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शादी की बजह

शनिवार की शाम, चार मित्रों की महफिल सज गई। बारी बारी से हर शनिवार को, इस शनिवार महेन्द्र के घर एकत्रित हुए सुरेन्द्र, नरेन्द्र और राजेन्द्र। ताश की गड्डी एकदम नई, चमचमाती हुई। पत्ते फेटने के बाद बाटे गए और ताश के गेम के साथ गपशप शुरू हो गई। चारों बचपन से लंगोटिया यार, स्कूल के जमाने के। एक ताश ने बांध के रखा है, वरना कब के बिछुड गए होते।
ताश के गेम को ब्रेक लगा। महेन्द्र के रिश्तेदार शादी का न्योता देने आए। महेन्द्र रिश्तेदारों के साथ कुछ समय के लिए बिजी हो गया। दूसरे कमरे में बैठे बाकी तीन दोस्त गपशप में व्यस्त हो गए। कुछ देर तक जब महेन्द्र रिश्तेदारों के साथ व्यस्त था, तब सुरेन्द्र ने ताश की गड्डी एक साइड में रखी।
राजेन्द्र – “यार ताश क्यों रख दी।“
सुरेन्द्र – “यह महेन्द्र कहां सो गया।“
नरेन्द्र – “सोया नही, रिश्तेदारों के साथ व्यस्त है।“
सुरेन्द्र – “रिश्तेदार शादी का कार्ड देने आए थे। लगता है, डोली यहीं से लेकर जाएगें।“
तीनों दोस्त खिलखिला के हंस पडे।
राजेन्द्र – “यह शादी के कार्ड पर पुरानी बात याद आ गई। हम शादी क्यों करते हैं?”
नरेन्द्र – “सीधी बात है, औरत और मर्द को प्रकृत्या एक दूसरे की जरूरत की जरूरत होती है, इसलिए शादी करते है।“
राजेन्द्र – “यार तू तो फिलोस्फरों की तरह बात करता है। कोई और कारण भी होगा।“
सुरेन्द्र – “जब तक महेन्द्र हमें ज्वाईन नहीं करता, इस बात पर चर्चा करते है, कि आदमी शादी क्यों करता हैं।“
नरेन्द्र – “जो बात मैंनें कही, वही कटु सच है, आदमी और औरत को प्रकृत्या एक दूसरे की जरूरत होती है, इसलिए शादी करते हैं। एक उम्र के बाद मां बाप बच्चों के विवाह की सोचते है। अगर मां बाप नही सोचते, तो लडका, लडकी खुद इस विषय में सोचते है और प्रेम विवाह करते है। और कोई कारण हो नही सकता शादी का।“
राजेन्द्र – “तो शादी तुमने इस कारण की।“
नरेन्द्र – “सच बोल रहा हूं। गीता पर हाथ रख कर कह सकता हूं।“
सुरेन्द्र और राजेन्द्र हंस पडे – “भई, भाभीजी की कसम खा रहा है, यार हमारा।“
नरेन्द्र मुसकुरा दिया – “क्या करूं, बीवी का नाम गीता है। बदल नही सकता।“
तभी महेन्द्र भी रिश्तेदारों से निबट कर महफिल में शरीक हो गया।
राजेन्द्र – “महेन्द्र भी आ गया, चलो इसी से पूछते है, भई इसने शादी क्यों की?”
महेन्द्र गंभीर मुद्रा में – “सच कहूं या झूठ।“
नरेन्द्र – “जो तेरी इच्छा हो, वोही बोल दे, सच या झूठ, सब चलेगा, यारों की महफिल में।“
चारों दोस्तों का जोर का ठहाका लगा।
महेन्द्र – “नरेन्द्र की बात में सच्चाई है, शादी के लिए मैं कुछ रूक सकता था। लेकिन एक बात यह भी है कि बाप ने कहा। पार्टी मालदार है। हां कह दे, ऐश करेगा, पूरी लाईफ, कर ली, लडकी अमीर थी, इसलिए शादी कर ली। अब तुम भी कहो, कि तुमने शादी क्यं की।“
सुरेन्द्र – “य़ार तुमको तो मालूम है, कि शादी से पहले अवारागर्दी करता था। मांबाप परेशान थे कि लौंडे को कैसे सही राश्ते पर लाया जाए। दादा जी ने कहा। शादी कर दो, बीवी दो जमाएगी। कमाने धमाने लगेगा। बस इसी चक्कर में शादी कर ली।“
नरेन्द्र – “शादी के चक्कर में फंसे कैसे।“
सुरेन्द्र – “पहले तो मैं लडकी देखने को तैयार नही था। बाप मे कहा, एक बार देख ले। खूबसूरत है। सुन्दरता पर मर मिटा। शादी कर ली। दादा का कहना सही निकला। महीने बाद ताने देने लगी। बाप की कमाई पर कब तक ऐश करते रहोगे। काम धन्धा करो। बाप की दुकान पर बैठा, फिर बात बनी, नही तो छोटने की धमकी देने लगी। योही बात आजकल में अपने लौंडे से कर रहा हूं। अब राजेन्द्र तू बता, तूने क्यों की?“
राजेन्द्र – “मैं हमेशा से कम बोलने वाला रहा हूं। मांबाप ने शादी की बात की,कहने लगे, चुप रहने से कुछ नही होगा। खानदान, वंश आगे बढाने के लिए शादी जरूरी है। कुछ बोल ही नही सका। खामोश रह गया। मांबाप ने शादी तय कर दी।“
तभी महेन्द्र की पत्नी मीना ने कमरे में प्रवेश किया।
मीना – “किस बात पर जोरों से ठहाका लगाया जा रहा है।“
नरेन्द्र – “भाभीजी, मजाक जरूर हो रहा है, किन्तु मुद्दा गंभीर है।“
मीना – “कुछ बताऔ, तो जाने।“
नरेन्द्र – “हम शादी क्यों करते है। कोई वजह तो जरूर होती है। हम अपनी अपनी शादी करने की वजह बता रहे है।“
मीना – “जरा हमें भी तो मालूम हो, वो क्या क्या कारण रहे, चार यारों के।“
नरेन्द्र – "हमारा तो डिस्कश्न तो हो गया। मैं महिलाऔं से शादी करने के कारण जानना चाहता हूं।“
मीना – “सच बोलू या दिल खुश करने की बात करू।“
नरेन्द्र – “सच भी बोलिए, ठिठोली भी किजिए।“
मीना – “मुफ्त में नौकरी करने का सिर पर भूत सवार हो गया था, इसलिए शादी की थी।“
महेन्द्र – “औह माई गौड, क्या कह रही है। मेरा तो फलूदा निकाल दिया। सारी कायानात तेरे हवाले कर दी, कह रही है, मुफ्त की नौकरी।“
मीना – “देखो, नौकर लोगों को हफ्ते में एक छुट्टी मिलती है, हमें कब मिलती है। आज कोई नौकर नही है, घर में एक कह कर छुट्टी ले गया, दूसरा बिन बताए छुट्टी कर गया। हम तो न बता कर छुट्टी कर सकते है, न बिना बताए। जाए तो जाए कहां। करे तो करे क्या। आप तो ताश खेलने बैठ गए। रसोई में तो जुतना पडेगा। कोई रास्ता है ही नही।“
महेन्द्र को तो जैसे कोई सांप सूंघ गया हो। नरेन्द्र ने बात सँभाली।
नरेन्द्र – “भाभी जी, मुफ्त की नौकरी शादी के बात हर कोई करता है। पति और पत्नी शादी के बाद एक दूसरे के नौकर होते है और मालिक भी। विवाह को बाद गृहस्थी शुरू होती है। पति, पत्नी दोनों एक दूसरे के पूरक होते हैं, बिना एक के गृहस्थी की गाडी सरकना ही भूल जाती है। कभी कोई नौकर बनता है, तो कभी मालिक। कभी कोई बात मानता है, तो कभी मनवाता है। कभी मान लो, कभी मनवा लो। यही जिन्दगी का सिलसिला है।“
मीना – “भाई साहब, कुछ ज्ञान महेन्द्र बाबू को भी दीजिए। हमेशा ठिठोली करते रहते हैं।“
नरेन्द्र – “जिन्दगी खुद एक पहेली और ठिठोली भी है। जिसको जानना, समझना बहुत मुश्किल है। मेरे जैसी गंभीरता हमेशा अच्छी नही, तो महेन्द्र जैसी ठिठोली भी। आपका संतुलन मुझे अच्छा लगता है।“
मीना हंसती हुई काम में जुट गई और चार यार ताश खेलने में।
एक प्रश्न फिर भी शेष है।
कौन सा। ?
हो तो शेयर करें। हैई और चार यार ताश खेलने में।
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वही शादी की असली वजह क्या है? प्रकृत्या या फिर कुछ और? आप की क्या राय है।

 

मनमोहन भाटिया