३४

पत्री

पांडुरंग सदाशिव साने
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