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सिरफिरा

रौशन प्रगति मैदान पर मेट्रो से उतर कर स्टेशन से बाहर प्रतीक्षा करने लगा। घडी देखी और सोचने लगा, दस मिन्ट लगेगें रानी को प्रगति मैदान आने में। शनिवार का दिन, ऑफिस में हाफ डे के बाद पुस्तक मेला देखने का मौह रौशन छोड नही पाया। ऑफिस से निकलने से पहले पत्नी रानी को फोन किया, तो रानी ने तुरन्त शाम पुस्तक मेले के बाद इंडिया गेट और रात का खाना क्नाट पलेस में कार्यक्रम बना दिया। बच्चे बडे हो गए हैं, विवाह के बीस वर्ष बाद रौशन और रानी एक साथ शाम के समय, रौशन को विवाह के पश्चात प्रगति मैदान, इंडिया गेट और क्नाट पलेस में शामें गुजारना याद आ गया। रौशन यादों में खोया मंद मुस्करा दिया।
“कहां खोए हुए हो, श्रीमान जी, किसको देख कर मुस्करा रहे हो।“
रौशन यादों से बाहर आ गया। “विवाह के बाद के दिन याद आ गए थे, जब यहीं प्रगति मैदान के बाद इंडिया गेट,क्नाट पलेस घूमा करते थे।“ रौशन ने रानी का हाथ पकडा और मेट्रो स्टेशन से प्रगति मैदान की तरफ बातें करते करते पैदल चलने लगे। पुस्तकों के शौकीन रौशन और रानी पुस्तकों में खो गए। एक बुक स्टाल के कैश कांऊंटर पर रौशन पेमेन्ट कर रहा था, एक आवाज ने उसे पीछे मुड कर देखने पर मजबूर किया।
“मिस्टर रौशन, आपको भी पुस्तकों का शौक हैं।“ आवाज बैंक अधिकारी कविता की थी. उसके हाथों में कुछ किताबें थी, जिसकी पेमेन्ट करने के लिए वह रौशन के पीछे खडी थी।
“आपने भी वोही किताब खरीदी है,जो मैंनें ली है। इसका मतलब है, कि कम से कम पुस्तकों के मामले में हमारी पसन्द एक ही है।“
रौशन मुस्कुरा दिया। “मेरी पत्नी रानी।“ कविता से रानी का परिचय करवाया।
“नमस्ते।“कविता ने भी मुस्कुराते हुए कहा। रौशन, रानी और कविता बातें कर रहे थे, तभी भीड में एक आदमी ने रौशन को जोर से धक्का दिया और तेजी से आगे बढ गया। रौशन लडखडा गया और उसके हाथों से किताबें गिर गई।
“इडियट, देख कर नही चलते।“ कविता ने कहा। रानी और कविता ने किताबं उठाई। बुक स्टाल के सेल्समैन ने रौशन को सहारा देकर उठाया।
“आप के चोट तो नही आई न।“ कविता ने रौशन से पूछा।
“मैं ठीक हूं, कविता जी। आप अकेले हैं।“ रौशन ने कविता से पूछा।
“मेरे पति भी आए हैं। उनकों पुस्तकों का कोई शौंक नही है, पुस्तक मेले में मेरा साथ दे रहे हैं।“ कह कर कविता खिलखिला कर हंस दी। इधर उधर देख कर कहा “ढूंढती हूं, कहां हैं।“ अच्छा बाए कह कर कविता ने रूकसत ली।
पुस्तक मेले के बाद रौशन और रानी इंडिया गेट के लॉन में हाथ में हाथ डाले बातें करते हुए पुराने दिनों को दोराह कर जवानी को याद कर रहे थे, तभी एक आदमी ने रौशन को जोर से धक्का दिया और आगे बढ गया। रौशन लडखडा कर गिर पडा। रानी ने सहारा दिया। तीन चार युवकों ने रौशन को सहारा देकर उठाया। एक ने पूछा “अंकल कोई चोट तो नही लगी।“ रौशन और रानी ने मुआयना किया, कोई चोट नही लगी थी। दोनों ने युवको को धन्यवाद कहा।
“पहले पुस्तक मेले में और अब यहां इंडिया गेट में आपको धक्का दिया, पता नही कौन पागल है। आईए यहां से चलते हैं। सारा मूड खराब कर दिया। पता नही, फिर से पागल आ जाए।“ रानी ने कहा।
“हां, रानी चलते हैं, क्या खाने का मूड है।“
“बंगाली मार्किट चल कर चाट का लुत्फ उठाया जाए, बहुत दिन हो गए। पुराने दिन याद करके एक ताजापन का अहसास होता है।“ रानी ने कहा।
बंगाली मार्किट में संयोग से कविता भी उन्हे मिल गई. कविता ने अपने पति करन से परिचय करवाया। करन से मिलने के पश्चात रौशन को कुछ ऐसा अहसास हुआ, कि कहीं देखा है, करन को। करन कुछ कुटिल सी मुस्कान के साथ गर्म जोशी के साथ रौशन से मिला। खाने के आनन्द के पश्चात वापिस घर जाने के लिए रौशन कार का दरवाजा खोल रहा था, तभी उसके कंधे पर फिर से टक्कर लगी। मुड कर देखा, करन मुस्कुरा रहा था। कविता कुछ दूरी पर अपनी कार के पास करन का इंतजार कर रही थी। टक्कर देने के बाद कुटिल मुस्कान के साथ करन चला गया। कार स्टार्ट की। रौशन और रानी के कानों में कविता की आवाज आई। वह करन से पूछ रही थी, कि उसने रौशन को टक्कर क्यों मारी, क्या पुस्तक मेले और इंडिया गेट में भी रौशन को उसने टक्कर मारी थी। शिष्टाचार के नाते रूक कर उनकी बातें सुनना अच्छा नही लगा, कार आगे बढा दी, बस इतना सुन सके, करन कह रहा था, साले की अक्ल ठिकाने लगा दूंगा, तेरे से बात करने की उसकी हिम्मत कैसे हुई। करन चुप करो, रौशन हमारे बैंक का क्लाईंट है। अपनी सनक बंद करो, मैं तंग आ चुकी हूं, तुम्हारे शक का कोई ईलाज नही हैं। चलो यहां से। सारा मूड खराब कर दिया है। पता नही रौशन क्या सोचेगा। किसी ऐरे गेरे से बात नही कर रही थी, करोडो का बिजिनेस उसकी कम्पनी से बैंक हर रोज करता है, और तुमने उसको एक बार नही, तीन बार दिया। शर्म आती है, मुझे तुम्हारे साथ चलते हुए। कोई काम काज करते नही, मेरी सैलरी पर रोटियां तोड रहे हो और मेरे क्लाईट पर रौब डालते हो। कविता की बातों का करन पर कोई असर नही पडा। वह खीं खीं करके हंसता रहा। बीच बीच में कहता रहा, तुम जानती नही हो उसको। पहले भी ठीक किया था, अब भी कर दूंगा।
रास्ते में रौशन और रानी भी करन की बातें करते रहे।
“क्या तुम जानते हो करन को, बहुत ही संदिग्ध व्यक्तित्व का लग रहा था। कुटिल मुस्कान थी, जी चाह रहा था, एक रख कर दूं, कान के नीचे, लेकिन यह कर नही सकी। आपके बैंकर का पति निकला। आपको धक्के उसी ने दिए होंगें, मुझे पक्का यकीन है।“
“मुझे भी ऐसा लगता है, लेकिन कहां देखा है, करन को, याद नही आ रहा है। बैंकर का हैंसबैंड, बात को दबाना पढेगा।“
सोमवार सुबह रौशन बैंक पहुंचा। करन ने बैंक की सीडियों में रौशन का रास्ता रोका। “क्यों, बच्चू, भूल गया, मुझे। कैसे पीटा था कॉलेज में, याद कर। तेरी शक्ल भूला नही हूं, बहुत बढ चढ कर मेरी बीवी के साथ बतियाता है। खबरदार कभी मेरी बीवी से बात भी की। ऐसी धुनाई करूंगा, कि भविष्य में किसी लडकी से बात करने लायक नही रहेगा।“
बैंक खुल चुका था। स्टाफ और कस्टमरों का आना जाना शुरू हो गया। करन रौशन को धमकी दे कर चला गया। रौशन सीडियां चढने लगा। बैंक में स्टाफ के साथ हेलो हुई। कविता को लोन प्रपोजल दिया। फाईल पढते हुए कविता ने रौशन को कहा। “मिस्टर रौशन, आज मैं फाईल स्टडी कर लूंगी, किसी और पेपर की जरूरत होगी, मैं आपको फोन करूंगी।“ रौशन बैंक से बाहर आ गया। नीचे करन पार्किंग में रौशन को देख कर कुटिल मुस्कुराहट से कहा, “देखा, कैसे टरका दिया, बेटे, कविता मेरी बीवी है। दो मिन्टों में आ गया न, नीचे, उतर के। देखता हूं, कि तेरा काम कैसे होता है।“ कह कर एक मुक्का रौशन के मुंह पर जमा दिया। रौशन लडखडा कर गिर गया और चश्मा गिर गया, उसका शीशा टूट गया। अब रौशन का सब्र टूट गया। धीरे धीरे उठा, तो करन ने फिर एक मुक्का जमा दिया। रौशन ने भी पलटवार में करन के पेट में मुक्का मारा और करन को धक्का दिया। करन को इसकी उम्मीद नही थी, वह भी गिर पढा। दोनों में गुथम गुथा हो हई। मारपीट देख कर भीड एकत्रित्त हो गई। दोनों के कपडे भी फट गए। पार्किंग के लडकों ने दोनों को पकड कर अलग किया। आते जाते लोग तमाशा देखते रहे और फिकरे कसते रहे, पढे लिखे भी गंवारों की तरह लड रहे है। लानत है, ऐसी पढाई पर। करन की अकड मार पीट के बाद भी कम नही हुई। धमकाने लगा, रौशन को। रौशन ने भी जवाब दे दिया कि जो हो सके कर ले। अब कोई नही रोक सकता है, उसे। बैंक का काम, तेरी बीवी नही तो कोई दूसरा करेगा। उसे किसी का कोई डर नही है। तभी पुलिस के दो सिपाही आ गए और थाने चलने को कहा। थाने के नाम पर करन बिदक गया और अपनी कार की ओर चलने लगा। लेकिन रौशन थाने चलने को तैयार हो गया। पुलिस से कहा, चलो थाने, दो दिन से मारपीट कर रहा है, आज सब फैसला हो जाए। करन ने पुलिस को एक कोने में जा कर फुस फुस की, कुछ उसकी जेब में डाला, फिर कार में बैठ कर चलता बना। पुलिस बोली, सिरफिरा है, छोडो उसको, आप के कपडे फट गए है। आप घर जा कर अपना हुलिया ठीक करिए। रौशन एक लुटे आशिक की तरह कार में बैठा। उसकी सांस फूल रही थी। पानी पिया, दस मिन्ट बाद ऑफिस फोन कर के छुट्टी ली और घर रवाना होने के लिए कार स्टार्ट की। बिना चश्मे के रास्ते में दिक्कत होगी। कार बंद की, पार्किंग में ही का र छोड, ऑटो में घर पहुंचा। फटेहाल पति को देख रानी घबरा गई। रौशन सोफे पर कुछ सोच की मुद्गा में बैठ गया। यह देख रानी विचलित हो उठी।
“क्या हुआ, कुछ बोलो। आपका चश्मा कहां है। आपका यह हाल। कैसे?” एक साथ कई प्रश्न रानी के सुन कर रौशन ने पूरे घटनाकर्म को बताया।
“वह आपके पीछे क्यों है। कुछ कारण तो होगा।“
“सिरफिरा है। एक तो बीवी की कमाई पर पल रहा है। चाहता है, कि कोई उसकी बीवी से बात भी न करे। इतनी चाहत है, तो घर पर बुरके में बिठाए। आज के आधुनिक समाज में ऐसे जीव भी पलते है। उसके दिमाग में फितूर भरा है, और कुछ नही। बीवी बैंक अधिकारी है, सबसे मिलना होगा...... कहते कहते रौशन अतीत में चला गया। चलचित्र की भांति फ्लेशबैक उभरा। रौशन और करन एक ही कॉलेज में पढते थे। रौशन मधयम वर्ग और करन अमीर घर से था। जहां रौशन पढाई तक सीमित था, करन पढाई से कोसों दूर लडकियों पर लाईन मारने में व्यस्त रहता था। सहपाथी रौशन से नोट्स लेते थे। सभी को रौशन के नोट्स पर यकीन रहता था। उस दिन भी कॉलेज की लाईब्रेरी में रौशन नोट्स बना रहा था। एक लडकी ने रौशन से नोट्स मांगे, कुछ देर तक वह लडकी रौशन के साथ लाईब्रेरी में बैठी रही। करन लाईब्रेरी में शायद उसी लडकी को ठूंठने आया। क्या नाम था उस लडकी का, याद नही आया, रौशन को। खैर जब रौशन लाईब्रेरी से बाहर आया, तो करन ने रौशन की कमीज का कॉलर पकड कर दो घूंसे जमा दिए। यकायक मार से रौशन गिर गया, उस दिन भी उसका चश्मा टूट गया था।
“बेटे, अगर लडकियों से बातें करते देख लिया, तो खैर नही, पढाखू, पढता रह। लडकियों से बात मैं करूगां।“ कह कर करन ने दो और जमा दिए थे। एक प्रोफेसर को आते देख करन वहां से चला रौशन को धमका कर चला गया था।
“कमास है, आपने करन को नही पहचाना, लेकिन उसे आपकी शक्ल याद रही।“ रानी ने आश्चर्य से कहा।
“ऐसे आदमियों को क्या याद रखाना। उस दिन के बात मेरी उससे बोलचाल बंद हो गी थी।“ कह कर रौशन मुसकुरा दिया। “ रानी मेरा पुराना चश्मा देना। सबसे पहले तो नया चश्मा बनवाना है। कल से करन ने मूड खराब कर रखा है, चल अब क्नाट पलेस चलते है। कार भी पार्किंग में खडी है।“
“आपकी फाईल कविता के पास है, क्या वह कुछ गडबड तो नही करेगी।“
“वह एक प्रोफेशलन है, बैंक कके नियमों से अनुसार काम करेगी। बैंक में करन के नियम नही चलते हैं।“
ऑपटिशियन के पास रौशन चश्में का फ्रेम सेलेक्ट कर रहा था। ये वाले फ्रेम नही चलेंगैं, श्रीमान जी, मुझे तो आज मालूम हुआ, कि जनाब से लडकियां नोट्स लेती थी। एक दम नए लुक वाला प्रेम चाहिए। रानी ने चुटकी ली। सेल्समैन भी मुसकुरा दिया।
“लंच कहां पर।“
“क्वालिटी, वही पुराना अड्डा।“
शाम को घर पहुंच कर चाय की चुस्कियों के साथ रौशन ने आंखे बंद की।
“क्या सोच रहे हो।“
“सोचना बंद, ऐसे सिरफिरे आदमियों के बारे में सोचना नही चाहिए।“
अगले दिन सुबह रौशन बैंक पहुंचा। कविता ने मुसकुरा कर रौशन को हेलो कहा और एक लिफाफा रौशन की ओर बढाते हुए कहा “आपका सेंक्शन लेटर।“

 

 

 

मनमोहन भाटिया