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सैलाब

विवाह समारोह में राजेश को सभी मित्रो, सम्बंधियों के साथ हंसते, खिलखिलाते देख रश्मि की बहुत दिनों की चिन्ता दूर हुई। राजेश की उदासी विवाह समारोह में पुराने मित्रो, रिश्तेदारों से मिल कर दूर हुई। लेकिन यह खुशी कुछ देर की ही थी। खाना खाते हुए अचानक राजेश के सामने एक अधेड महिला आई, उसने राजेश को देख कर अजीब सा मुंह बनाया, फिर कुछ बडबडाई। रश्मि कुछ सुन नही सकी, कि वह महिला क्या बडबडाई? सुन तो राजेश भी नही सका, परन्तु समझ गया, कि वह क्या कहना चाहती है। राजेश ठिठक गया, उसका चेहरा थोडा गंभीर हुआ। चुपचाप खाना लगा। खाने के फौरन बाद राजेश ने मेजबान को शगन दे कर विवाह समारोह से विदाई ली। रश्मि ने कार में बैठते पूछा “कुछ देर और रूक जाते, बहुत दिनों बाद इतने मित्र, रिश्तेदार मिले, अच्छा लग रहा था।“
“अच्छा तो लग रहा था, लेकिन कुछ बाते ऐसी हो जाती हैं, जिन पर अपना कोई बस नही होता।“ राजेश ने कार चलाते हुए कहा।
राजेश को फिर गंभीर देख कर रश्मि रास्ते में कुछ नही बोली। घर पहुंचने के बाद कपडे बदल कर राजेश बिस्तर पर गुमसुम लेट कर पंखे को देखने लगा।रश्मि से अब रहा नही गया।
“कुछ तो कहो, क्या हुआ, उस औरत ने क्या कहा, कि तुम फिर से उदास हो गए। तुम्हारा मुरझाया चेहरा देख कर मेरा कलेजा मुंह को आ रहा है।“ रश्मि ने राजेश को झंझोर कर पूछा।
राजेश ने करवट बदली और ऱश्मि की आंखों में आंखे डाल कर कहना शुरू किया।
“रश्मि, कुछ बातें, चाहे जिनती पुरानी हो जाए, हम भूल तो जाते है, परन्तु मस्तिष्क के किसी कोने में बात छिप कर बैठ जाती है और फिर अचानक से उथल पुथल मचाती हुई दिमाग के अगले भाग में आती है और आंखों के सामने घूमने लगती है। कुछ समय पहले केदारनाथ में आई प्रलय ने जो तबाही मचाई, हजारों सैलाब में बह गए। कितने मरे, कितने लापता हुए, कितने उजडे, कोई हिसाब नही। कितनों ने अपने परिजनों को अपने सामने बहते हुए देखा, सिर्फ बेबसी के साथ देखते रहे, कुछ नही कर सके। उन्ही खबरों को देख को टीवी पर देख कर उदास हो गया था, क्योंकि कुछ पुरानी बात याद आ गई, और वो औरत भी उसी कडी का एक हिस्सा थी।जिन पर बीतती है, वोही जानते है, बाकी तो बस समाचार सुन, देख कर थोडे दिनों में भूल जाते हैं। केदारनाथ की प्रलय देख कर सबके कलेजे मुंह को आ गए थे। पत्थर दिल भी पिघल गए थे। उनकी सोचों जिनके आगे परिवार जन बह गए,और वो कुछ भी नही कर सके।
आज बात पुरानी हो गई है। न्यूज चैनलों को नई खबरे मिल गई, त्रासदी पुरानी और बासी हो गई है। बासी रोजी कोई नही परोसता, खबरों को कौन देखेगा। मैं कभी केदारनाथ तो नही गया। कॉलेज के दिन थे। हम चार मित्र, मैं, दिनेश, कबीर और सुरेन्द्र एक साथ पढते थे। बात बीस वर्ष पुरानी है। हम सब तब आस पास रहते थे और रिश्तेदार भी थे। हम उम्र, साथ साथ रहना, वो कॉलेज के मस्ती वाले दिन। फाईनल ईयर के पेपर समाप्त हुए, हम मसूरी घूमने निकले। कबीर की कार थी, कार में मस्ती का सफर, मसूरी, धनोलटी, देहरादून में दस दिन व्यतीत करने के पश्चात दिल्ली के लिए रवाना हुए। देहरादून की सीमा समाप्त होते ही घुमावदारसडके पर्वतश्रंखलाऔ के बीच एक अदभुत नजारा प्रस्तुत कर रही थी। एक नहर के पास कार रोक कर कबीर कैमरा निकाल कर फोटोशूट में व्यस्त हो गया।
“यारों यहां नहाने का मजा आ जाएगा।“ सुरेन्द्र ने सीटी बजाते हुए कहा।
“छोडो, मसूरी की कैम्टीफॉल, देहरादून की सहस्त्रधारा में खूब नहाए है। यहां देर मत करो। फोटोशूट के बाद वापिस चलो। नही तो दिल्ली पहुंचते रात हो जाएगी। हाईवे में दिन का सफर ही सही रहता है। सिंगललेन हाईवे है, दिल्ली तक। रात को रोडवेज बसे और ट्रक बेलगाम चलते है।“ राजेश ने असहमति जताई।
बाकी तो मान गए, लेकिन सुरेन्द्र ने जिद पकड ली और कार की डिक्की से अपना बैग निकाल कर नहाने के कपडे निकाल कर नहर में नहाने चल पडा। नहाते हुए सुरेन्द्र ने आवाज लगाई। कैम्टीफॉलऔर सहस्त्रधारा भी फीके है, इस नहर के सामने, कह कर वह थोडा आगे चला गया। कबीर और दिनेश भी पीछे चलने लगे, लेकिन राजेश कार के पास ही रहा। जहां कार खडी थी, वहीं पास में फल्ड मॉनिटरिंग रूम था। गार्ड ने जैसे कबीर और दिनेश को नहर में जाते देखा, वह जोर से चिल्लाया, कि नहर में पानी छोडा गया है, आगे मत जाऔ। आवाज सुन कर कबीर और दिनेश रूक गए और चिल्लाए “सुरेन्द्र, वापस आऔ, नहर में पानी छोडा है, वापस आऔ।“
सुरेन्द्र ने चेतावनी अनसुनी कर दी और नहाने में मस्त रहा और चिल्लाने लगा। नहाने का मजा है। गार्ड, कबीर और दिनेश भी चिल्ला रहे थे, वापिस आऔ। देखते देखते तेजी से पानी आया और सुरेन्द्र पानी के तेज बहाव को सह न पाया और पानी में बह गया। सब देखते रहे और सुरेन्द्र एक पल में बिछड गया, सदा के लिए। राजेश, दिनेश और कबीर को कुछ नही सूझ रहा था। वे बेताहाशा रोते जा रहे थे। गार्ड के दिलासे के बाद भी तीनों की घिग्गी बंद हो गई थी, कुछ नही सूझ रहा था, कि क्या करें। गार्ड रूम में टेलीफोन था। गार्ड ने नंबर लेकर उनके घर फोन किया। चारों की फैमिली फौरन रवाना हुई। रात तक सभी पहुंच गए। पानी बहुत था। अंधेरे में खोज नही हो सकती थी। सुबह गोताखोरों की मदद भी ली। हर संभव कोशिश बेकार साबित हुई। सुरेन्द्र का कोई पता नही चला। उसका शरीर भी नही मिला। तीनों हंसते खेलते चेहरे मुर्झा गए। चौथा पता नही कहां दूर चला गया। तीन दिनों तक कोशिश करते रहे, फिर वापिस दिल्ली आ गए। दोस्तों का आपस में मिलना बंद हो गया। ग्रेजुएशन के रिजल्ट के बाद कबीर और दिनेश विदेश चले गए और वहीं बस गए। राजेश दिल्ली में ही रहा। बात भूली तो नही जाती, फिर भी भुलाई जाती है। सुरेन्द्र की मां राजेश को कसूरवार समझती है। राजेश जानता है, कि गलती सुरेन्द्र की ही थी। गलती न होते हुए भी प्रिय मित्र को अपनी आंखों के सामने औझल होते बदन थम जाता है।केदारनाथ के वही समाचार देख कर राजेश को वही दृश्य बारबार याद आ जाता है।
“आपने कभी जिक्र नही किया, इस बात का।“
“कुछ बातों को बताया नही जाता, बस महसूस किया जाता है।“
“हां, सही कहा तुमने, किसी से शेयर भी नही कर सकते, इस बात को।“

 

 

मनमोहन भाटिया