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श्लोक ११ ते १५

तुम्हारे जीस गर्जन के प्रभावसे पृथ्वीमे छातोके समान शिलीन्ध्र ( कुकुरमुत्ते ) उग आते है, उस कर्ण-सुखदायी गर्जितको सुनकर मानसरोवरमे जानेके लिये उत्कण्ठित हुए मृणालके खण्डोका चबैना लिये हुए राजहंस कैलास पर्वत तक आकाशमे तुम्हारा साथ देंगे ॥११॥

लोकवन्द्य भगवान रामचन्द्रजीके श्रीचरणोसे जिस रामगिरि के प्रान्तभाग पवित्र हो गये है, अपने प्रिय मित्र इस उंचे पर्वतसे, जाते समय बिदा लेलो । क्योकी प्रत्येक वर्षाकालमे इससे मिलनेपर चिरविरहजन्य जो गरम-गरम आँसू तुम्हारे निकलते है उनसे तुम्हारा इसके प्रति स्नेह प्रकट होता है ॥१२॥

हे मेघ ! पहले तुम्हारी यात्राके योग्य मार्गको तुमसे कहता हूँ, सुनो । जिस मार्गसे चलते-चलते थकनेपर पर्वतोकी चोटीयोमे विश्राम करते हुए और स्थान-स्थानपर जल बरसानेसे क्षीण हुये तुम, नदियोसे हलका पानी ले-लेकर चलोगे । इसके बाद श्रवण सुखद मेरा सन्देश सुनोगे ॥१३॥

किसी पहाड की चोटीको वायु उडा कर ले जा रहा है क्या ? ऐसा सोचकर उपरको मुख करके अत्यन्त आश्चर्यसे भोली-भाली सिद्धस्त्रियाँ तुम्हारे उत्साह को देखेगी, अत: रसीले निचुल वृक्षोसे घिरे इस स्थानसे, दिग्गजोके सूँडोके प्रहारसे बचते हुए तुम उत्तरकी ओर मुख करके आकाशमे उड जाओ ॥१४॥

विभिन्न रंगोवाली मणियोकी किरणे आपसमे जैसे मिल जायँ, ऐसा दर्शनीय यह इंद्रधनुष सामनेकी बाम्बीके ऊपरसे निकल रहा है । इस इंद्रधनुषसे सजा हुआ तुम्हारा सावला शरीर इस प्रकार अत्यन्त शोभा को प्राप्त होगा जैसे की मोरपंख लगा लेनेसे गोपवेषधारी कृष्णका श्यामरुप चमक उठता था ॥१५॥