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पत्री 9

मग फुटतिल रे दिव्य धुमारे माते
मांडवी चढव निज हाते
दे छोटासा मंडप मज घालून
त्यावर प्रभुजि! पसरेन
कधि येतील ती फुले फळे मधु
मजला
लागेल ध्यान मन्मतिला
होईन अतिच उत्कंठ
कळि हळुच होइल प्रकट
तू होशिल बघुनी हृष्ट
मग सुंदरशी कितिक फुले फुलतील
काळजी का न घेशील।। मी....।।

जरि सकळ फुले सखया! ना फळतील
झडतील काहि गळतील
ती काहि तशी वांझ प्रभु! निघतील
कितिकांस किडी खातील
कितिकांस फळे धरतिल परि सडतील
वाढ ना नीट होईल
परि एक दोन तरि दिव्य
रसभरित मधुर तुज सेव्य
येतील फळे प्रभु भव्य
तव पद=-पूजा-कामी ती येतील
काळजी का न घेशील।। मी....।।

यापरि देवा! त्वदंगणी विकसू दे
बहरू दे, मुदे पसरू दे
मजमाजी जे आहे ते वाढवुन
त्वच्चरणकमळि वाहीन
परि वाढाया आहे करुणा-शरण
वाढेन सदय जरि चरण
मद्विकास त्वत्पूजार्थ
ना इतर हेतु हृदयात
हा एकच सखया हेत
फलपुष्पी हा वेल तवार्चन करिल
काळजी का न घेशील।। मी....।।

-नाशिक तुरुंग, सप्टेंबर १९३२

पत्री

पांडुरंग सदाशिव साने
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